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अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को कर्ज देने में पिछड़ रहे हैं सरकारी बैंक

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:24 Jun 2018 3:36 PM GMT

अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को कर्ज देने में पिछड़ रहे हैं सरकारी बैंक

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लखनऊ, (भाषा)। केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार देश में अक्षय ऊर्जा के विकास पर भले ही खास जोर दे रही हो लेकिन ऐसी ऊर्जा से सम्बन्धित परियोजनाओं को कर्ज देने के मामले में सरकारी बैंकों में अपेक्षित उत्साह नहीं है। एक ताजा अध्ययन में यह बात सामने आयी है। राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न परियोजनाओं को लेकर वित्तीय संस्थाओं के रुख का अध्ययन करने वाले संग"न सेंटर फॉर फाइनेंशियल अकाउंटेबिलिटी ासीएफएा ने यह अध्ययन किया है। अध्ययन के मुताबिक, भारत के नेशनल इलेक्ट^िसिटी प्लान 2016 के मसविदे में कहा गया है कि इस समय निर्माणाधीन कोयला आधारित संयंत्रों को छोड़कर ऐसा कोई नया प्लांट नहीं लगाया जाएगा। फिर भी, इस वक्त भारत में कोयले से बनने वाली बिजली के लिये बैंक वित्तपोषण में वृद्धि जारी है। मुख्यतः सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों से कर्ज मिलने के कारण ऐसा हो रहा है। अध्ययन के अनुसार, सर्वे के दायरे में ली गयी, कोयले से चलने वाली 17 गीगावॉट उत्पादन क्षमता वाली 12 बिजली परियोजनाओं को वर्ष 2017 में 60,767 करोड़ रुपये ा9.35 अरब डॉलरा का कर्ज मिला है जो समीक्षित परियोजनाओं को मिले कुल कर्ज का 73 प्रतिशत है। वहीं, कुल 4.5 गीगावॉट उत्पादन क्षमता वाली 60 अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को केवल 22,913 करोड़ रुपये ा3.50 अरब डॉलरा का ठ्ठण मिला जो कुल समीक्षित परियोजनाओं को मिले कर्ज का 27 प्रतिशत ही है। विशेषज्ञों के मुताबिक, आने वाला समय अक्षय ऊर्जा का है लिहाजा बैंकों को अपने रवैये में बदलाव लाना चाहिये।

देश के प्रमुख उद्योग संग"न एसोचैम के महासचिव डी एस रावत का मानना है कि कोयला आधारित बिजली परियोजनाओं को तैयार होने में चार-पांच साल लगते हैं और बैंक आमतौर पर 20 से 25 प्रतिशत ब्याज पर कर्ज देते हैं, जो उनके लिये मुनाफे का सौदा होता है। ऊर्जा मंत्रालय के पूर्व सचिव ई ए एस सरमा ने बताया कि वर्ष 2017 में वित्तीय संस्थानों द्वारा कोयला आधारित बिजली संयंत्रों और अक्षय ऊर्जा संयंत्रों को दिये गये ठ्ठण के तुलनात्मक अध्ययन ने भारत के नीति निर्धारकों के लिये चिंता के महत्वपूर्ण कारणों की तरफ इशारा किया है। सीएफए ने स्पष्ट रूप से चिह्नित किया है कि वाणिज्यिक बैंक तो बिजली तंत्र के रूपान्तरण में सहयोग कर रहे हैं लेकिन सरकारी बैंक इसमें पिछड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2017 के दौरान बिजली परियोजनाओं के लिये दिया गया अधिकतर कर्ज कोयला आधारित परियोजनाओं के नाम रहा। इस अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि अगर भारत इसी र्ढे पर चलता रहा तो वह बेहद महंगी और प्रदूषणकारी बिजली आपूर्ति के जाल में पूरी तरह उलझ जाएगा। इससे न सिर्फ स्थानीय पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि आम लोगों की सेहत तथा वैश्व्कि जलवायु पर भी बुरा असर पड़ेगा।

