सरकारी अनुमति के बावजूद नहीं मिल रहे श्रमिक, इसीलिए संकट में जूट उद्योग
कोलकाता। पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य के सभी जूट मिलों को सौ फ़ीसदी श्रमिकों को लेकर काम शुरू करने की अनुमति दे दी है, लेकिन उद्योग के सामने श्रमिकों का संकट गहरा गया है। लॉकडाउन के बाद अधिकतर श्रमिक अपने गृह राज्य यानी बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश अथवा ओडिशा चले गए हैं। जूट मिलों में बंगाल के स्थानीय निवासी बहुत कम संख्या में काम करते हैं। इसीलिए अब सरकार से अनुमति मिल जाने के बाद भी यहां पूरी क्षमता से काम शुरू कर पाना संभव नहीं हो पा रहा है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आगामी 8 जून से जूट मिलों में काम शुरू करने की अनुमति दी है। खास बात यह है कि केंद्र से मिलों पर लंबित ऑर्डरों को पूरा करने का दबाव पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रमिकों की कमी की वजह से उत्पादन को सामान्य करने में कम से कम दो से तीन सप्ताह का समय लगेगा। वह भी तब जबकि प्रवासी श्रमिक समय पर काम पर लौट आएं। उद्योग का अनुमान है कि उनका 50 प्रतिशत श्रमबल अपने घरों को लौट गया है। राज्य की 59 में से ज्यादातर जूट मिलें श्रमिकों को ठेके पर रखती हैं। यानी काम नहीं होने पर उन्हें वेतन नहीं मिलता। भारतीय जूट मिल संघ के चेयरमैन राघव गुप्ता ने कहा कि बंद के दौरान बड़ी संख्या में श्रमिक अपने घर चले गए हैं। ''हमने उनसे 15 दिन में काम पर रिपोर्ट करने को कहा है। अभी हमें इंतजार करना होगा।'' यह पूछे जाने पर कि बिना उचित सार्वजनिक परिवहन के श्रमिक दूरदराज के क्षेत्रों से कैसे वापस लौटेंगे, गुप्ता ने कहा कि संघ इस मुद्दे को सरकार के समक्ष उठाएगा।
जूट मिलों के सूत्रों का कहना है कि घर लौटे श्रमिकों को स्थानीय लोगों से बदलना आसान नहीं है क्योंकि जूट मिलों का काम हर कोई नहीं कर सकता। इसके पूर्व भारत चैंबर ऑफ कॉमर्स के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा में वित्त राज्यमंत्री अनुराग ठाकुर ने भरोसा दिलाया कि बंगाल के उद्योगों के श्रमबल के संकट को दूर करने के लिए विशेष ट्रेनों की व्यवस्था की जाएगी। पश्चिम बंगाल के जूट मिल उद्योग के प्रतिनिधियों ने भी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर श्रमिकों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाने का अनुरोध करने का निर्णय लिया है। (एजेंसी, हि.स.)