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नक्सलियों से निपटने दीर्घ रणनीति की जरूरत

👤 veer arjun desk 5 | Updated on:16 March 2018 2:41 PM GMT
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जगदलपुर, (ब्यूरो छत्तीसगढ़)। छत्तीसगढ़ में आतंक का पर्याय बने नक्सलवाद पर काबू पाने के लिये लंबी रणनीति बनाये जाने की जक्वरुरत है। इतिहास गवाह है कि किसी इलाके से अगर माओवादी थोड़े समय के हट भी जायें तो, यह उनकी रणनीति का ही हिस्सा होता है। वे दुबारा उसी इलाके में पूरी तैयारी और रणनीति के साथ लौटते हैं। वे इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं हैं, उनके निपटने के लिये दीर्घकालीन रणनीति बनाने जाए जाने की महती आवश्यकता है।दरअसल माओवादियों को जिस तरीके का पशिक्षण दिया जाता है, वह सेना के पशिक्षण की तरह है, लेकिन हमारी सीआरपीएफ जैसी फोर्स को लड़ने के लिये तो पशिक्षित किया जाता है, लेकिन माओवादियों से लड़ने का पशिक्षण उन्हें भी नहीं दिया जाता, उन्हें गुरिल्लावार से विशेष तौर पर पशिक्षित करने की जक्वरुरत है।

यहां उल्लेख करना लाजिमी होगा कि माओवादियों को इस तरह की लड़ाई में स्ट्रैटजक्वी और टैक्टिस का पूरा पशिक्षण होता है, वे देश के किसी भी हिस्से में हुये पुलिस मुठभेड़ का पूरी गहराई के साथ विश्लेषण करते हैं, उस पर अपने साथियों से चर्चा करते हैं और फिर उसके सकारात्मक-नकारात्मक पहलू पर विचार करते हुये अपनी अगली रणनीति तय करते हैं, जबकि पुलिस में इसका नितांत अभाव है। समय की जरूरत है कि माओवादियों से लड़ने की रणनीति बने, उनके हमलों को लेकर पशिक्षण दिया जाये तभी कारगर ऑपरेशन किये जा सकते हैं।
बस्तर में सेना को तैनात करने की जक्वरुरत नहीं है, ऐसा नहीं है कि बस्तर के सारे आदिवासी माओवादी हैं। दरअसल जो लड़ाई पुलिस लड़ सकती है, उसके बजाये सेना को उस लड़ाई में शामिल करना कोई बेहतर रणनीति नहीं होगी।
उल्लेखनीय है कि माओवादी अपनी लड़ाई को हमेशा दीर्घकालीन युद्ध कहते हैं। उनके दस्तावेजक्व बताते हैं कि वे दीर्घकालीन लड़ाई में पीछे हटने को एक सामान्य पत्रिढया मानते हैं। यह संभव है कि माओवादियों को सरकार ने बैकफूट पर डाल दिया हो, लेकिन इसका मतलब यह कभी नहीं लगाया जाना चाहिये कि ऐसा करने से माओवादी हार मान लेंगे। उनका विश्वास है कि आगे-पीछे आने-जाने की पत्रिढया में भी अंततः वे अपनी लड़ाई में जीत हासिल जक्वरुर करेंगे। जब भी माओवादी बैकफूट पर जाते हैं, तो उस अवसर का उपयोग अपनी गल्तियों, कमजोरियों को समझने, उसमें फेरबदल करने और आगे की लड़ाई की तैयारी में लगाते हैं।
वे इतनी आसानी से चुप बैठने वाले नहीं हैं। माओवादियों के खिलाफ अगर कारगर लड़ाई लड़ना है, तो सरकार को दीर्घ कालीन रणनीति बनानी ही होगी।
नक्सलवाद के खात्मे के लिए ठोस और नीतिगत निर्णय लेना होगा। सुरक्षा और खुफिया तंत्र को नक्सलियों के मुकाबले अधिक सुरक्षित और मजबूत बनाना होगा। इसके अलावा स्थानीय लोगों का विश्वास जीतना होगा। हमें यह समझना होगा कि सुरक्षा में जरा सी लापरवाही हमारे लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है।

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