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निप्रभावी चुनाव आयोग ः आचार संहिता की धज्जियां उड़ीं

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:17 April 2019 5:51 PM GMT
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नेताओं की बिगड़ी जुबान अब कोई नई बात नहीं है। आए दिन देश के अलग-अलग हिस्सों से चुनाव प्रचार के दौरान ऐसी खबरें आती रहती हैं कि फ्लां नेता ने फ्लानी आपत्तिजनक बात कही तो फ्लां नेता ने मर्यादा का ध्यान नहीं रखा और फ्लां नेता ने तो फूहड़ता की सारी हदें पार कर दी हैं। अफसोस तो इस बात का है कि हमारा चुनाव आयोग चुप कर तमाशा देखता रहता है। ऐसा कोई सियासी दल नहीं है जिसने आचार संहिता को तमाशा बनाकर नहीं रखा है। चुनाव आयोग की भले किसको परवाह है। यह तो धन्य हो सुप्रीम कोर्ट का जिसने धर्म और जाति के आधार पर लोगों को बांट रहे नेताओं पर कार्रवाई नहीं करने पर चुनाव आयोग को सोमवार सुबह फटकार लगाई। सुबह 11 बजे सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाई और दोपहर तीन बजे चुनाव आयोग ने कार्रवाई शुरू कर दी। आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को 72 घंटे, बसपा प्रमुख मायावती को 48 घंटे, भाजपा नेता मेनका गांधी को 48 घंटे और सपा के आजम खान को 72 घंटे तक प्रचार नहीं करने के निर्देश दिए। योगी और मायावती का समय मंगलवार सुबह छह बजे शुरू हो गया, जबकि आजम खान और मेनका गांधी का समय सुबह 10 बजे से शुरू हुआ। चारों नेता न सियासी ट्वीट कर पाएंगे, न ही इंटरव्यू दे सकते हैं। योगी की तीन दिन में पांच रैलियां थीं, मायावती की 16 और 17 अप्रैल को चुनावी सभाएं थीं जिनमें अब वह भाग नहीं ले पाएंगी। बता दें कि योगी आदित्यनाथ ने नौ अप्रैल को मेरठ में कहाöअगर सपा-बसपा-कांग्रेस को अली पर भरोसा है तो हमें बजरंग बली पर भरोसा है। वहीं सात अप्रैल को मायावती ने देवबंद में कहा कि मुस्लिम समाज के लोगों से यह कहना चाहती हूं कि वोट नहीं बंटने दें। 13 अप्रैल को मायावती ने कहा कि बजरंग बली भी दलित हैं। अब तो बजरंग बली भी हमारे हैं और अली भी। वहीं बदजुबान आजम खान ने सारी हदें पार करते हुए 14 अप्रैल की टिप्पणी हम लिखना नहीं चाहते। उन्होंने जय प्रदा पर ऐसी टिप्पणी की कि उन पर 15 दिन में बदजुबानी के आठ केस दर्ज हो चुके हैं। भाजपा नेता भी कम नहीं हैं। हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणियों का जिक्र नहीं करना चाहते पर उन्हीं की सांसद मेनका गांधी ने 11 अप्रैल को सुल्तानपुर में मुस्लिम बहुल इलाके में सभा में कहा थाöमैं तो जीत ही रही हूं। आपने वोट नहीं दिया तो फिर देखना मैं क्या करती हूं। मैं कोई महात्मा गांधी की संतान नहीं हूं। महाराष्ट्र के नेता का बयान गौर करने लायक है। एक चुनावी सभा में उन्होंने स्वीकार किया कि चुनाव के दौरान आचार संहिता को मानने का दबाव रहता है, लेकिन भाड़ में गया कानून, आचार संहिता को भी हम देख लेंगे, जो बात हमारे मन में है, वह बात अगर मन से नहीं निकले तो घुटन-सी महसूस होती है। सोमवार को एक साथ ऐसी कई खबरें आईं जिनमें नेताओं के मन की ऐसी सोच का निचला स्तर सामने आ गया। आजम खान का तो हमने जिक्र किया ही है, पर हिमाचल प्रदेश के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ने मंच से बाकायदा कांग्रेस अध्यक्ष को गाली ही दे दी। इसी के साथ खबर आई कि चौकीदार चोर है, के नारे पर सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को नोटिस जारी कर दिया है। चुनाव आयोग के समक्ष नेताओं के बिगड़ते बोल तो चुनौती हैं ही पर ईवीएम मशीनों में पहले दौर में आई खराबी का भी वह सही हल नहीं ढूंढ पा रहा है। 21 विपक्षी दलों ने एक बार फिर ईवीएम के साथ वीवीपैट का मेल करने की मांग की है। चुनाव आयोग का कर्तव्य है कि वह देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराए। इस मामले में चुनाव आयोग का ट्रैक रिकॉर्ड मिलाजुला है। चुनाव आयोग यह दलील देता है कि उसके हाथ बंधे हुए हैं और उसके पास ऐसी पॉवर नहीं है कि वह इन धांधलियों को पूरी तरह से रोक सके और दोषियों को सख्त सजा दे सके? यह कुछ हद तक सही भी है क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल चुनाव आयोग को ज्यादा सख्ती करने की छूट नहीं देता। पर चुनाव आयोग के पास यह पॉवर तो है कि वह किसी दोषी का चुनाव रद्द कर दे। अगर एक भी नेता का चुनाव रद्द कर दिया जाए तो बाकी सबको संदेश मिल जाएगा। चुनाव आयोग पर यह भी आरोप लग रहा है कि वह सत्तारूढ़ दल का पिछलग्गू बन गया है, उसके हाथ में तोता बन गया है। यही बात सीबीआई, आयकर विभाग पर भी लागू होती है जो चुन-चुनकर विपक्षी नेताओं पर रेड डाल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले में सख्त है और चुनाव आयोग को फटकार लगाता रहता है। उम्मीद की जाए कि चुनाव के बाकी चरणों पर इन बदजुबानी पर अंकुश लगेगा।

-अनिल नरेन्द्र

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