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अंधविश्वास के चलते गांव से बेदखल हुए वृद्ध दंपत्ति ने लम्बे संघर्ष के बाद शुरू की नयी जिंदगी

👤 manish kumar | Updated on:14 Oct 2019 5:53 AM GMT

अंधविश्वास के चलते गांव से बेदखल हुए वृद्ध दंपत्ति ने लम्बे संघर्ष के बाद शुरू की नयी जिंदगी

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सुकमा। दक्षिण बस्तर नक्सल प्रभावित इलाके में आज भी अंध विश्वास कायम है, जिसके चलते गाँव के एक बयोवृध्द पुजारी को लोगों ने ही अप शगुन मानकर हाथ - पैर बांधकर गाँव से बेदखल कर दिया। एक गाँव से दूसरे गाँव भटकने के बाद शबरी नदी के एक हिस्से में टापू नुमा जगह पर एक झोपड़ी बनाकर वयोवृध्द दंपति साथ रहते हैं। आने-जाने के लिए एक छोटे नाव का निर्माण किया है, उस नाव के सहारे नदी के किनारे खेती करना भी प्रांरभ कर दिया है।

सोनारू राम यादव सुकमा जिले के सबसे अधिक नक्सल प्रभावित इलाको में से एक चिंतलनार थाना क्षेत्र के पोलमपाड़ का निवासी है । पोलमपाड़ में वह अपनी पत्नि के साथ रहता था, लेकिन दो वर्ष पूर्व इसी गाँव के लोगों ने उसके दोनों हाथ बांधकर गाँव से बेदखल कर दिया। उससे मारपीट की। ग्रामीणों ने उस पर आरोप लगाया था कि उसकी वजह से गाँव के देवी-देवता किसी की भी फरियाद नहीं सुन रहे हैं और पूजापाठ करके उसने ही गाँव में देवी-देवताओं को बांध दिया है, जबकि सोनारू ने इन सब बातों से इंकार करते हुए ऐसा कुछ भी नहीं हुआ कहता रहा। ग्रामीणों ने उसकी एक न सुनी और गाँव छोडऩे का फ रमान सुना दिया।

इस फरमान के बाद 60 वर्षीय सोमारू परेशान हो गया, आखिकार कुछ दिनों के बाद सोनारू को गाँव छोडऩा ही पड़ा। वह और उसकी पत्नी गाँव छोडक़र दोरनापाल पहुंचे और दो वक्त की रोटी के लिए मजदूरी करना शुरू कर दिया। परंतु यहां भी दुर्भाग्य ने पीछा नहीं छोड़ा, जिसने भी मजदूरी करायी, उसने पूरा पारिश्रमिक नहीं दिया।

इसके बाद पटेल पारा निवासी एक जमींदार ने उसे मजदूरी के एवज में रहने के लिए भूमि देने का आश्वासन दिया। सोनारू एक वर्ष तक बिना पैसों की मजदूरी करता रहा और जब उक्त जमीन पर झोपड़ी बनाने की बात कही तो जमींदार ने मना कर दिया। उसके बाद सोमारू शबरी नदी के बीच पहुंच गया और पिछले एक वर्ष से वहीं रहकर खेती कर रहा है।

सोनारू और उसकी पत्नी पांच किलो मीटर के एक टापू पर बस गए, जिसकी चौहाई तीन सौ किलो मीटर है। यहां एक वर्ष तक उसकी पत्नी और वह दोनों मिलकर जंगल की सफाई की। फिर धान, मक्का और तरह - तरह की सब्जियों की फसल लगायी, जो इस वक्त टापू पर लहलहा रही है। सोनारू कहता है कि वह अपनी पहली फसल नहीं बेचेगा।

यहां यह उल्लेख करना लाजिमी होगा कि शबरी नदी 12 महीनों बहने वाली इलाके की जीवन दायनी नदी है। यहां वर्ष भर पानी भरा रहता है । वहीं सानारू ने जैसे - तैसे तंगी के बावजूद देशी जुगाड़ से नाव बनाया। जिसमें दो ही लोग बैठ सकते हैं और नदी के बीच से टापू तक का आवागमन इसी छोटी नाव से करते हंै। अच्छी खासी उंचाई के चलते यहां बाढ़ का कोई खतरा नहीं है, जिसके चलते सोनारू आराम से अपनी जीविका यहां चलाने में सफल हो गया है। हिस

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