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दिल्ली का बजट आंकड़ों की बाजीगरी : तिवारी
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हमारे संवाददाता
नई दिल्ली। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी ने कहा है कि आज दिल्ली सरकार द्वारा प्रस्तुत बजट-2018 लगातार चैथे वर्ष आंकड़ों की बाजीगरी का खेल हैं, एक बार पुन सरकार ने बिना संवैधानिक स्वीकृति लिए योजनाओं की घोषणायें की हैं जिनके चलते दिल्ली की जनता के हिस्से में केवल निराशा ही हाथ आयेगी। यह बजट प्रदूषण कम करे से लेकर राशन वितरण के लिए निजी कम्पनियों से सांठगांठ का बजट है। ऐसा लगता है कि केजरीवाल सरकार अब निजी कम्पनियों से किक बैक का खेल खेलने की तैयारी में। सरकार ने बजट को ग्रीन बजट कहने का प्रयास किया है पर इस किक बैक के खेल को देख कर लगता है कि यह रेड बजट है।
श्री तिवारी ने कहा है कि आज दिल्ली सरकार के वित्त मंत्री को विधानसभा में बजट पेश करते देख ऐसा लग रहा था कि मानो बजट नहीं पढ़ रहे उपराज्यपाल पर राजनीतिक टीका-टिप्पणी कर रहे हों जो इस सरकार की अराजक कार्य प्रणाली का प्रमाण है। ऐसी ही बातों के लिए इस सरकार को बार-बार राजनीतिक माफियां मागनी पड़ रही हैं।
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने कहा है कि दिल्ली के वित्त मंत्री का आज का बजट सुनते हुये मैं उस वक्त मुस्कुराये बगैर नहीं रह सका जब उन्होंने जी.एस.टी. के लाभ गिनवाये। यह वह सरकार है जिसके मुखिया अरविन्द केजरीवाल लगातार जी.एस.टी. को व्यापारियों की बर्बादी का कारण बताते रहे हैं। श्री तिवारी ने कहा है कि अपने बजट में एक बार फिर सरकार ने शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर बड़े-बड़े दावे किये हैं पर छोटे-छोटे सवालों के उत्तर देने में यह सरकार विफल है कि यदि शिक्षा में इतना सुधार हो रहा है जितना सरकार बजट में दावे कर रही है तो दिल्ली सरकार के स्कूलों में लगातार छात्रों की संख्या क्यों घट रही है ? इसी तरह सरकार ने स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत 1000 मोहल्ला क्लीनिक खोलने के सरकारी दावों की पोल वित्त मंत्री ने यह स्वीकार कर स्वयं खोल दी कि आज तीन साल बाद भी सरकार ने दिल्ली में केवल 164 मोहल्ला क्लीनिक खोले हैं। सरकार ने पुन शिक्षा एवं स्वास्थ्य के बजट में वृद्धि के दावे किये हैं पर दिल्ली की जनता यह जानना चाहती है कि गत वर्षों के इन दोनों मदों के बजट लेप्स क्यों हुये हैं ? अरविन्द केजरीवाल सरकार का यह बजट अनधिकृत कालोनियों के लोगों के लिए एक छलावा है। सरकार ने वहां विकास के लिए मात्र 1500 करोड़ रूपये का बजट दर्शाया है पर कालोनियों के नियमितिकरण के नाम पर सरकार चुप्पी साधे बैठी है। सरकार दिल्ली के परिवहन व्यवस्था में ई-बसों एवं छोटे ई-वाहन के ख्वाब बेच रही है पर सरकार ने बजट में वाहनों के ई-चार्जिंग की कोई व्यवस्था नहीं रखी है।सरकार प्रदूषण कम करने के लिए नई अंतर्राष्ट्रीय योजनायें प्रस्तुत कर रही है पर यह बताने में नाकाम है कि दिल्ली में प्रदूषण सेस से एकत्र राशि क्यों नहीं खर्च कर पा रही है ?
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