Home » संपादकीय » राफेल सौदे में अनियमितताओं को साबित करने का दायित्व अब विपक्ष पर

राफेल सौदे में अनियमितताओं को साबित करने का दायित्व अब विपक्ष पर

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:15 Nov 2018 6:59 PM GMT
Share Post

बहुचर्चित राफेल विमान सौदे में केंद्र सरकार ने जो जवाब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है उससे तो विपक्ष को अब साबित करना होगा कि इस डील में कहां-कहां, कैसे-कैसे गड़बड़ी हुई है। कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष ने सरकार पर तमाम तरह के आरोप लगाए हैं। अब तक राफेल की कीमत पर चुप्पी साध रही मोदी सरकार ने सोमवार को सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह विमान कितने का पड़ा। सरकार ने यह भी सार्वजनिक कर दिया कि पूरा सौदा कितने में हुआ। हालांकि पिछली सुनवाई में केंद्र ने दलील दी थी की कीमत जैसी सूचनाएं गोपनीयता कानून के तहत आती हैं और हमने संसद को भी यह जानकारी नहीं दी है। इस पर कोर्ट ने सरकार से हलफनामा मांगा था। सोमवार को दाखिल रिपोर्ट में सरकार ने बताया कि यूपीए की 2013 की रक्षा खरीद प्रक्रिया से ही 36 राफेल की डील हुई है। इसे 24 अगस्त 2016 को सुरक्षा पर कैबिनेट ने मंजूरी दी। सालभर में फ्रांसीसी पक्ष के साथ 74 बैठकों में इसे फाइनल किया गया और 23 सितम्बर 2016 को भारत और फ्रांस की सरकारों के बीच दस्तखत हुए। दसॉ के मुकाबले भारत में राफेल बनाने के लिए एचएएल (हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) ने 2.7 गुना वक्त मांगा, इसलिए उनसे समझौता नहीं हो सका था। कीमत को लेकर कांग्रेस के आरोपों पर फ्रांसीसी कंपनी दसॉ के सीईओ एरिक ट्रैपियर ने बताया कि भारत को इस सौदे में पहले विमान के मुकाबले नौ प्रतिशत सस्ता मिल रहा है। आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच फ्रांसीसी कंपनी का स्पष्टीकरण महत्वपूर्ण है। दसॉ के सीईओ ने सौदे से जुड़े हर पहलू पर खुलकर बात की। दसॉ एविएशन ने दावा किया कि यह सौदा साफ-सुथरा और नौ प्रतिशत सस्ता है। ट्रैपियर ने एक साक्षात्कार में कहा कि 18 तैयार विमानों की जितनी कीमत है, उसी दाम में 36 विमानों का सौदा किया गया। दाम दोगुने होने चाहिए थे, पर चूंकि यह दो सरकारों के बीच करार हुआ और कीमतें उन्होंने तय कीं। इसलिए हमें भी नौ प्रतिशत कम दाम पर सौदा करना पड़ा। सीईओ ने कहा कि रिलायंस को ऑफसेट पार्टनर चुनने का फैसला उनकी कंपनी का था। रिलायंस के अलावा भी 30 कंपनियां उनके साथ जुड़ी हुई हैं। कांग्रेस के आरोपों पर ट्रैपियर ने कहा कि मैं झूठ नहीं बोलता। जो सच मैंने पहले कहा था, वही आज भी कह रहा हूं। मेरी छवि झूठ बोलने वाले की नहीं है। भारतीय वायुसेना इस सौदे से खुश है। उधर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि सरकार ने हलफनामे में माना है कि उन्होंने बिना वायुसेना से पूछे कांट्रेक्ट बदला और 30 हजार करोड़ रुपए अंबानी की जेब में डाला। पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस राफेल सौदे पर भ्रम फैलाने की कोशिश कर रही है। यूपीए सरकार ने सौदे को लटकाए रखा जबकि यह वायुसेना के लिए जरूरी था। