वायुसेना की जरूरत अपाचे
भारतीय वायुसेना को अमेरिकी अपाचे अटैच हेलीकाप्टर मिलना शुरू हो गया है। इस हेलीकाप्टर के मिलने से भारतीय वायुसेना की क्षमता में वृद्धि ही नहीं हुई बल्कि वायुसेना की रणनीतिक जरूरतें भी पूरी हुई हैं। भारतीय वायुसेना की जरूरतों के मुताबिक निर्मित यह हेलीकाप्टर पर्वतीय क्षेत्र में उपयोग के लिए अत्यंत उपयोगी साबित होगा। भारत के लिए चीन और पाकिस्तान से मुकाबले के मुताबिक हेलीकाप्टर की जरूरत थी। वायुसेना की विशेषज्ञ टीम दशकों से सरकार को इस बात के लिए चेतावनी दे रही थी कि रूसी एम-35 अब रिटायर्ड होने वाले हैं और वायुसेना को चाहिए एक अत्याधुनिक हेलीकाप्टर जो विशुद्ध रूप से सटीक हमला करने का काम करे ताकि पाकिस्तान और चीन की सीमाओं पर तैनात किया जा सके। भारत सरकार ने 2015 में अमेरिकी सरकार और अमेरिकी बोइंग लिमिटेड के साथ 22 अपाचे हेलीकाप्टर के लिए अरबों डालर के सौदे पर हस्ताक्षर किया। इसकी पहली खेप वर्ष 2019 के जुलाई तक भारत भेजना तय हुआ था। कंपनी ने समझौते के मुताबिक पहला एएच-64ई (आई) अपाचे गार्जियन हेलीकाप्टर भारतीय वायुसेना को परियोजना स्थित बोइंग के उत्पादन प्रतिष्ठान में औपचारिक रूप से सौंपा गया।
अपाचे हेलीकाप्टर के बारे में बताया जाता है कि भारत सरकार व वायुसेना इसके मारक क्षमता के कारण इसको खरीदने की इच्छुक थी। दरअसल इसमें स्ट्रिंगर मिसाइल लगी होती हैं और दोनों तरफ 30 एमएम की दो बंदूकें लगी होती हैं। यही नहीं इन मिसाइलों का पेलोड इतने तीव्र विस्फोटकों से भरा होता है कि दुश्मन का बच पाना मुश्किल होता है। युद्ध क्षेत्र में यह हेलीकाप्टर हर स्थिति में टिके रहने में सक्षम होता है। अपाचे का एक बहुत ही अच्छा फीचर है हिल्मेट माउंटेड डिस्प्ले, इंटेग्रेटेड हेलमेट और डिस्प्ले साइटिंग सिस्टम, जिसकी मदद से पाइलट हेलीकाप्टर में आटोमैटिक एम 230 चेन गन से अपने दुश्मन को निशाना बना सकता है। सच तो यह है कि अपाचे हेलीकाप्टर से भारतीय वायुसेना की विशेषज्ञ टीम बहुत प्रभावित थी। टीम ने दशकों पहले सरकार से इसलिए इस हेलीकाप्टर की मांग की थी क्योंकि अमेरिका ने इसी अपाचे से पनामा, अफगानिस्तान और इराक में तबाही मचा दी थी। इजरायल भी लेबनान और गाजापट्टी में इसी अपाचे हेलीकाप्टर का प्रयोग करता है। विशेषज्ञों ने सरकार को समझाया था कि अपाचे दो जनरल इलेक्ट्रिक टी-700 टर्बोशैफ्ट इंजन से लैस होता है और 365 किमी प्रति घंटे की गति से उड़ान भरने वाला अपाचे दुश्मन के क्षेत्र में घुसकर परखच्चे उड़ाने में सक्षम है।
बहरहाल विदेशी समझौते अब भारत सरकार संबंधित देश की सरकारों से करती है। सौदे की इस नई प्रक्रिया में बिचौलियों की कोई भूमिका नहीं रह गई है। इसलिए गुणवत्ता, समय सीमा एवं अन्य व्यावसायिक शर्तें बड़ी आसानी से पूरी हो जाती हैं। सैन्य सौदों के संदर्भ में सरकार ने यह क्रांतिकारी परिवर्तन करके पूरी प्रक्रिया को ही नया स्वरूप दे दिया है। इसलिए अब पहले जैसी चीजें रही नहीं। जरूरतों का निर्धारण सैन्य विशेषज्ञ टीम करती है किन्तु तत्संबंधी रक्षा सौदों की जरूरतों के मुताबिक सरकार ने अधिकारियों की क्षमता के अनुसार सौदों की कीमतों की सीमा का भी निर्धारण कर दिया है। इसलिए विभिन्न क्षमता के अधिकारी फाइलों को रोकते ही नहीं। इसके अलावा प्रक्रिया संबंधी एक अन्य बदलाव भी हुआ है। 2014-15 के पूर्व कोई भी अधिकारी किसी भी सौदे से संबंधित फाइल को हाथ नहीं लगाता था क्योंकि उसे डर था कि कुछ भी गड़बड़ होने पर परिणाम उसे ही भुगतना पड़ेगा। अब सरकार ने पुरानी प्रक्रिया को बदल दिया। उसने स्पष्ट कर दिया कि कोई भी अधिकारी समझौते से संबंधित अपनी सहमति के लिए दंडित नहीं किया जाएगा। तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार किसी अधिकारी की सहमति आवश्यक प्रक्रिया होती है और उसके लिए उसे दंडित नहीं किया जा सकता। इसीलिए सैन्य समझौतों की फाइलें अब आलमारियों में नहीं सड़तीं और अधिकारी बिना भय के अपनी सहमति और सलाह देते हैं। यही कारण है कि सैन्य सौदों में तेजी आई है।