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इधर कुआं उधर खाई

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:14 Oct 2018 5:45 PM GMT

इधर कुआं उधर खाई

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चुनाव प्रचार के दौरान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने देश से वादा किया था कि वे खुदकुशी कर लेंगे किन्तु अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) से कर्ज लेने नहीं जाएंगे लेकिन उनकी यह प्रतिज्ञा अब उन्हीं की सरकार को स्मरण नहीं रही है। पाकिस्तान के पास इतना भी पैसा नहीं बचा है कि वह अपने नागरिकों के लिए विदेश से खाने का सामान खरीद सके। पाकिस्तान के पास इस समय सिर्प पांच अरब डॉलर बचे हैं जिससे वह एक महीने तक जिन्दा रह सकता है और यदि पाकिस्तान को कहीं से कर्ज न मिला तो पाकिस्तान कंगाल हो जाएगा और उसके पास खाना आयात करने के लिए भी पैसे नहीं होंगे।

अपनी इस समस्या को खत्म करने के लिए पाकिस्तान अपनी मूंछ नीचे करके आईएमएफ के पास पहुंचा तो मगर आईएमएफ ने जो शर्तें रखीं उससे तो पाकिस्तान और भी बर्बाद हो जाएगा। आईएमएफ ने पाकिस्तान के सामने तीन शर्तें रखीं। (1) जो कर्ज आईएमएफ पाकिस्तान को देगा उस पैसे का इस्तेमाल पाकिस्तान चीन का कर्ज चुकाने के लिए नहीं कर सकता। (2) पाकिस्तान अपने बाजार को दूसरे देशों के लिए पूरी तरह खोल देगा और किसी प्रकार का टैरिफ नहीं लगाएगा जिससे पाक कंपनियों को नुकसान होगा। (3) आईएमएफ ने तीसरी शर्त यह रखी कि पाकिस्तान अपने रुपए की कीमत को घटाएगा और एक डॉलर की कीमत 150 रुपए तक ले जाएगा।

यदि तीनों शर्तों को पाकिस्तान मान लेता है तो वह और भी कंगाल हो जाएगा और यदि नहीं मानता तो बर्बादी कुछ दिनों के लिए भले ही रुक जाए किन्तु अर्थव्यवस्था का फिर से उठ पाना असंभव होगा।

यह सही है कि आईएमएफ पर अमेरिका का असर होता है किन्तु जैसा कि पाकिस्तान की मीडिया और सरकार आईएमएफ की शर्तों के लिए अमेरिका पर आरोप लगा रही है उससे इस्लामाबाद की मुश्किलें और बढ़ेंगी। पाकिस्तान के शासकों ने आंख मूंद कर चीन से कर्ज लिया। बताया तो यह भी जाता है कि कर्ज लेने के लिए भी चीन ने पाक सरकार के मंत्रियों एवं अफसरों को घूस दी थी। हर वर्ष चीन लगभग 11 अरब डॉलर पाकिस्तान से अपना कर्ज निचोड़ता है। यदि आईएमएफ से मिली राशि को पाकिस्तान चीन को नहीं देता तो चीन का कर्ज चुकाने के लिए वह कहां से लाएगा रुपए। पाकिस्तान अपने किसानों से जमीन छीनकर चीन की कंपनियों को दे रहा है। इसलिए देश के किसान सरकार और फौज से नाराज हैं। दूसरी तरफ देश की औद्योगिक इकाइयां भी नाराज हैं। कारण है कि देश में निर्माण कार्य के लिए उपयोग में लाई जाने वाली सामग्री चीनी कंपनियां अपने देश से ही खरीदती हैं। इससे निर्माण क्षेत्र में देशी कंपनियों की भागीदारी न होने से पाक अर्थव्यवस्था ही प्रभावित हो रही है।

पाकिस्तान को भारत ने मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा लगभग दो दशक पूर्व ही दे दिया था किन्तु पाकिस्तान ने आज तक भारत को यह दर्जा नहीं दिया है। कारण है कि पाकिस्तान में भारत सहित सभी बड़े देशों के प्रति नीति-निर्धारण में फौज शामिल होती है। पाक फौज की पोजीशन भारत, अमेरिका और कुछ अन्य देशों के प्रति इक्सट्रीम पर है इसलिए आईएमएफ की दूसरी शर्त को मानना पाकिस्तान के लिए आसान नहीं है।

जहां तक तीसरी शर्त का सवाल है तो मौजूदा वक्त में ही पाकिस्तान में इस वक्त एक डॉलर की कीमत 133.25 पाकिस्तानी रुपया है। यद्यपि निर्यात बढ़ाकर विदेशी मुद्रा के लिए यह कीमत सरकार को ही निर्धारित करनी पड़ी थी किन्तु यदि एक डॉलर की कीमत 150 पाकिस्तानी रुपए करनी पड़ी तो पाक अर्थव्यवस्था खोखली हो जाएगी।

पाक अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आईएमएफ से कर्ज मिलने की स्थिति में पाक सरकार को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स को लागू करना होगा। इसके तहत पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत को बढ़ाना होगा तथा बिजली का बिल दोगुना करना होगा। मौजूदा वक्त यानि नौ अक्तूबर तक पाकिस्तान में पेट्रोल का दाम 109.07 रुपए प्रति लीटर, हाई स्पीड डीजल 106.57 रुपए प्रति लीटर, लाइट स्पीड डीजल 75.96 रुपए प्रति लीटर, केरोसिन 83.5 रुपए प्रति लीटर है। यदि पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें और बढ़ाई गईं तो हर वस्तु की कीमत बढ़ जाएगी। देश में त्राहि-त्राहि मच जाएगी।

दरअसल पाकिस्तान मान चुका है कि चीन और सऊदी अरब अब पाकिस्तान की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाएंगे। अमेरिका की नाराजगी के कारण कोई भी यूरोपीय देश पाकिस्तान की आर्थिक मदद के लिए आगे आने वाला नहीं है। इसलिए इस्लामाबाद की मजबूरी है कि वह इमरान खान की खुदकुशी की प्रतिज्ञा को भूल कर आईएमएफ की शरण में जाए।

पाकिस्तान में इन दिनों वहां के बुद्धिजीवी, पत्रकार एवं उदारवादी राजनेता आत्ममंथन की मुद्रा में हैं। वे अखबारों में खुलकर लेख लिख रहे हैं और टीवी चैनलों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए एक बात जरूर कहते हैं कि पाकिस्तान में आई मुसीबतों का कारण खुद सेना और सरकार है। यदि अमेरिका और भारत ने हक्कानी नेटवर्प, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों की वजह से पाकिस्तान को खलनायक घोषित किया हुआ है तो इस्लामाबाद को गंभीरता से विचार करना होगा कि वे इन आतंकी संगठनों को क्यों पाले हुए है। पाकिस्तान में अब लोग यह महसूस करने लगे हैं कि कश्मीर को देश की जनता की भावनाओं का मुद्दा बड़ी चालाकी से सेना ने ही बनाया है और इसी वजह से सेना प्रतिष्ठान आतंकी संगठनों की सार्थकता एवं प्रासंगिकता को साबित करता रहता है।

बहरहाल इतना तो तय है कि पाकिस्तान बिना आईएमएफ के कर्ज के अपनी अर्थव्यवस्था को जीवित नहीं रख सकता और यदि अर्थव्यवस्था को जीवित रखना है तो उसे अपने मौजूदा रवैये में बदलाव करना होगा क्योंकि भैंस बेच कर वह सरकार नहीं चला सकता।

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