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में राफेल सौदे की सीबीआई जांच हो या नहीं, इस पर बुधवार को चार घंटे की मैराथन सुनवाई के बाद अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के साथ सरकार की सफाई और वायुसेना को भी सुना। हालांकि राफेल की कीमत को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे याचिकाकर्ताओं को तब झटका लगा, जब कोर्ट ने कहा कि जब तक हम खुद कीमत सार्वजनिक न करें, तब तक इस पर कोई चर्चा नहीं होगी। रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट पार्टनर बनाने पर याची प्रशांत भूषण ने कहा कि रिलायंस डिफेंस के पास ऐसी क्षमता नहीं है। उसे फायदा पहुंचाने के लिए भारत सरकार के कहने पर ऐसा हुआ है। रिलायंस डिफेंस को पार्टनर बनाने के लिए नियम बदले गए हैं। यह करप्शन है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि 2015 में ऑफसेट गाइडलाइंस क्यों बदली गईं? रक्षा मंत्रालय के अफसर ने कहा कि नियमों में तो 2014 में बदलाव हुए थे, उन्हें 2015 में मंजूर किया गया। जस्टिस केएम जोसेफ ने सवाल उठाया कि अगर ऑफसेट पार्टनर देरी करता है तो कौन जिम्मेदार होगा? इस पर अफसर ने कहा कि ऑफसेट पार्टनर के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। इस पर कोर्ट ने कहा कि कांट्रेक्ट के तहत तीन महीने में ऑफसेट की डीटेल (दसॉ को) देनी है, तो आप कैसे कह सकते हैं कि आपको स्पष्ट जानकारी नहीं मिली है? जजों ने पूछा कि वायुसेना से कोई है क्या? इसके बाद एयर मार्शल व एयर वाइस मार्शल को बुलाया गया। उनसे पूछाöआखिरी बार जेट विमान कब शामिल हुए थे? अफसरों ने बताया कि आखिरी खेप 1985 में मिराज की मिली थी, पड़ोसी देशों की तैयारियों को देखते हुए आधुनिक विमानों की सख्त जरूरत है। याची ने कहा कि यह डील भारत-फ्रांस की सरकारों के बीच नहीं है जैसे चीन युद्ध के दौरान थी। यह दसॉ के साथ कारोबारी सौदा व समझौता है। केंद्र ने माना कि फ्रांस की सरकार ने 36 विमानों की कोई गारंटी नहीं दी है, लेकिन उससे लेटर ऑफ कंफर्ट मिला है, जो गारंटी जैसी ही है। सरकार की ओर से अटार्नी जनरल ने राफेल सौदे के खिलाफ सुनवाई पर सवाल उठाते हुए कहाöकोर्ट यह फैसला नहीं कर सकती कि कौन-सा विमान और कौन-से हथियार खरीदे जाएं, यह विशेषज्ञों का काम है। ज्यूडिश्यरी रिव्यू नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि अगर दाम की पूरी जानकारी सामने आ जाए तो विरोधी उसका फायदा उठा सकते हैं। देखना अब यह है कि क्या पूरे सौदे की विभिन्न बिन्दुओं पर सच्चाई सामने आएगी या नहीं? क्या दूध का दूध-पानी का पानी होगा? विपक्ष के दो प्रमुख आरोप थे। पहला यह कि इस सौदे में मानक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट कांट्रेक्ट देने के लिए सरकार ने कहा था। सरकार ने दोनों आरोपों का जवाब दिया है। इसके बावजूद विपक्ष अपनी बात पर अड़ा हुआ है। अब चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट के आधीन है इसलिए उम्मीद की जाती है कि माननीय अदालत इन सभी मुद्दों पर अपना फैसला देगी। पर इतना जरूर है कि सरकार के जवाब से विपक्ष बैकफुट पर है और उसे साबित करना होगा कि यह सिर्प चुनावी मुद्दा नहीं है, इसमें अनियमितताएं हुई हैं। इसे साबित करने का दायित्व अब विपक्ष पर है।

-अनिल नरेन्द्र

Share it
Top