26/11 पर फैसला भारत ने बताया क्या होता है लोकतंत्र
पाकिस्तानी आतंकी अजमल आमिर कसाब को विशेष अदालत ने 26/11 के मुम्बई हमले के लिए दोषी पाया है। इस पफैसले से भारत को न केवल आतंक के विरु( लड़ने का नैतिक अध्कार पाप्त हो गया है बल्कि इससे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत का लोकतंत्रा, न्यायपालिक और विश्वसनीयता पर यकीन मजबूत हुआ है। स्पष्ट रूप से सबको यह संदेश पहुंच गया है कि विपरीत व भावनात्मक स्थितियों में भी भारत अपना संयम कायम रखता है और लोकतांत्राक मूल्यों और इंसापफ का दामन नहीं छोड़ता है। इस पफैसले से भारत के इस दावे को बल मिला है कि अमरीकी आतंकी डेविड हेडली को उसे सैंपा जाए ताकि 26/11 के पीड़ितों को न्याय मिल सके। गौरतलब है कि बीती 3 मई को आतंकवाद निरोध्क विशेष अदालत के न्यायाधश एमएल तहिलियानी ने अपने 1522 पन्नों के पफैसले में कसाब को सामूहिक हत्या, भारत के विरु( यु( छेड़ने सहित 80 मामलों में दोषी पाया, जबकि सबूतों के अभाव में 2 अन्य भारतीय आरोपियों पफहीम अंसारी व सबाउद्दीन अहमद को बरी कर दिया। कसाब पर 86 आरोप लगाए गए थे। आगे बढ़ने से पहले यह याद दिलाना आवश्यक है कि 26 नवंबर 2008 को कसाब व उसके 9 अन्य पाकिस्तानी साथियों ने मुम्बई पर आत्मघाती आतंकी हमला किया था। इसके अगले दिन यानी 27 नवंबर को तड़के डेढ़ बजे कसाब को गिरफ्रतार किया गया और 29 नवंबर को सभी स्थानों को आतंकवादियों से मुक्त कराया गया जिसमें 9 आतंकवादी मारे गए। अपने मारे जाने से पहले आतंकवादियों ने 166 निर्दोष लोगों की हत्या की थी और 304 लोगों को घायल किया था, जिसमें 25 विदेशी भी शामिल थे। कसाब को गिरफ्रतार करने के बाद पुलिस ने 10 हजार पन्नों का आरोप पत्रा दाखिल किया जिसमें 35 पाकिस्तानी वांछित बताए गए। इनमें से 20 इस साजिश में सीध्s शामिल थे। न्यायाधश के समक्ष जो सबूत रखे गए वह सभी मुम्बई हमले के लिए पाकिस्तान की तरपफ उंगली उ"ाते हैं और साबित करते हैं कि हापिफज़ सईद और ज़की-उर-रहमान लखवी भी हमले में शामिल थे। पफैसले के अनुसार सईद और लखवी जो इस समय पाकिस्तान में हैं, 18 अन्यों के साथ न सिपर्फ साजिश रचने में शामिल थे बल्कि मुम्बई में जो 10 आतंकी आए उनको ट्रेनिंग देने में भी इनकी विशेष भूमिका थी। ध्यान रहे कि सईद लश्करे तैयबा का संस्थापक है और लखवी इस समय इस आतंकी संग"न का पमुख है। इसमें कोई शक नहीं है कि यह पफैसला पाकिस्तान के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि वह अपने यहां से आतंक निर्यात न करे। अगर वह ऐसा करेगा तो उसे सबक के तौर पर अच्छी खासी सजा दी जाएगी। यही वजह है कि दोषी पाए गए कसाब को अध्कितम संभावित सजा दी गई है। बहरहाल सबूतों के अभाव में पफहीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद को बरी किए जाने से स्पष्ट हो गया है कि भारत की अदालतें भावनाओं और मीडिया के पचार से पभावित नहीं होती हैं बल्कि जो साक्ष्य उनके सामने रखे जाते हैं, उनको ही आधर बनाकर पफैसले दिए जाते हैं। गौरतलब है कि पफहीम और सबाउद्दीन को विशेष अदालत ने इसलिए छोड़ दियाऋ क्योंकि उनके खिलापफ जो एकमात्रा चश्मदीद गवाह था उसकी गवाही आरोपों से मेल नहीं खा रही थी और दूसरे गवाह को अदालत ने पफर्जी पाया। इसके