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अयोध्या : सरकार को ही आगे बढ़ना होगा

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:25 Nov 2018 5:39 PM GMT

अयोध्या : सरकार को   ही आगे बढ़ना होगा

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मध्यप्रदेश में तीन दिन बाद और राजस्थान में बारह दिन बाद विधानसभा के चुनाव हैं किन्तु अयोध्या में रामजन्म भूमि का मुद्दा गरमाया हुआ है। अयोध्या में विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) द्वारा आयोजित धर्म सभा में धर्मगुरुओं ने दो टूक शब्दों में फैसला लिया है कि वे विवादित जमीन में किसी और को हिस्सा नहीं देंगे। पूरी जमीन रामलला विराजमान की ही रहेगी। इसका मतलब यह है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की अयोध्या पीठ के फैसले को मानने से धर्म संसद ने इंकार कर दिया जिसने रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में विवादित जमीन का बंटवारा किया था।

इलाहाबाद हाई कोर्ट के बंटवारे का फार्मूला अस्वीकार करके वीएचपी और धर्मगुरुओं ने न सिर्प सरकार पर दबाव बढ़ाया बल्कि मुस्लिम समाज पर भी इस बात को गंभीरता से सोचने के लिए दबाव बढ़ाया है कि अयोध्या विवाद को खत्म करने के लिए मुस्लिम समाज क्या योगदान दे सकता है। धर्म सभा द्वारा यह प्रस्ताव कि सुन्नी वक्फ बोर्ड अपना मुकदमा वापस ले, सुनने में हास्यास्पद जरूर है किन्तु यदि मुस्लिम समाज और धर्मगुरु मिलकर कोई रास्ता निकालते तो शायद यह संभव था। वीएचपी की धर्म सभा में तमाम ऐसी बातें की गई हैं जिनसे स्पष्ट संदेश यही जाता है कि अब मंदिर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा नहीं की जा सकती।

यही सही होता कि यदि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे को प्राथमिकता देकर अब तक फैसला कर देती तो शायद हिन्दू संगठनों एवं धर्मगुरुओं में इतनी छटपटाहट न होती। यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हल हो सकता था किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने उसके लिए और सारे मामले महत्वपूर्ण हैं कहकर दोनों समुदायों को मिलकर इस ज्वलंत मुद्दे को हल करने का अवसर भी दिया है।

राम मंदिर का विरोध करने वाली पार्टियांöकांग्रेस, सपा और बसपा भी अब इस मुद्दे पर चुप्पी साधना ही उचित समझ रही हैं। इससे एक बात तो साफ है कि राम मंदिर निर्माण के लिए सकारात्मक माहौल बनता जा रहा है। वीएचपी के लिए यह चुनौती है कि वह किसी भी हालत में सामाजिक विद्वेष पैदा न होने दे।

दरअसल वीएचपी को उम्मीद थी कि जमीन के मालिकाना हक का फैसला सुप्रीम कोर्ट से आ जाएगा तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी किन्तु सुप्रीम कोर्ट में वकीलों का एक ऐसा जाल है जो मुद्दे को भटकाने में सक्षम है। रही-सही कसर तब पूरी हो गई जब मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने स्पष्ट कर दिया कि अब जब पीठ अगले वर्ष गठित होगी तो वही तारीख निर्धारित करेगी। इससे आम जनता में भी यह संदेश गया कि लो भाई न्यायपालिका के लिए तो रामजन्म भूमि का मुद्दा एक सामान्य मामले से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है जबकि हिन्दुओं के लिए यह आत्मसम्मान और श्रद्धा का विषय है। वीएचपी को लगा कि यह मुद्दा कहीं ठंडे बस्ते में न चला जाए इसलिए उसने धर्मगुरुओं को आगे करके जन भावनाओं को उद्वेलित करने का जो कार्यक्रम बनाया है उसके दोनों ही पक्ष हैं। पहली बात तो यह है कि वीएचपी ने सुप्रीम कोर्ट, सरकार और मुस्लिम समाज को चेतावनी दी है जो लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है। किन्तु इसका दूसरा पक्ष यह है कि सुप्रीम कोर्ट, सरकार और मुस्लिम समाज हिन्दू समाज के धैर्य की परीक्षा न ले।

