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दिवाला कानून से बांड बाजार को गहरा बनाने में मिलेगी मददः त्यागी
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मुंबई, (भाषा)। पूंजी बाजार नियामक सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने आज उम्मीद जाहिर की कि दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता ाआईबीसा से निवेशकों का भरोसा बढ़ाने और कार्पेरेट बॉंड बाजार में कोष प्रवाह बढ़ाने को प्रोत्साहन मिलेगा। उन्होंने कहा इससे विशेषतौर से निम्न रेटिंग वाले वित्तीय साधनों को समर्थन मिलने में मदद मिलेगी। दिवाला एवं शोधन अक्षमता कानून को बैंकों के फंसे कर्ज का समयबद्ध समाधान करने के लिये पारित किया गया है। बैंकिंग उद्योग में इन दिनों फंसे कर्ज की राशि आसमान छू रही है जिससे कारोबारी माहौल प्रभावित हो रहा है।भारतीय उद्योग परिसंघ ासीआईआईा द्वारा यहां आयोजित दिवाला एवं शोधन अक्षमता सम्मेलन को संबोधित करते हुये त्यागी ने कहा, निवेशक के लिहाज से कार्पेरेट बॉंड बाजार को विकसित करने के लिये रिण शोधन मामले में प्रभावी व्यवस्था का होना महत्वपूर्ण है। कंपनियों के ऐसे बॉंड जिनकी रेटिंग कम है और उनमें डिफाल्ट होने का खतरा ज्यादा रहता है, निवशेक उनसे दूर भागते हैं, यहां तक कि निवेश ग्रेड की रेटिंग होने पर भी उन्हें विश्वस नहीं होता है। सेबी के चेयरमैन ने कहा, आईबीसी कानून के सफलतापूर्वक क्dिरयान्वयन से निवशेकों का भरोसा बढ़ेगा। विदेशी निवशकों का भी भारतीय बॉंड बाजार में भरोसा बढ़ेगा और उम्मीद है कि कम रेटिंग वाले वित्तीय साधनों में भी तरलता बढ़ेगी। वैश्व्कि आंकड़ों का हवाला देते हुये त्यागी ने कहा कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में दिवाला एवं रिण शोधन क्षेत्र में सुधारों का कार्पेरेट बॉंड बाजार को विकसित करने पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है। उन्होंने कहा, स्त्र् र्ब्राजील में कार्पेरेट बॉंड बाजार जीडीपी के समक्ष 12 प्रतिशत से बढ़कर 26.3 प्रतिशत हो गया। रूस में यह 8.1 प्रतिशत से बढ़कर 13.1 प्रतिशत हो गया। चीन और ब्रिटेन में भी इसमें उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। त्यागी ने कहा, हमारे देश में बॉंड के जरिये कोष जुटाने का अनुपात 2016 में जीडीपी के समक्ष 17.9 प्रतिशत था। अब यह देखना है कि दिवाला एवं शोधन अक्षमता कानून के अमल में आने के बाद इसका कार्पेरेट बॉंड बाजार पर क्या प्रभाव रहता है।
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