अतिरिक्त यह भी साबित न किया जा सका कि अंसारी ने जासूसी करने के लिए मुम्बई के स्थानीय कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में पवेश लिया था और न ही यह साबित किया जा सका कि भायखला में उसने कमरा किराए पर लिया था। साथ ही अदालत ने इस आरोप को भी स्वीकार नहीं किया कि पफहीम ने मुम्बई का नक्शा बनाकर सबाउद्दीन को दिया था ताकि वह लश्कर के आकाओं तक पहुंचा सके। अदालत के अनुसार उसके समक्ष पेश किया नक्शा न तो मोड़ा-तोड़ा था और न ही उस पर खून के ध्ब्बे थे, जबकि दावा यह किया गया था कि नक्शा मारे गए आतंकी अबू इस्माईल की जेब से निकाला गया था जो कि खून से सनी हुई थी। अदालत ने यह भी सवाल किया कि जो आतंकी जीपीएस, सेट पफोन्स आदि का पयोग कर रहे थे वह हाथ से बने नक्शे का इस्तेमाल क्यों करते? लेकिन इस सब से बढ़कर जो बात सामने आयी है वह यह है कि 525 दिन चले इस मुकदमे से साबित हो गया है कि पाकिस्तान न केवल आतंक का निर्यात कर रहा है बल्कि उसकी भूमि पर आतंकी ट्रेनिंग कैंप बिल्कुल खुलकर चलाए जा रहे हैं जिनमें युवाओं को भारत में आतंकी हमले करने की ट्रेनिंग दी जा रही है। न्यायाधश के अनुसार कई ट्रेनर्स के नाम भी सामने आए हैं। इस पफैसले से पाकिस्तान पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव पड़ेगा कि वह 26/11 के दोषियों के खिलापफ सख्त कार्रवाही करे। ध्यान रहे पाकिस्तान में रावलपिंडी की एक अदालत में मुम्बई हमलों को लेकर 7 लोगों पर मुकदमा चलाया जा रहा है, जिनमें ज़की-उर-रहमान लखवी और ज़रार शाह शामिल हैं। लेकिन हापिफज़ सईद के खिलापफ पाकिस्तानी की स्थानीय अदालत और सरकार ने कार्रवाही करने से इंकार कर दिया है। मुम्बई की विशेष अदालत के पफैसले से साबित है कि जमात-उद-दावा का पमुख हापिफज़ सईद उस कैंप में गया था, जिसमें 26/11 के हमलावरों को ट्रेनिंग दी गई थी और उसने इन आतंकियों को मिशन की `सपफलता' के लिए आशीर्वाद दिया था। यह भी ध्यान रहे कि हापिफज़ सईद पाकिस्तान में जगह-जगह घूमकर अपने भाषणों के जरिए भारत के खिलापफ जहर उगलता है और नपफरत पफैलाता है। विशेष अदालत ने अपने पफैसले में स्पष्ट कर दिया है कि 26/11 की साज़िश पाकिस्तान में रची गई थी और लश्कर ने इसे अंजाम दिया। लेकिन इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि विशेष अदालत के इस सच को पाकिस्तान अध्कि महत्व नहीं देगा। इसलिए आवश्यक है कि सरहद पार आतंक पर लगाम लगाने के लिए नई दिल्ली अपनी योजना में परिवर्तन लाए। एक बेहतर तरीका यह है कि हमला होने से पहले ही योजना और योजना को अंजाम देने वालों को नेस्तनाबूद कर दिया जाए। आंतरिक सुरक्षा को उसी सूरत में मजबूत किया जा सकता है जब वार से पहले ही वार की काट कर दी जाए। ये सही है कि नेशनल सिक्युरिटी गार्ड का विस्तार किया जाएऋ लेकिन साथ ही पुलिस में सुधर की भी आवश्यकता है ताकि वह ऐसे कमजोर केस न बनाए जैसे कि कसाब के दो तथाकथित साथियों के खिलापफ बनाए गए थे। बहरहाल इस पूरी कवायद में सबसे अच्छी बात यह रही कि भारत की न्यायपणाली निष्पक्ष व जिम्मेदार न्यायपणाली के रूप में एक बार पिफर सामने आयी। संभवतः इससे अमरीकी आतंकी डेविड हेडली तक पहुंचना आसान हो जाएगा ताकि मुम्बई हमले की पूरी तस्वीर सामने आ सके। लोकमित्रा