18 को खुलेगी स्कूल, सुधार की कोई तैयारी नहीं
कोरबा (छत्तीसगढ़, ब्यूरो)। शिक्षा विभाग आरटीई के तहत निजी स्कूलों में दाखिले के आंकड़ों में ही उलझ कर रह गया है। चार दिन बाद नए शैक्षणिक सत्र की शुरूआत हो रही है। रंगाई पुताई व मेंटेनेंस व बाउंड्रीवाल की समस्या से जूझ रहे स्कूलों में सुधार की कोई तैयारी नहीं की गई है। गांव के सरकारी स्कूलों में तैयारी को लेकर पवेशोत्सव की तैयारी प?ाrकी नजर आ रहा है। निजी स्कूलों का संचालन शहरी व आसपास के गांवों में ही हो रही है। जबकि ज्यादातर नवपवेशी बच्चे सरकारी स्कूलों पर निर्भर हैं। इसके बाद भी स्कूल उपेक्षित हैं। शासन द्वारा पतिवर्ष मरम्मत राशि पदान की जाती है। इसके बाद भी स्कूलों की दशा जर्जर व रंगविहीन नजर आ रही है। शैक्षणिक सत्र की शुरूवात को महज चार दिन शेष रह गए हैं। ऐसे में पवेशोत्सव की तैयारी के मद्देनजर शिक्षा विभाग द्वारा स्कूलों के मेंटेनेंस को लेकर सजग नजर नहीं आ रहा है। राशि जारी किए जाने के बाद भी दर्जनों स्कूलों ने अभी तक राशि उपयोगिता का ऑडिट नहीं कराया है। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान द्वारा स्कूलों को मरम्मत के लिए पति वर्ष शाला अनुदान के तौर पर 50 हजार रुपए पदान किया जाता है। उक्प राशि से स्कूल पबंधन द्वारा शाला में मरम्मत कार्य के अलावा रंगाई.पुताई का कार्य कराना होता है। नवीन स्कूलों को छोड़ दिया जाए तो अन्य स्कूलों में वर्षों से रंगाई.पुताई का कार्य नहीं कराया गया है। सीपेज होते छतए टूटी खिड़कियांए दरकते दीवार आदि स्कूलों की पहचान बन कर रह गई है। पसान से लगा कोटमर्रा स्कूल सड़क से लगा हुआ हैए जहां बाउंड्रीवाल नहीं होने से कभी भी दुर्घटना हो सकती है। जिला स्तरीय पवेश की तिथि अभी तक तय नहीं हुई है।जून से ही बारिश का दौर शुरू हो चुका है। ऐसे में स्कूल पहुंचने वाले विद्यार्थियों को रिसते-टपकते छत वाले स्कूलों में पढ़ाई करने में खासी समस्या होती है। इधर स्कूल पबंधन द्वारा मरम्मत राशि का उपयोग नहीं किए जाने के कारण लगभग एक भी स्कूलों में रंगाई.पुताई अथवा मरम्मत का कार्य नहीं हो सका है।
ग्रीष्म अवकाश के दौरान स्कूलों को भगवान भरोसे ही छोड़ दिया जाता है। स्कूलों में बाउंड्रीवाल का निर्माण नहीं होने के कारण यहां मवेशियों का डेरा बना रहता है। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान द्वारा जारी राशि का जिन स्कूलों ने उपयोग कर ऑडिट कराया है। उनकी भी दशा दयनीय है।
स्कूलों में पेयजल व शौचालयों की दुर्दशा बनी हुई है। पत्येक स्कूलों में बालिका शौचालय की अनिवार्यता के बावजूद 137 ऐसे स्कूल है, जहां बालिका शौचालय का अभाव बना हुआ है। शाला विकास समिति के द्वारा निर्मित शौचालयों के निर्माण में महज औपचारिकता ही बरती गई है। गुणवत्ताविहीन निर्माण की वजह से शौचालय उपयोगिता के पहले ही ध्वस्त हो चुके हैं। पेयजल की समस्या के कारण बेहतर शौचालय भी उपयोगहीन साबित हो रहे हैं।