विरासत बचाने, गढ़ भेदने की लड़ाईं
—अनिल नरेन्द्र
रायबरेली के रण में राहुल गांधी की एंट्री होते ही यहां का चुनावी माहौल गर्म हो गया है। कहा जा रहा है कि राहुल ने अमेठी से न लड़कर रायबरेली को अपना हुक्म का इक्का कहा। भाजपा ने अमेठी से राहुल को घेरने की पूरी तैयारी कर दी थी। अंतिम क्षण में यह फैसला कि राहुल रायबरेली से लड़ेंगे और पंडित किशोरी लाल अमेठी से लड़ेंगे न सिर्फ भाजपा को बैकफुट पर ला दिया बल्कि खुद कांग्रेसियों को भी हैरत में डाल दिया। चुनिंदा वीआईंपी सीटों में शुमार रायबरेली गांधी परिवार का गढ़ रहा है। इस बार राहुल से मुकाबला करने के लिए भाजपा ने मोदी सरकार के मंत्री दिनेश प्राताप सिह को मैदान में उतारा है। वहीं बसपा ने ठाकुर प्रासाद यादव को चुनाव मैदान में उतारा है।
इस चुनाव में रायबरेली की लड़ाईं कईं मायनों में खास है। यह देखना दिलचस्प होगा कि राहुल अपने परिवार की विरासत बचाने के साथ ही मां सोनिया गांधी से बड़ी जीत कांग्रेस को दिला पाते हैं या नहीं। सपा के साथ ने इस लड़ाईं को और रोचक बना दिया है। दूसरी ओर भाजपा के सामने कांग्रेस के इस मजबूत किले को ध्वस्त करने की चुनौती है। वहीं बसपा कोशिश करेगी कि वह रायबरेली की इस जंग को त्रिकोणीय बना दे। गांधी परिवार की यह तीसरी पीढ़ी है जो रायबरेली से चुनावी मैदान में उतरी है। यहां पहला चुनाव राहुल गांधी के दादा फिरोज गांधी ने लड़ा था। इसके बाद इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी यहां से चुनाव लड़ चुकी हैं। रायबरेली से गांधी परिवार का आत्मीय लगाव रहा है। यही कारण रहा कि कांग्रेस का इस सीट पर दबदबा रहा। हालांकि इस सीट पर तीन बार गैर कांग्रेस सांसद भी चुने गए। 1973 में राज नारायण और 1996 और 1998 में भाजपा के अशोक सिह चुनाव जीते थे। बाकी सभी चुनाव परिणाम कांग्रेस के पक्ष में गए। सोनिया गांधी 2004 से यहां लगातार सांसद रहीं लेकिन मत प्रातिशत हर बार कम होता रहा है।
कांग्रेस को 2009 में 72.3 प्रातिशत 2014 में 63.8 और 2019 में 55.8 प्रातिशत वोट मिले। अब राहुल गांधी के सामने अपनी वोट प्रातिशत बढ़ाने की चुनौती होगी। रायबरेली की सीट पर कांग्रेस को सपा का साथ मिला है। रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। 2022 में इनमें से चार सीटों पर सपा जीती थी। यहां ओबीसी मतदाता करीब 23 प्रातिशत हैं। करीब 9 प्रातिशत यादव मतदाता हैं। यह गणित कांग्रेस की राह को आसान करने में मददगार साबित हो सकता है। चुनाव में सपा संगठन भी कांग्रेस के साथ वंधे से वंधा मिलाकर चल रहा है। बसपा की दलित और यादव वोटरों पर नजर हैं। इस सीट पर दलित मतदाता करीब 32 प्रातिशत हैं। बसपा इन्हें अपना परम्परागत वोटर मानती है। बसपा ने 2014 के चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारा था। उस समय प्रात्याशी 63633 वोट ले पाया था। अब बसपा उम्मीदवार इस बिरादरी में सेंध लगाने की कोशिश में है, रायबरेली सीट का इतिहास रोचक है। यहां बड़े-बड़े सूरमा हार गए। खुद इंदिरा गांधी भी 1977 का चुनाव हार गईं थी। इसके अलावा भीम राव अंबेडकर की पत्नी सविता अंबेडकर, विजया राजे सिधिया, विनय कटियार यहां से चुनाव हार चुके हैं। विश्लेषकों का मानना है कि राहुल की जीत लगभग पक्की है। देखना सिर्प यह होगा कि वह कितने मतों से जीतते हैं और वोट प्रातिशत कितना बढ़ा सकते हैं। रायबरेली का सीधा असर आसपास की सीटों पर भी पड़ सकता है।