जहरीली शराब से कोहराम
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में गत सप्ताहांत शुक्रवार और शनिवार को 114 लोग जहरीली शराब पीने से मर गए। दोनों राज्यों में जहां हलचल मची है वहीं मृतक परिवारों में कोहराम मचा है। दोनों राज्य सरकारों ने सहायता राशि घोषित करके दोनों राज्यों में इस घटना की जांच के लिए एक संयुक्त समिति बनाने की घोषणा की है। मजे की बात तो यह है कि दोनों राज्यों के 17 गांवों के सैकड़ों लोगों की जानें लेने वाले अपराधी चमकार Eिसह उर्प चमगादड़ कुख्यात शराब तस्कर है और उसकी दोनों ही राज्यों के आबकारी विभाग एवं पुलिस तंत्र में अच्छी पकड़ है। ऐसी मौतें जहरीली शराब पीने से होती रहती हैं। 2009 में देवबंद में भी जहरीली शराब पीकर 49 लोग मरे थे और सैकड़ों बीमार हो गए थे। किन्तु उस वक्त के जिम्मेदार लोगों पर प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई इसलिए वही घटना दोबारा हुई। यदि चमगादड़ पर भी प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई तो भविष्य में फिर इसी तरह की मौतें हो सकती हैं।
दरअसल कच्ची शराब महुआ और गुड़ से बनती है। इसके पीने से स्वास्थ्य पर तो प्रतिकूल असर पड़ता है किन्तु तत्काल मौत का खतरा नहीं होता। आदिवासी और अनुसूचित जाति की बस्तियों में इस तरह की शराब बनाने की घटनाएं होती रहती हैं। आबकारी विभाग के फील्ड अफसर कच्ची शराब बनाने वालों के खिलाफ कार्रवाई के तौर पर चालान काटते हैं, अर्थदंड लगाते हैं और यदि कोई व्यक्ति बार-बार कच्ची शराब बनाने के लिए आरोपी पाया जाता है तो उसके खिलाफ गैर-जमानती धाराओं में केस दर्ज कर गिरफ्तार करते हैं। जब महुआ और गुड़ में मीथल अल्कोहल नामक रसायन मिला दिया जाता है तब वही कच्ची शराब विषैली बन जाती है और पीने वालों की तत्काल मौत हो जाती है। मीथल अल्कोहल इसलिए मिलाई जाती है ताकि कच्ची शराब ज्यादा नशीली बन जाए। पहले कच्ची शराब अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की बस्तियों में शौक का प्रतीक था। पकड़े जाने पर मामला रफा-दफा हो जाया करता था। किन्तु बाद में पैसा कमाने वाले शराब तस्करों के गिरोह ने इसे कोराबार में बदल दिया। उसने कच्ची शराब के हल्के नशे को घातक रसायन की मिलावट करके जानलेवा विषैली बना दिया। ऐसा नहीं है कि ऐसे कुख्यात गिरोह को आबकारी विभाग या जिला प्रशासन के लोग नहीं जानते। सच तो यह है कि कार्रवाई करने से वरिष्ठ अधिकारी बचते हैं जबकि जूनियर अधिकारी शराब तस्करों से मिले होते हैं। सरकार जहरीली शराब के कारोबारियों पर प्रभावी कदम तभी उठा सकती है जब वह जिला प्रशासन एवं आबकारी विभाग के अधिकारियों को नियंत्रित एवं सक्रिय करें।