दबाव की कूटनीति
चीन पहले की तरह भारत को अब आंखें तो नहीं दिखाता किन्तु अरुणाचल प्रदेश को लेकर वह जैसा माहौल बनाना चाहता है वह बेहद खतरनाक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब शनिवार को रणनीतिक महत्व के अरुणाचल प्रदेश में सेला सुरंग का शिलान्यास कर रहे थे तो चीन ने यह बयान देकर कि संवेदनशील सीमावर्ती प्रदेश का भारतीय नेताओं का इस वक्त का दौरा दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को और अधिक उलझा देगा, अपने झूठ से कूटनीतिक दबाव डालने की कोशिश की है। चीन समझता है कि उसके इस बयान का भारत सरकार पर कोई प्रभाव पड़ने वाला नहीं है किन्तु चीन की यह प्रवृत्ति दबाव डालकर बारगेनिंग या समझौता करने की है इसीलिए उसने पिछले एक दशक से अरुणाचल प्रदेश को विवादित क्षेत्र बताने की नई रणनीति अपनाई है।
असल में शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अरुणाचल प्रदेश में जिस सेला सुरंग का शिलान्यास किया है वह तवांग घाटी से हर मौसम में नागरिकों एवं सैन्य बल को सम्पर्प मुहैया कराएगी। सैनिकों के लिए इस सुरंग के बन जाने के बाद चीन से लगती सीमा तक पहुंचने में आसानी हो जाएगी। इस सुरंग के बनने की खबर से चीन का तिलमिलाना स्वाभाविक है किन्तु आज भारत की स्थिति पहले जैसी नहीं है। भारत ने भी चीन को उसी की भाषा में जवाब देते हुए कहा कि अरुणाचल प्रदेश अन्य राज्यों की तरह भारत का एक राज्य है और भारत का हर नेता इस राज्य का दौरा करता रहा है।
चीन भारत से लगती सीमा को विवादास्पद बताकर अपनी शर्तों पर समझौते करता रहा है। उसने सिक्किम में भी इसी तरह टांग अड़ाए रखा जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तिब्बत से अपना दावा छोड़ा तब जाकर चीन ने सिक्किम के भारत में विलय को मान्यता दी। अब वह कहता है अरुणाचल प्रदेश तो चीन का हिस्सा है क्योंकि तिब्बत चीन का अभिन्न अंग हो चुका है और अरुणाचल प्रदेश तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा है इसलिए वह भी चीन का ही हिस्सा हुआ। यदि इस तर्प को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय मान्यता दे दे तो हर पड़ोसी देश का एक दूसरे के क्षेत्र पर अवैध दावा वैध हो जाएगा। चीन का यह कुतर्प दुनिया की मान्य परंपराओं के विरुद्ध है। चीन ने जिस तिब्बत पर बलपूर्वक कब्जा किया है वह चीन का कभी भी हिस्सा नहीं रहा है। मतलब यह है कि जिस क्षेत्र पर उसका बलपूर्वक अधिकार विवाद का विषय बना हुआ हो उसी विवादित क्षेत्र का हिस्सा बताकर चीन यदि भारत के एक राज्य पर अपना अधिकार जता रहा है तो इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है कि आखिर उसका लक्ष्य क्या है? सच तो यह है कि चीन भी जानता है कि वह चाहे जितना अरुणाचल प्रदेश पर दावा करे किन्तु भारत उससे दबने वाला नहीं है। अरुणाचल प्रदेश की एक इंच भी भूमि चीन अपने इस तर्प के बल पर हासिल नहीं कर सकता। चीन तो सिर्प यह चाहता है कि भारत उसके वन बेल्ड वन रोड (ओबोर) को मान्यता दे। उसने कूटनीतिक पहल के तौर पर ही गुलाम कश्मीर को पहली बार भारतीय मानचित्र में दिखाया है। चीन ने अब तक भारत को घेरने की जो रणनीति डेढ़ दशक पूर्व तक अपनाया था उसको भारत ने कई देशों में असफल कर दिया। पाकिस्तान में भी चीन की चालबाजियों का विरोध शुरू हो गया है। चीन अपनी जिस रणनीति को अजेय समझता था उसकी असफलता के लिए वह भारत की सक्रिय रणनीति को मानता है फिर भी भारत की वैदेशिक गुटबंदी से वह भारत के खिलाफ प्रत्यक्ष रूप से आक्रामकता से बचता जरूर है किन्तु कूटनीतिक दबाव डालकर अपने हित साधता है। अपनी इसी कूटनीति के तहत चीन भारत पर अरुणाचल प्रदेश को लेकर दबाव बनाए हुए है। भारत ओबोर पर चीन का जिस दिन समर्थन कर देगा उसी दिन वह अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा छोड़ देगा।