आदतन अपराधी
पूर्व केंद्रीय मंत्री व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रासाद यादव के खिलाफ चारा घोटाले से संबंधित मामलों में सजा की अवधि समाप्त हुईं भी नहीं कि इसके पहले ही केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआईं) ने नौकरी के बदले रिश्वतखोरी का मुकदमा दर्ज करके छापेमारी की। असल में मामला 2008- 09 का है जब वह यूपीए सरकार में रेलमंत्री थे। उन्होंने रेलवे में नौकरी देने के बदले अयर्थियों से जमीन ली थी। इस मामले में भ्रष्टाचार निरोधक कानून एवं भारतीय दंड संहिता के तहत धारा 120बी यानि आपराधिक षड्यंत्र के तहत प्राथमिकी दर्ज करके कार्रवाईं शुरू कर दी। सीबीआईं ने आरोपों की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट तो पहले ही दर्ज कर ली थी किन्तु एफआईंआर दर्ज करने की जानकारी शुव््रावार यानि 20 मईं को दी गईं।
एफआईंआर लालू प्रासाद यादव, राबड़ी यादव, मीसा यादव और हेमा यादव के खिलाफ दर्ज है और इन्हीं चार लोगों के ठिकानों पर छापेमारी भी हुईं है। दरअसल यह आरोप तो 2008-09 में लालू के खिलाफ लगे थे कि उनसे उनके निकट संबंधी और दोस्त नौकरी मांगने आए किन्तु उनके पास रिश्वत के लिए लाखों रुपए नहीं थे तो उन्होंने कहा था कि अपना खेत दूसरे किसी को बेच कर पैसा जुटाओगे, उससे अच्छा है कि हमारे ही परिवार को दे दो। जिन्हें नौकरी के बदले रिश्वत देनी थी उन्होंने यही सही समझा और अपनी खेती की जमीन लालू की पत्नी राबड़ी देवी, बेटी मीसा और हेमा के नाम लिखने के तैयार हो गए। इस घटना को लालू ने उस वक्त भी सामान्य बात कहते हुए गंभीरता से नहीं लिया था। किन्तु सीबीआईं ने सारे सबूत एकत्र करने के बाद पूरी तैयारी से लालू और उनके परिजनों के खिलाफ एफआईंआर दर्ज की है। इससे एक बात साफ जाहिर है कि इस मामले में लालू और उनके परिजनों के अलावा उन अयार्थियों पर भी एफआईंआर दर्ज होगी या फिर हो चुकी होगी जिन्होंने नौकरी के बदले रिश्वत के रूप में अपनी जमीन लिखी है।
सच तो यह है कि लालू प्रासाद यादव अपने और अपने परिजनों के खिलाफ दर्ज एफआईंआर को भी मजाक समझते हैं। वह इस घटना को गंभीरता से लेते ही नहीं। ऐसा वही व्यक्ति कर सकता है जो या तो आदतन अपराधी (हैबिचुअल अपेंडर) हो अथवा जिसे यह लगता हो कि उसके खिलाफ दर्ज मुकदमे में कोईं तथ्य नहीं है। सीबीआईं द्वारा दर्ज एफआईंआर का आधार तथ्यात्मक रूप से कितना पुष्ट है यह तो अदालत में साबित होगा किन्तु इतना तो सच है कि लालू प्रासाद यादव जिस तरह ट्वीट करके सीबीआईं को पिजड़े का तोता बताकर तंज कस रहे हैं उससे तो यही लगता है कि वह यह कहना चाहते हैं कि सीबीआईं को वेंद्र सरकार और सत्ताधारी पाटा ने उनके खिलाफ मामला बनाने के लिए बाध्य किया है। इस तरह के आरोप लगाने से लालू के अपराधों की गंभीरता कम नहीं हो सकती और न ही कोर्ट से उन्हें किसी तरह की राहत मिलने वाली है।
असल में पिछले तीन दशक से लालू जैसे राजनेताओं ने भ्रष्टाचार को धर्मनिरपेक्षता की आड़ में राजनीति का धर्म साबित कर दिया है। यह वही लोग हैं जिन्होंने राजनीति में धर्म का विरोध तो खूब किया किन्तु इन्हीं लोगों ने राजनीति में अधर्म को खुलेआम बढ़ाया। वुल मिलाकर लालू यादव ने भ्रष्टाचार को शिष्टाचार की मान्यता देकर राजनीति करने वालों के सार्वजनिक जीवन को संदेहास्पद बनाने की जिस संस्वृति की शुरुआत की है उसका परिणाम वह स्वयं भुगत रहे हैं।