प्राथमिकी रद्द कराने को पत्रकार सीधे सुप्रीम कोर्ट न आएं
-अनिल नरेन्द्र
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि किसी पत्रकार को अपनी एफआईंआर रद्द कराने के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट से सम्पर्व नहीं करना चाहिए। अदालत ने द वायर के तीन पत्रकारों को सलाह दी कि वह अपने खिलाफ दर्ज एफआईंआर को रद्द कराने के लिए इलाहाबाद हाईं कोर्ट से सम्पर्व करें।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति बीआर गवईं और न्यायमूर्ति बीवी रागसन की एक पीठ ने अलबत्ता तीनों पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाईं से दो महीने के लिए संरक्षण दे दिया। द वायर का ऑनलाइन प्राकाशन फाउंडेशन फॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज्म द्वारा किया जा रहा है। इसके तीन पत्रकारों के खिलाफ सामयिक विषयों पर टिप्पणी करने और उनकी रिपोर्टिग को लेकर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 183, 153ए, 153बी और 505 और वुछ अन्य अपराधों के लिए उत्तर प्रादेश में एफआईंआर दर्ज है। इन पत्रकारों ने अपने खिलाफ दर्ज एफआईंआर को झूठा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट से इन्हें रद्द करने की फरियाद की थी।
पीठ ने यह भी कहा कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का महत्व समझते हैं। हम प्रोस का गला भी नहीं घोटना चाहते, पर हम एफआईंआर रद्द करने का आदेश देकर पत्रकारों के लिए एक अलग रास्ता नहीं खोल सकते। पत्रकारों के खिलाफ तीन एफआईंआर उत्तर प्रादेश के तीन अलग-अलग स्थानों—रामपुर, गाजियाबाद और बाराबंकी में दर्ज की गईं हैं। पत्रकारों ने कहा कि अगर राज्य को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग की इजाजत जारी रही तो इससे राज्य की संस्थाओं की जवाबदेही पर बुरा असर पड़ेगा। उन्होंने अपने आपको निदरेष बताया।