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स्वयं की आत्मा की रक्षा का पर्व ही वास्तविक रक्षाबंधन हैः वैराग्यनिधिश्री

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:27 Aug 2018 2:06 PM GMT
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रायपुर ,(ब्यूरो छत्तीसगढ़)। श्री जिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी में कैवल्यधाम तीर्थ पेरिका मरूधर ज्योति परम पूज्या साध्वी श्री मणिपभाश्रीजी म.सा. की सुशिष्या साध्वी श्री वैराग्यनिधिश्रीजी म.सा. ने रविवार को रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर `बंधन से सुरक्षा स्वयं की' विषय पर कहा कि स्वयं की आत्मा की रक्षा का पर्व ही वास्तविक रक्षाबंधन है। वास्तव में लोकोत्तर पर्व जो कि आत्मा की रक्षा के लिए होता है और लौकिक पर्व जहां मनोरंजन व भोग-उपभोग की सामग्रियों के माध्यम से मन को बहलाया जाता है। एक आत्मा की रक्षा के लिए और दूसरा मन की पसन्नता के लिए पर्व होता है। जब भी परमात्मा का जन्म होता है 56 दिक्कुमारियां आती हैं और आकर वे भगवान की कलाई पर रक्षासूत्र बांधकर यह आशीष देती है, शुभकामना देती हैं कि भगवान यु कोड़ा-कोड़ी चिरंजीवो अर्थात् भगवान करोड़ों-करोड़ों वर्षों तक आपका शासन और आप जयवंता रहें, क्योंकि आप हैं तो हम हैं। आपने अपने अस्तित्व को पाप्त किया तो आज हम अपने अस्तित्व को पाप्त कर पा रहे हैं। रक्षाबंधन के लिए सर्वपथम परमात्मा की स्नात्र पूजा कर पहली राखी अपनी कलाई पर बांधें क्योंकि वह पहली राखी होती है जो स्वयं की आत्मा की रक्षा के लिए होती है।

भाई-बहन के पवित्र स्नेह का यह पर्व रक्षाबंधन यह भी संदेश देता है कि यदि बहन संकट में हो तो भाई उसकी रक्षा करे और भाई संकट में हो तो बहन उसे उपर उठाने का कार्य करे। बाहुबली वर्षों से खड़े-खड़े साधना कर रहे हैं, वर्षों बीत गए पर उन्हें कैवल्य ज्ञान की पाप्ति नहीं हो रही, एकमात्र उनके अह्म भाव के कारण। तब ऐसे अवस्था में उनकी बहनें उन्हें स्मरण कराती हैं यह कहकर7 वीरां म्हारा गज नी उतरो... । वर्तमान परिपेक्ष्य में सामाजिक दशा पर चिंतन के पेरित करते हुए पूज्या साध्वीश्री ने कहा कि क्या आज हमारा रक्षाबंधन का पर्व खतरे में नहीं है? जहां समाज में बालिका भ्रूण हत्याएं हो रही हैं। गर्भ में पल रहे शिशु को मारने का दुष्कर्म किया जा रहा है। यह महापाप का बंध है, जिसके हिस्से यह कर्म बंध जाता है, भविष्य में वही कर्म बांधपन के अभिशाप रूप में अगले भव में उपस्थित हो जाता है। शास्त्राsं,आगमों में यह वर्णन है कि जो जीव हत्या का ऐसा जघन्य पाप करता है उसे अगले भवों में अनंत नर्क की वेदना सहनी पड़ती है।

परमाधानी देव उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर उसे अनंत वेदना देते हैं। वापस वह जुड़ जाता है फिर वापस से टुकड़े-टुकड़े कर दिया जाता है। उन्होंने कहा कि निवेदन है कि ऐसा भयंकर पाप आप अपने जीवन में ना करें। संयम जीवन सार है, बाकी सब बेकार इस चिरंतन सत्य को स्वीकार जीवनयापन की पेरणा पदान करते हुए साध्वीश्री ने कहा कि उस सुख में क्या इतराना जो दुखी बनाकर जाएगा और उस दुख में क्या घबराना जो भविष्य में सुखी बनाकर जाएगा।

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