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स्कूल जाने के लिए ही नहीं, छोटी-मोटी जरूरतों को भी साईकल से पूरा करती हैं नम्रता व सृष्टि

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:30 Nov 2017 2:36 PM GMT
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धमतरी,(ब्यूरो छत्तीसगढ़)। स्थानीय महात्मा गांधी वार्ड में रहने वाली कु. नम्रता साहू अपनी सायकल का इस्तेमाल न सिर्प स्कूल आने-जाने के लिए करती हैं, बल्कि किराना दुकान, राशन सहित छोटी-मोटी जरूरतों को पूरा करने आसपास की जगहों में जाने के लिए भी कापी सहुलियत मिलती है। यह सायकल उसे पदेश शासन की सरस्वती सायकल योजना के तहत स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा निःशुल्क पदान की गई है। अब न तो उसे घर से ढाई किलोमीटर पैदल सपर करना पड़ता है, न ही कभी स्कूल पहुंचने में देर होती है। शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय गोकुलपुर में कक्षा 11वीं में कला संकाय की पढ़ाई कर रहीं छात्रा कु. नम्रता ने भावुक होकर बताया कि दो वर्ष पहले उनके पिता बल्लूराम साहू की असामयिक मृत्यु हो गई जिसके बाद मां पर नम्रता सहित तीन भाई-बहनों की जिम्मेदारी आ गई। रेजा का काम करके जीवन-यापन चलाने वाली मां अपनी बेटी के लिए सायकल खरीदने में कहीं से भी सक्षम नहीं थी, जिसके चलते उसे रोज ढाई किलोमीटर की दूरी पैदल ही तय करनी पड़ती थी। घर से स्कूल तक का पासला तय करना उसकी दिनचर्या में शामिल हो गया था। ऐसे में अगस्त-2016 में उन्हें सरस्वती सायकल योजना के तहत सायकल मिली, जिसके बाद तो जैसे उसकी पूरी दिनचर्या ही बदल गई। मां के काम पर जाने के बाद छोटी बहनों को स्कूल के लिए तैयार कर पास के स्कूल में भेजने का सारा काम वह सायकल से ही करती हैं जिससे उसके समय और श्रम की बचत होती है। शिक्षक बनने की ख्वाहिश रखने वाली नम्रता ने बताया कि सायकल उसके परिवार के सदस्य की तरह है। यह नहीं होती तो स्कूल के साथ-साथ रोजमर्रे का काम भी बोझिल और दुष्कर हो जाता। इसी स्कूल में कक्षा नवमीं में अध्ययनरत छात्रा कु. सृष्टि ध्रुव भी तीन महीने पहले अपने घर रूदी से स्कूल तक लगभग साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी पैदल तय करती थीं।

16 अगस्त 2017 को उन्हें भी योजना के तहत सायकल मिली। उसने बताया कि उनके माता-पिता सायकल खरीदने में सक्षम नहीं थे। सहेलियों को सायकल चलाते देख तब वह मन-ही-मन ललचाया करती थीं। अब सायकल मिलने के बाद उसे स्कूल पहुंचने तक पसीने से तर-ब-तर होना नहीं पड़ता। घर की छोटी-मोटी जरूरतें भी सायकल से जाकर वह पूरी कर लेती हैं। स्थानीय महिमासागर वार्ड की कु. काजल साहू के पापा पेन्टिंग का काम करते हैं जिससे महीने में तीन-चार हजार रूपए ही मिल पाते हैं। काजल ने बताया कि अब वह स्कूल कभी देर से नहीं पहुंचती, जिसके कि टीचर से उसे पनिशमेंट नहीं मिलती। सायकल मिलने से पहले स्कूल पहुंचने के लिए आधा-पौन घंटा पहले घर से निकलना पड़ता था, वहीं वापसी में घर पहुंचने में भी इतने ही समय की बर्बादी होती ही थी, शरीर भी थककर चूर हो जाता। अब सायकल मिलने से न थकान का पता चलता है न ही घर और स्कूल के लिए अतिरिक्प समय निकालना पड़ता है। बचे हुए समय का उपयोग वह घर के कामों में करती हैं। ऐसी ही कहानी कक्षा दसवीं की कु. राधिका ध्रुव की भी है जो योजना के अंतर्गत सायकल मिलने से स्कूल और घर के बीच की दूरी खेल-खेल में ही तय कर लेती हैं। उल्लेखनीय है कि पदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने सरस्वती सायकल योजना की शुरूआत वर्ष 2004-05 में की जिसके तहत उच्च कक्षाओं में अध्ययनरत छात्राओं को निःशुल्क सायकल पदान की जाती है। इस योजना से न सिर्प बालिका शिक्षा का पतिशत बढ़ा है, अपितु दूरदराज क्षेत्र की बेटियां अब कक्षा आठवीं के बाद पढ़ाई जारी रखकर उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं। योजना के तहत अब तक कुल 35 हजार 100 छात्राओं को निःशुल्क सायकल वितरित की जा चुकी है। स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा योजना के पारम्भ वर्ष 2004-05 में 50 सायकल बांटी गई थी, वहीं अब वर्ष 2017-18 में 4 हजार 211 सायकल पदाय की जा चुकी है। इस योजना से निश्चय ही बालिका शिक्षा को आशातीत पोत्साहन मिला है।

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