हमारे धैर्यं की परीक्षा ले रही है सरकार
-अनिल नरेन्द्र
मानव संसाधनों की कमी की वजह से अगर न्यायाधिकरणों के कामकाज बाधित होते हैं तो इसे केवल लापरवाही का मामला नहीं माना जाना चाहिए, बल्कि यह सरकार की कमजोर इच्छाशक्ति व लापरवाही का भी सुबूत है। न्याय प्राणाली व प्रक्रिया की जटिलताओं को आसान बनाने और उस पर बोझ को कम करने के लिए अर्ध-न्यायिक संस्थाओं के रूप में न्यायाधिकरणों का ढांचा खड़ा किया गया था। लेकिन आज हालत यह है कि इन न्यायाधिकरणों में बड़ी तादाद में खाली पड़े पदों पर नियुक्ति नहीं किए जाने की वजह से इनके कामकाज पर बुरा असर पड़ रहा है।
विभिन्न न्यायाधिकरणों में खाली पदों को भरने में देरी और ट्रिब्यूनल सुधार अधिनियम पारित होने से नाखुश सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वेंद्र सरकार उसके धैर्यं की परीक्षा ले रही है। अधिनियम के जरिये उन प्रावधानों को वापस जगह दी गईं है, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट रद्द कर चुका है। वेंद्र हमारे पैसलों का सम्मान नहीं करने पर तुला हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस डीवाईं चंद्रचूड़ और जस्टिस एल. नागेश्वर राव की विशेष पीठ ने वेंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को एक हफ्ते में नियुक्ति नहीं होने पर अवमानना की कार्रवाईं की चेतावनी भी दी। पीठ ने कहा कि हम सरकार के साथ टकराव नहीं चाहते हैं।
जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति हुईं, उससे हम खुश हैं, लेकिन न्यायाधिकरणों में सदस्य या अध्यक्ष नहीं होने से वह निष्प्राभावी हो रहे हैं। हमें अपनी वैकल्पिक योजनाएं बताएं। आप क्या इन न्यायाधिकरणों को बंद करना चाहते हैं? इस पर मेहता ने कहा कि सरकार का यह इरादा नहीं है। इस पर अदालत ने मेहता को निर्देश लेने को कहा। मामले की अगली सुनवाईं 13 सितम्बर को होगी। वर्तमान में हालत यह है कि न्यायाधिकरणों में बड़ी संख्या में खाली पदों पर नियुक्ति नहीं होने से वह ठीक से काम नहीं कर पा रहे हैं। न्यायाधिकरण पीठासीन अधिकारियों तथा न्यायिक और तकनीकी सदस्यों की कमी के कारण अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने सर्वोच्च अदालत के पैसलों के विपरीत ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट का प्रावधान बनाए जाने को लेकर भी नाखुशी जाहिर करते हुए कहा कि हमारे पास तीन ही विकल्प बचते हैं कि या तो हम वेंद्र सरकार के कानून पर रोक लगा दें, देशभर के न्यायाधिकरणों को बंद करें या हम खुद नियुक्तियां करें।
विदित हो कि न्यायाधिकरण अर्ध-न्यायिक संस्था के रूप में काम करते हुए सेवा मामले, टैक्स, पर्यांवरण संबंधी प्राशासनिक पैसले अथवा वाणिज्यिक कानून आदि से जुड़े मामलों का निपटारा करते हैं। अदालत जब भी इस मामले पर सरकार से सवाल करती है तब यह जवाब देकर अपना दायित्व पूरा मान लिया जाता है कि नियुक्तियों का काम प्रक्रिया में है। पिछले महीने अदालत ने सरकार को न्यायाधिकरणों में नियुक्ति के लिए 10 दिन का समय दिया था। लेकिन अफसोस की बात यह है कि अदालत को सरकार कोईं उचित जवाब नहीं दे सकी। विभिन्न प्राधिकरणों में 250 के आसपास पद खाली पड़े हैं। सरकार का इस मामले पर टालमटोल का रवैया सही नहीं है, इससे टकराव बढ़ने का खतरा है।