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हर लोकतंत्र में अपना जंतर-मंतर है

👤 Veer Arjun Desk 6 | Updated on:11 Oct 2017 6:33 PM GMT
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पिछले करीब ढाई दशक से जंतर-मंतर आंदोलनकारियों का केंद्र बना हुआ है पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के ताजा निर्देश के बाद जंतर-मंतर पर धरना-प्रदर्शन पर रोक लग जाएगी। एनजीटी ने जंतर-मंतर रोड पर धरना और प्रदर्शन करने पर स्थायी रोक लगाकर संदेश दिया है कि लोकतंत्र में काक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पूर्ण नहीं है। वह साफ-सुथरे और शांत जीवन के अधिकार से बड़ी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट की एक शाखा के रूप में काम करने वाला एनजीटी प्रदूषण हटाने, पर्यावरण को बचाने और साफ-सफाई कायम रखने के आदेश देता रहता है। सरकारें कभी उसे लागू करती हैं और कभी मुंह फेर लेती हैं। इसके बावजूद एनजीटी का 1981 के वायु प्रदूषण कानून के उल्लंघन के आधार पर दिया गया यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू किया गया है। एनजीटी ने जिस कारण जंतर-मंतर को प्रदर्शनकारियों से मुक्त करने का निर्देश दिया है, उससे असहमत नहीं हुआ जा सकता। हमें अभिव्यक्ति की आजादी भी चाहिए और साफ-सुथरा पर्यावरण भी। लगातार लाउड स्पीकर चलने के कारण वहां ध्वनि प्रदूषण तो है ही, खुले में नहाने, पशुओं को बांधकर रखना तथा कूड़ा फेंकने के कारण समस्या भयावह हो गई है। पर यह भी मानना थोड़ा कठिन है कि प्रदर्शन स्थल को रामलीला मैदान में स्थानांतरित करना समस्या का समाधान है। बोट क्लब में आंदोलनकारियों द्वारा गंदगी फैलाने के कारण ही आंदोलनों का स्थान बदलकर जंतर-मंतर किया गया था। समस्या प्रदर्शनकारियों की इतनी नहीं है जितनी व्यवस्था की है। जिन लोगों पर जंतर-मंतर को साफ-सुथरा रखने की जिम्मेदारी थी, उन्होंने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। एनजीटी के इस फैसले का विभिन्न संगठनों और प्रदर्शनकारियों ने विरोध किया है और इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। जंतर-मंतर पर डटे प्रदर्शनकारियों का कहना है कि एनजीटी ने जगह छोड़ने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। इसी दौरान वह अपनी कार्रवाई करेंगे। चूंकि नई पीढ़ी जंतर-मंतर को वेधशाला के बजाय आंदोलनकारियों के गढ़ के रूप में ज्यादा जानती है और अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से लेकर निर्भया के साथ हुए अत्याचार के खिलाफ आक्रोश जैसे अनेक आंदोलनों का जंतर-मंतर गवाह रहा है, लिहाजा उसे प्रदर्शनकारियों से मुक्त कराने का यह संदेश भी नहीं जाना चाहिए कि विरोध की आवाज को दबाया जा रहा है। सिर्फ यही नहीं कि संसद के नजदीक होने के कारण देश के किसी भी हिस्से से दिल्ली में अपनी आवाज लोगों तक पहुंचाने वाले लोग यहां आते हैं, बल्कि इस दौरान हमारी विद्रूप व्यवस्था का रूपक भी बन गया, जिसके एक कोने में अगर कोई वर्षों से शराब के खिलाफ आंदोलन कर रहा था तो कहीं पुलिस अत्याचार के खिलाफ एक महिला बैठी है। हर देश में ऐसा एक स्थान है जहां जनता अपनी आवाज उठा सकती है।
-अनिल नरेन्द्र

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