Home » संपादकीय » सबको समेटने का पयास है भाजपा का संकल्प पत्र

सबको समेटने का पयास है भाजपा का संकल्प पत्र

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:10 April 2019 6:45 PM GMT
Share Post

भारतीय जनता पार्टी ने सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव के पहले चरण के मतदान से तीन दिन पहले अपने घोषणा पत्र में राष्ट्रवाद को सबसे अहम बिंदु बताया है। कांग्रेस की न्याय स्कीम का मुकाबला करने के लिए बीजेपी ने किसानों, गरीब और छोटे दुकानदारों के लिए लोकलुभावन घोषणाओं का भी ऐलान किया है। पुलवामा में सीआरपीएफ पर हुए आतंकी हमले और बालाकोट में भारतीय वायुसेना द्वारा आतंकी शिविर पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद बीजेपी राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को चुनावी मुद्दा बनाने में काफी हद तक सफल रही है। बीजेपी के घोषणा पत्र में पाकिस्तान में हवाई हमले को भुनाने की कोशिश की गई है। राष्ट्रीय सुरक्षा को अहम बताते हुए कहा गया है कि सरकार न सिर्प आतंकवाद पर जीरो टॉयरेंस की नीति रखेगी, बल्कि देशभर के नागरिकता रजिस्टर से घुसपैठियों की समस्या हल करेगी। पूर्वोत्तर के लोगों की भाषाई, सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान की रक्षा के लिए सिटीजनशिप बिल पारित कराने का वादा भी किया है। बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में समाज के हर तबके के लिए कुछ न कुछ वादे जरूर किए हैं। जबसे कर्ज माफी का वादा कर कांग्रेस ने तीन राज्य जीते हैं, किसान हीरो हो गया है। अच्छी बात यह है कि पार्टियों का अंतत फोकस अन्नदाता की तरफ लौट रहा है। कांग्रेस ने पांच करोड़ गरीब परिवारों को 6 हजार रुपए महीने देने का वादा किया है। भाजपा संकल्प पत्र में कांग्रेसी वादों की तोड़ लाई है। छोटे किसानों के साथ दुकानदारों को भी पेंशन देकर भाजपा ने शहर और गांव दोनों के मतदाताओं को लुभाने की घोषणा की है। सबसे ज्यादा व्यावहारिक घोषणा यह है कि किसान केडिट कार्ड पर एक लाख तक का कर्ज बिना ब्याज के मिलेगा। लगभग हर किसान इसका इस्तेमाल करता है। किसान को सबसे ज्यादा फायदा भी इसी से होगा। फसल खराब हो गई तो वह बिना ब्याज का कर्ज दूसरे, तीसरे साल भी लौटा सकेगा। किसानों को फसल का दुगुना दाम दिलाने का भाजपा का वादा पुराना है। पिछली बार भी यह वादा किया गया था, लेकिन कुछ हुआ नहीं। पार्टी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाने का वादा भी किया है। लेकिन पूर्ण बहुमत के बावजूद वह इससे हिचक रही थी तो उसके पीछे की राजनीतिक बाध्यताओं को समझा जा सकता है। सकंल्प पत्र का हिस्सा बनाकर उसने नई बहस का मुद्दा जरूर बना दिया है। इसकी तीखी पकिया कश्मीर के नेताओं में देखने को मिल रही हैं। हालांकि धारा 370 पर अपने विचार पर केवल कायम रहने की बात कही गई है। इसका कारण इसे हटाने संबंधी संवैधानिक एवं राजनीतिक जटिलताएं भी हैं। किंतु जम्मू-कश्मीर के संबंध में किसी तरह की भावुकता भरा वादा इसमें नहीं है। इसका अर्थ हुआ कि यदि भाजपा सत्ता में लौटती है तो अलगाववादियों एवं मजहबी कट्टरपंथियों के पति कठोरता तथा सुरक्षा बलों की कार्रवाई इसी स्थिति में जारी रहेगी। पार्टी ने नागरिकता संशोधन बिल फिर लाने की बात की है, जिससे लगता है कि इन दोनों मुद्दों के जरिए वह उन राज्यों से अधिक पूरे देश को संदेश देना चाहती है। पधानमंत्री मोदी सीमांत और छोटे किसानों की 2022 तक आय दुगुनी करने की बात पहले भी कह चुके हैं। मगर संकल्प पत्र में इसकी व्यापक रूपरेखा पस्तुत नहीं की गई है, जिससे पता चलता है कि जीडीपी में महज 17 फीसदी की हिस्सेदारी करने वाला कृषि क्षेत्र में इस सुधार के लिए पैसा कहां से आएगा? राम मंदिर को लेकर भाजपा ने 2014 के घोषणा पत्र में भी जिक किया था। पर दुख से कहना पड़ता है कि इस बार भी कोई ठोस वादा नहीं किया गया। पिछली बार की तरह इस बार भी मामला सुपीम कोर्ट पर छोड़ दिया गया है। 2014 के घोषणा पत्र में रोजगार को बढ़ावा देने की बात कही गई थी। कहा गया था कि उद्योगों पर ध्यान दिया जाएगा और रिटेल क्षेत्र को आधुनिक चेहरा दिया जाएगा? इसके साथ लोन और मार्केट लिंकेज भी देने की बात कही गई थी। 2 करोड़ नौकरियां देने का वादा भी किया गया था। जमीनी हकीकत यह है कि पिछले पांच सालों में बेरोजगारी रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई है। नोटबंदी और जीएसटी के कारण सैकड़ों छोटी फैक्टरियां बंद हो गई हैं और हजारों लोग बेरोजगार हो गए हैं। कालेधन पर टास्क फोर्स बनाएंगे और विदेश में रखी गई ब्लैक मनी को वापस लाने की पकिया शुरू की जाएगी। टैक्स की दरों में कमी की जाएगी और टैक्स व्यवस्था को सिंपल बनाया जाएगा। सत्ता में आने के बाद बेशक एक टास्क फोर्स तो बनी पर विदेश में काला धन देश में लाने में कोई पगति नहीं हुई। यही वजह है कि जनता पार्टियों के घोषणा पत्रों को ज्यादा महत्व नहीं देतीं। वह काम देखती हैं। पिछले पांच वर्षों में भाजपा कितने कामों पर खरी उतरी इस पर ही वोट मिलेंगे, वादों पर नहीं।

Share it
Top