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सफल होना है तो उत्साही बनिए

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:7 Oct 2019 12:22 PM GMT

सफल होना है तो उत्साही बनिए

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त्साही होना सफल होने की गारंटी है। जिस तरह से किसी काम की सही शुरुआत उसकी आधी कामयाबी मानी जाती है। कुछ उसी तरह यदि किसी काम को पूरे उत्साह से शुरू किया जाए तो इसमें उन लोगों के मुकाबले 100 पतिशत ज्यादा कामयाबी की उम्मीद की जा सकती है, जो किसी काम को बिना किसी अतिरिक्त उत्साह के शुरू करते हैं। वास्तव में जीत की बुनियादी शर्त ही है, उत्साह से भरे होना। लेकिन ऐसी बातों को कई लोग कोरा उपदेश ही समझते हैं। कुछ नहीं तो वे इसी बात पर ही एक व्यंग्यात्मक सवाल दाग देंगे, 'उत्साह कहां से लायें ?' जैसे उन्होंने तय कर लिया हो कि साबित करके रहेंगे कि कुछ नहीं होता।

अब अगर ऐसे लोगों से आप कहें कि उत्साह सपने से आता है तो ये अपनी हीनभावना की नहीं, आपके तर्क की खिल्ली उड़ायेंगे। मगर सही यही है कि जिस तरह कोई शरीर तभी तक चैतन्य और ािढयाशील रहता है जब तक उसमें एक अदद आत्मा का वास होता है। "ाrक ऐसे ही जब तक किसी के दिल में कोई सपना होता है या सपने की ललक होती है, तभी तक उसमें अपने किसी लक्ष्य के लिए उत्साह रहता है। जिस इंसान के अंदर अपने लक्ष्य के फ्रति उत्साह ही न हो वह भला कहीं क्यों पंहुचना चाहेगा ? ऐसे उत्साहहीन शायद ही कभी सफल होते हों। हां, यह सही है कि तमाम परिस्थितियां ऐसी होती हैं जो किसी के अंदर के उत्साह की हत्या कर सकती हैं। लेकिन ऐसी परिस्थितियों को धता बता पाने की वजह से ही आप जानवरों से अलग इंसान हैं, कुदरत के विजेता हैं।

यदि आपको लगता है कि परिस्थितियां आपके साथ दागा कर रही हैं तो आपके लिए यह बेहद लाजिमी है कि आप परिस्थितियों के विपरीत जाकर अपने अंदर उत्साह को संचारित करें। बिलकुल मशीनी अंदाज में ऐसा करें। इसके लिए कोई एकमात्र निश्चित फॉर्मूला नहीं है, हां कुछ उपाय हैं जो ऐसी स्थितियों में काम आते हैं। मसलन इसके लिए सबसे पहले अपनी दिनचर्या का मूल्यांकन करें। उसे इस सवाल के आईने में रखकर देखें कि कहीं वह अव्यवस्थित तो नहीं है। अव्यवस्थित दिनचर्या बड़े से बड़े योद्धा को मामूली बना देती है। इसके विपरीत सुव्यवस्थित दिनचर्या साधारण सैनिक को भी सेनापति बना सकती है। लब्बोलुआब यह कि अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित करें। अपने दैनिक कार्यों को फ्राथमिकता के अनुसार निपटाएं। दिन की शुरुआत बिस्तर से उ"कर नहीं बल्कि बिस्तर में लेटे हुए ही करें। नये संकल्पों के साथ बिस्तर त्यागें और अपने सगे-संबंधियों व फ्रियजनों का मुस्कुराते हुए अभिवादन करें।

उत्साही बनने या बने रहने के लिए कई चीजें यंत्रवत करनी पड़ें तो बेझिझक करनी चाहिए मसलन यदि अनुत्साह से घिरे हों, निराशा के फंदे में हों तो हर दिन नहीं तो सप्ताह में कम से कम 4 दिन सुबह टहलने जाएं। यदि समय हो तो फ्रतिदिन नहीं तो सप्ताह में कम से कम 4 दिन व्यायाम भी करें। उत्साह से भरे रहने के लिए जरूरी है कि अपनी रुचि के अनुसार ही काम का चयन करें। यदि रूचि के विपरीत काम करने की मजबूरी है तो उसमें रूचि तलाशें या पैदा करें। कनिष्" या वरिष्" व्यक्तियों में से किसी की सहायता की जरूरत हो तो उनसे बेहिचक नम्रतापूर्वक सहायता मांगें। स्मार्ट फोन में समय बर्बाद करने से बेहतर है कि कुछ समय अच्छी पुस्तकों को पढ़ने में लगायें, किताबें आज भी उत्साह की संजीवनी हैं। फ्रतिदिन इस बात का ख्याल रखें कि आपको ाढाsध न आए। क्योंकि ाढाsध व्यक्ति के उत्साह को नष्ट कर देता है। अपने व्यक्तित्व को सरल और सहज बनाएं। कोई काम हाथ में लेने के समय इस तरह के द्वंद से बचें कि सफलता मिलेगी या नहीं। असफलता के डर से भी लक्ष्य डगमगाता है।

कभी भी दूसरे के विचारों को अनसुना नहीं करें। यदि दूसरों की बातें "ाrक न लगें तो फ्रतिवाद करें मगर उनकी अनदेखी नहीं। इससे दूसरे भी आपके फ्रति सकारात्मक बनेंगे और भविष्य में वे आपके साथ भी वैसा ही व्यवहार करेंगे। अनुशासन सफलता के साथ-साथ उत्साह का भी मूल-मंत्र है। जो व्यक्ति अपने जीवन में अनुशासित रहता है,उसका उत्साह कभी भी कम नहीं होता है। विश्व में जितने भी महान लोग हुए हैं, वे सब अनुशासित रहते हुए ही महान बने हैं। याद रखिये जैसी आपकी सोच होगी, वैसा ही आपका व्यक्तित्व बनेगा और जैसा व्यक्तित्व बनेगा वैसी ही सफलता मिलेगी। महात्मा गांधी कहते थे, `आपमें वह परिवर्तन होना चाहिए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं।'

वास्तव में इंसान की सोच एक सिक्का है जिसके दो पहलू है-नकारात्मक और सकारात्मक। नकारात्मक सोच के लोगों में आत्मविश्वास और उत्साह की कमी होती है,जबकि सकारात्मक लोगों में यह भरपूर होता है। अपने अंदर से हीनभावना को निकाल दें। अपने अंदर यह जज्बा पैदा करें कि यदि आप किसी से फ्रभावित होते हैं तो आपके अंदर भी ऐसे गुण हों, जिससे दूसरा व्यक्ति आपसे भी किसी मायने में फ्रभावित हों।

नियमित रूपसे अच्छी-अच्छी पुस्तकें पढ़ें। इससे आपके ज्ञान में भी वृद्धि होगी और आपकी सोच भी सकारात्मक बनेगी। जहां भी कहीं किसी से भी कुछ नया सीखने को मिले, बेझिझक उसे अपनाएं। ऐसी स्थितियों में अपने अहम को अपने ऊपर हावी न होने दें। याद रखिये विश्वास आत्मविश्वास को जन्म देता है और आत्म-विश्वासी व्यक्ति की सोच सकारात्मक होती है।

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