सुखद अंत
एयर इंडिया के औद्योगिक संबंधों की दुर्दशा का परिणाम यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है। चालक दल के 25 सदस्यों की कमी के कारण बृहस्पतिवार को भी 85 उड़ाने रद्द कर दी गईं कितु कंपनी ने दल के 25 सदस्यों को बर्खास्त भी कर दिया। इससे लगता नहीं कि एयर इंडिया के मैनेजमेंट और चालक दल के बीच कोईं समझौता होने की उम्मीद है। इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि इस कंपनी में तनाव और बढ़ेगा जिसका दुष्परिणाम यात्रियों को तो भुगतना पड़ेगा ही साथ ही कंपनी भी तबाही की ओर बढ़ेगी।
दरअसल हड़ताल के कईं स्वरूप होते हैं। एक स्वरूप यह होता है कि कर्मचारी धरना-प्रदर्शन करते हैं और दूसरा स्वरूप है कि वह बीमारी का बहाना बनाकर सामूहिक अवकाश ले लें। कभी-कभी स्लोपेन हड़ताल भी करते हैं। इस तरह की हड़ताल में कर्मचारी जो कार्यं करते हैं सामान्य गति 10 प्रतिशत कर देते हैं। यानि जो कार्यं एक दिन में पूरा होना चाहिए उसे पूरा करने में वह पूरा नौ दिन लेंगे। इसका परिणाम यह होता है कि उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है और संबंधित कंपनी की वित्तीय हालत खराब हो जाती है। कंपनी की वित्तीय हालत खराब होते ही वह आवश्यक इन्नोवेशन या नवाचार की प्रव्रिया छोड़ देती है। परिणाम यह होता है कि वह कंपनी अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों से पिछड़ जाती है। एक बार यदि कंपनी आंतरिक कारणों से कमजोर हो जाती है तो दोबारा उसे उसी गति में लाने के लिए बहुत ही अतिरिक्त प्रयास करने पड़ते हैं। चूंकि कंपनी पहले से ही कराह रही होती है और अपने खर्चे ही पूरे नहीं कर पाती तो वह अतिरिक्त प्रयास क्या ही करेगी! वामपंथी प्रणाली से अपने ही देश की कंपनियों को तबाह करने वाले आत्मघाती चिंतन आज भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं। बैंकों में हड़ताल होती है तो खुलकर वामपंथी अपनी मांगों के लिए मैनेजमेंट की चाहे जो भी मजबूरी हो वह उसकी परवाह नहीं करते।
एयर इंडिया की प्रतिस्पधी कंपनियां जानती हैं कि यदि एयर इंडिया कमजोर होती है तो उसका फायदा उन्हें ही मिलेगा। यही कारण है कि एयर इंडिया यह जानती है कि यदि हड़ताल और बढ़ी तो कंपनी को यह बहुत महंगा पड़ सकता है। कारण है कि जिस वक्त एयर इंडिया को टाटा ने खरीदा था, उस वक्त भी कंपनी घाटे में थी कितु टाटा का मैनेजमेंट खरीदने से पहले यह नहीं समझ पाया था कि निजी क्षेत्र में जाने के बाद भी इसके कर्मचारी हड़ताल करेंगे।
बहरहाल वामपंथी प्रेत छाया से कंपनियों के तबाह होने की कहानी को भले ही वुछ लोग अच्छा न मानें कितु देश में अभी भी काफी लोग ऐसे हैं जो अपने ही घर में आग लगा कर अपनी ठंडक को शांत करते हैं। हर व्यवसाय में एक ऐसी व्यवसायिक नैतिकता होती है जिसका पालन न करने पर कंपनी तो तबाह होती ही है, उसमें कार्यं करने वाले भी इस बात से भयभीत रहते हैं कि कहीं कंपनी बंद न हो जाए। यदि ऐसा हुआ तो असंख्यक परिवार अपनी रोजी-रोटी खो देंगे। लब्बोलुआब यह है कि आ िर्थक विकास की दुश्मन वामपंथी विचारधारा वाली हड़ताली प्रवृत्ति आज भी जिंदा है। 1991 में आर्थिक सुधारों के प्रयास से इस प्रवृत्ति पर ज्यादा नियंत्रण लगा कितु प्रवृत्ति तो स्वाभाविक मानसिक स्थिति है। इसका अंत तब तक संभव नहीं है जब तक कि हड़ताल करने वाले खुद इस बात का एहसास नहीं करेंगे कि वे हड़ताल करके भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आत्मघाती कदम उठा रहे हैं। यह अच्छी बात है कि एयर इंडिया चालक दल को सद्बुद्धि आईं और उन्होंने हड़ताल वापस लेकर न सिर्प यात्रियों के कष्ट दूर किए और कंपनी भी उन 25 कर्मियों की बर्खास्तगी न करने पर सहमत हो गईं। इस तरह सुखद अंत हुआ इस कलह का।