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सत्यपाल मलिक ने साबित कर दिया कि वह किसी के रबड़ स्टांप नहीं हैं

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:29 Nov 2018 8:04 PM GMT
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आमतौर पर राज्यपालों को केंद्र का रबड़ स्टांप कहा जाता है जो हर महत्वपूर्ण फैसला केंद्र सरकार के अनुसार करते हैं। उनकी नियुक्ति केंद्र सरकार सोच-समझ कर करता है ताकि जरूरत पड़ने पर वह उनकी इच्छानुसार चले। पर कभी-कभी ऐसे राज्यपाल भी आ जाते हैं जो चुनौती का मुकाबला अपने विवेक से कर लेते हैं और ऐसा करने में वह केंद्र की इच्छा को नजरंदाज कर लेते हैं। इसीलिए केंद्र अकसर ऐसे नेताओं को राज्यपाल बनाते हैं जो या तो उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता हों या फिर भरोसेमंद नौकरशाह हों, जनरल हों। ऐसा कम ही होता है कि केंद्र किसी राजनीतिक नेता को वह भी जो उसकी पार्टी का न हो को राज्यपाल बनाए। पर जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार ने ऐसा ही किया है कि श्री सत्यपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया। सत्यपाल मलिक ने एक ऐसा फैसला किया जिसकी केंद्र को कभी उम्मीद नहीं थी। मामला था सूबे में नई सरकार बनाने का और राष्ट्रपति शासन समाप्त करने का। केंद्र चाहता था कि सूबे में पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन के नेतृत्व में सरकार बने जिसका समर्थन भाजपा करे। सज्जाद लोन कई दिनों से पीडीपी के विधायकों को तोड़ने की कवायद में लगे हुए थे। पर राज्यपाल ने न तो लोन को मौका दिया और न ही पीडीपी-कांग्रेस गठबंधन को जिसको नेशनल कांफ्रेंस बाहर से समर्थन देना चाहती थी। सत्यपाल मलिक ने शनिवार को ग्वालियर में आयोजित एक कार्यक्रम में 21 नवम्बर को राज्य विधानसभा भंग करने के फैसले पर अपना पक्ष रखा। जम्मू-कश्मीर विधानसभा भंग करने पर गवर्नर के बयान से सियासी बवाल खड़ा होना स्वाभाविक ही है। गवर्नर ने पहले यह कहकर सबको चौंका दिया कि यदि मैं दिल्ली की तरफ देखता तो मुझे सज्जाद लोन को मुख्यमंत्री बनाना पड़ता। ऐसा करता तो इतिहास मुझे बेइमान के रूप में याद करता और इतिहास में बेइमान के तौर पर दर्ज होना नहीं चाहता था। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार सोशल मीडिया के जरिये नहीं बनती है। जबकि सज्जाद लोन और महबूबा मुफ्ती दोनों ने इनका सहारा लिया। राज्यपाल ने कहा कि लोन कह रहे हैं कि उन्होंने व्हाट्सएप पर अपना पत्र मुझे भेजा था और महबूबा ने कहा कि उन्होंने सरकार बनाने का दावा ट्वीट करके पेश किया। उन्होंने कहा यह पता नहीं था कि सरकारें व्हाट्सएप संदेश पर बनती हैं? सरकार बनाने का दावा व्हाट्सएप पर पेश नहीं होता है। राज्यपाल ने कांग्रेस, पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस की नीयत पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि अगर उन्हें सरकार बनानी ही थी तो दिन में ही राजभवन आकर मुझसे मिल सकते थे। उन्होंने कहा कि उस दिन ईद की छुट्टी थी, क्या वह उम्मीद करते हैं कि राज्यपाल फैक्स मशीन के पास बैठकर उनके फैक्स का इंतजार करते? अगर पीडीपी प्रमुख महबूबा और एनसी नेता उमर सरकार बनाने पर गंभीर होते तो वे मुझे फोन कर सकते थे या चिट्ठी भेज सकते थे। गवर्नर सत्यपाल मलिक ने साबित कर दिया कि वह एक सियासी गवर्नर हैं, किसी पार्टी या सरकार के रबड़ स्टांप नहीं। उनके इस फैसले पर सियासी बवाल जरूर होगा।

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