सच तो यह है कि वीएचपी के प्रस्तावों में सरकार पर ही सीधे इस बात के लिए दबाव डालने की कोशिश की जा रही है कि वह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश अथवा विधेयक द्वारा रास्ता साफ करे। मजे की बात तो यह है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और दोनों उपमख्यमंत्री ऐसा बयान दे रहे हैं कि इस बात की पुष्टि होती है कि केंद्र सरकार राम मंदिर निर्माण हेतु कुछ सकारात्मक विधिक कदम उठा रही है। इससे साधु-संत भी गद्गद् हैं और उन्हें यह भी पता है कि केंद्र व राज्य सरकार वीएचपी एवं साधु-संतों के खिलाफ कोई कार्रवाई करने वाली नहीं है। इसलिए वे अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। वे आवाज इसलिए भी बुलंद कर रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि भाजपा सरकारें वीएचपी और साधु-संतों की भावनाओं के विरुद्ध जाने का साहस नहीं कर सकतीं। राजस्थान की चुनावी रैली में प्रधानमंत्री का यह कहना कि कांग्रेस राम मंदिर निर्माण में बाधा उत्पन्न करती है और अमित शाह का यह कहना कि भाजपा के चाहने से राम मंदिर बनना होता तो बहुत पहले ही बन गया होता, इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि भाजपा मंदिर निर्माण में देरी के लिए जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। संभव है कि भाजपा के सभी शीर्ष नेताओं ने मंदिर निर्माण पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के अयोध्या में जाकर मंदिर निर्माण पर तिथि पूछने के बाद बयान देना शुरू कर दिया किन्तु सच यह है कि जैसे-जैसे राम मंदिर निर्माण का आंदोलन तेजी पकड़ेगा वैसे-वैसे राजनीति भी तेज होगी। शिवसेना की तरह ही कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी पार्टियां भाजपा को कठघरे में खड़ा करेंगी और भाजपा जवाब में विपक्ष पर हमला करेगी। संसद के शीतकालीन सत्र में राज्यसभा में राकेश सिन्हा प्राइवेट बिल लाएंगे। भाजपा समर्थन करेगी किन्तु विपक्ष साथ नहीं देगा तो इस मुद्दे पर भी राजनीति शुरू होगी। इसके बाद सभी पार्टियां 2019 के आम चुनाव की तैयारी में जुट जाएंगी और सुप्रीम कोर्ट में मार्च तक पीठ का गठन हो भी गया तो यह मुद्दा 2019 के बाद ही सुना जाएगा। इस तरह वीएचपी और साधु-संत अपना गुस्सा निकाल कर शांत हो जाएंगे और राजनीतिक पार्टियां फिर चुनाव में भगवान राम को लेकर जाएंगी।

आवश्यकता है कि इस लंबित मुद्दे का समाधान निकालने के लिए सभी पक्ष गंभीरता से एक-दूसरे की भावनाओं को महसूस करते हुए जल्दी से जल्दी समाधान निकालने की कोशिश करें। सीधी बात यह है कि यदि बातचीत से यह मुद्दा हल नहीं होता और सुप्रीम कोर्ट के प्रति मंदिर समर्थक संगठनों एवं साधु-संतों में अविश्वास पैदा होता रहा तो गुत्थी सुलझेगी कैसे? सरकार यह तो कहकर जिम्मेदारी से मुक्त हो नहीं सकती कि मंदिर उसके लिए प्राथमिकता नहीं है। सरकार को इस जटिल मुद्दे का समाधान करना ही होगा अन्यथा जिस तरह उसे चिढ़ाने के उद्देश्य से विरोधी तारीख पूछ रहे हैं उसी तरह संत समाज भी निराश होगा और नए सिरे से राम मंदिर आंदोलन शुरू हुआ तो एक बार फिर 1990 के दशक की पुनरावृत्ति होगी जो हिन्दुस्तान के समाज के लिए घातक सिद्ध होगा। इसलिए सरकार चाहे मुस्लिम समाज से बात करे या विधिक विकल्प की तरफ बढ़े।

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