पर्यावरणविद डॉक्टर सीमा जावेद के मुताबिक, वक्त के साथ ऊर्जा के स्वरूपों में बदलाव हुआ है मगर शायद सरकारी बैंकिंग तंत्र में अक्षय ऊर्जा की वैसी स्वीकार्यता नहीं हो सकी है, जिसकी अपेक्षा की जाती है। दूसरी ओर, निजी बैंक बाजार के साथ कदमताल से चल रहे हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में ऊर्जा के स्वरूपों में जिस तरह का बदलाव हो रहा है, उसे देखते हुए हमारी बैकिंग की नीतियों में भी परिवर्तन की आवश्यकता है। आज सचाई यह है कि अब कोयला आधारित परियोजनाओं का वित्तपोषण घाटे का सौदा है जबकि अक्षय ऊर्जा फायदे का। सीएफए के इस अध्ययन में विभिन्न बैंकों से कर्ज पायी अक्षय ऊर्जा तथा पारम्परिक बिजली की कुल 72 परियोजनाओं को चिह्नित करके उनकी समीक्षा की गयी है, जिनका 2017 में वित्तीय वर्ष समाप्त हुआ है। कोयला आधारित बिजली परियोजनाएं प्राथमिक रूप से सरकारी बैंकों द्वारा वित्तपोषित की गयी हैं। ऐसी परियोजनाओं को सबसे ज्यादा 14951 करोड़ रुपये का कर्ज रूरल इलेक्ट^िफिकेशन कॉरपोरेशन से मिला है।

उसके बाद भारतीय स्टेट बैंक ा11360 करोड़ रुपया दूसरा सबसे बड़ा कर्जदाता है। इस फेहरिस्त में पंजाब नेशनल बैंक, इंडिया इफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस कम्पनी, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इण्डिया तथा केनरा बैंक भी शामिल है। शीर्ष 10 में से आ" कर्जदाता इकाइयों पर सरकार का स्वामित्व है और वे इन 12 परियोजनाओं को 4.5 अरब डॉलर का कर्ज उपलब्ध करा रही हैं। सबसे ज्यादा 17142 करोड़ रुपये का कर्ज उत्तर प्रदेश की कोयला आधारित परियोजनाओं को मिला है।

दूसरी ओर, वर्ष 2017 में बैंक कर्ज पाने वाली चिह्नित अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं केवल 14 राज्यों में ही स्थित हैं। इनमें से झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में अक्षय ऊर्जा की एक भी परियोजना को ठ्ठण नहीं मिला है। इस अध्ययन में सौर ऊर्जा की 41 और वायु ऊर्जा की 19 परियोजनाओं के लिये कर्ज दिये जाने के प्रकरणों को शामिल किया गया है। इनमें से मौजूदा परियोजनाओं के पुनर्वित्तपोषण के बजाय ज्यादातर नई परियोजनाओं के लिये किया गया प्राइमरी फाइनेंस है।

अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को सबसे ज्यादा 3375 करोड़ रुपये का कर्ज इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फाइनेंस कम्पनी से मिला है। उसके बाद एल एण्ड टी फाइनेंस होल्डिंग्स, भारतीय स्टेट बैंक, इंडियन रिनीवबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी, यस बैंक, इंडसइंड बैंक और पीटीसी इंडिया फाइनेंशियल सर्विसेज आदि का नाम आता है। ज्यादातर सरकारी बैंकों से कर्ज पाने वाले कोयला आधारित संयंत्रों के विपरीत शीर्ष 10 ठ्ठण प्राप्तकर्ता अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को कामर्शियल बैंकों से कर्ज मिला है। इस अध्ययन के लिये एक जनवरी 2017 से 31 दिसम्बर 2017 के बीच कोयला तथा अक्षय ऊर्जा सम्बन्धी कुल 72 परियोजनाओं से जुड़ी 78 ठ्ठण परियोजनाओं का परीक्षण किया गया है। साथ ही ब्लूमबर्ग प्रोफेशनल, आईजे ग्लोबल, थॉमस रायटर्स तथा बाजार के राजदारों द्वारा उपलब्ध कराये गये अंशदान आधारित वित्तीय डेटाबेस के अनुसंधान के आधार पर इन ठ्ठण समझौतों की पहचान की गयी है।

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