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पुतिन नहीं तो रूस भी नहीं

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:21 March 2018 6:00 PM GMT
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पुतिन नहीं तो रूस नहीं, यह मानना है कैमलिन के डिप्टी चीफ ऑफ स्टाफ का। ब्लादिमीर पुतिन को रूस की जनता ने चौथी बार देश की सत्ता संभालने के लिए भारी जनादेश देकर यह संकेत दिया है कि उनके नेतृत्व को लेकर रूसी जनता के दिलोदिमाग में कोई संशय नहीं है। पुतिन ने लोगों को यकीन दिला दिया है कि उनकी जगह कोई और नहीं ले सकता। आधिकारिक नतीजों के मुताबिक उन्हें 76 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले हैं और यह प्रतिशत साल 2012 के चुनावों से भी ज्यादा है। पुतिन एक ऐसा मायो मैन है जो किसी से डरता नहीं। पुतिन ने राष्ट्रपति चुनाव ऐसे वक्त में जीता है, जब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका सहित पश्चिमी मुल्कों के साथ उनकी एक तरह से स्पष्ट और जबरदस्त टकराव की स्थिति चल रही है। लेकिन उनके रुख से साफ है कि वह किसी भी ताकत के सामने झुके नहीं हैं, न कोई ऐसा समझौता किया है जो दुनिया में रूस के कमजोर पड़ने का संकेत देता हो। इसी से पुतिन की छवि एक कठोर और दृढ़ निश्चय वाले वैश्विक नेता की बनी है। ऐसे समय में पुतिन चुनाव जीते हैं जब रूस और पश्चिमी देशों के संबंध खराब दौर से गुजर रहे हैं, रूस की जनता ने पुतिन को ही अगले छह सालों के लिए राष्ट्रपति चुना है। अब वह 2024 तक इस पद पर रहेंगे। पुतिन 2024 में अपना कार्यकाल खत्म होने के समय 71 साल के होंगे और उस समय सोवियत शासक जोसेफ स्टालिन के बाद सबसे लंबे समय तक नेता रहने वाले शख्स भी होंगे। सन 2000 में जब पुतिन पहली बार देश के राष्ट्रपति बने थे तब उन्हें 53 प्रतिशत वोट मिले थे। जाहिर है, रूस में पुतिन की लोकप्रियता में लगातार इजाफा ही हुआ है। सोवियत संघ के विखंडन के बाद लंबे समय तक रूस में जो उथल-पुथल की स्थिति रही, उससे रूस को बाहर निकालने में पुतिन का बड़ा योगदान माना जाता है। इस बीच पुतिन ने न सिर्प घरेलू मोर्चों, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी धाक कायम की है। इसीलिए वे रूसी जनता के लिए एक बार फिर नायक बने हैं। इसमें कोई शक नहीं कि राष्ट्रपति के तौर पर चौथा कार्यकाल पुतिन के लिए बड़ा चुनौतीपूर्ण होगा। इस वक्त सीरिया, अमेरिका और रूस के बीच प्रतिस्पर्धा का केंद्र बना हुआ है। सीरिया को लेकर कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं है। अमेरिका को लग रहा है कि अगर सीरिया मामले में वह रूस के सामने कमजोर पड़ा तो सारी दुनिया की नजर में रूस फिर से महाशक्ति का दर्जा हासिल कर सकता है। फिर पुतिन ऐसे वक्त चौथी बार राष्ट्रपति चुने गए हैं जब पड़ोसी देश चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के जीवनभर के लिए अपने पद पर बने रहने का रास्ता साफ कर दिया गया है। रूस और चीन के बीच बढ़ती नजदीकी से सबसे ज्यादा चिंतित अमेरिका है। 2014 में क्रीमिया के विलय के जरिये पुतिन ने पश्चिम से लोहा लिया ही था और उसके बाद लगे आर्थिक प्रतिबंधों को उन्होंने देश के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को मजबूत करने के अवसर में बदल दिया। उनकी जीत का वैश्विक राजनीति पर असर पड़ना तय है। खासतौर से इसलिए भी क्योंकि पश्चिमी देशों के साथ रूस के रिश्ते शीतयुद्ध के खात्मे के बाद आज सबसे निचले स्तर पर हैं। जहां तक भारत से रिश्तों की बात है तो उसके मजबूत होने के ही आसार हैं, अलबत्ता यह देखना होगा कि पुतिन सैन्य और रणनीतिक रिश्ते को मजबूती देते हुए द्विपक्षीय व्यापार को किस ऊंचाई तक ले जाते हैं। हालांकि यह भी सच है कि पिछले साल रूस ने पाकिस्तान के साथ सैन्य अभ्यास किया। ऐसे में पुतिन एशिया में क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखते हुए रूस को फिर से महाशक्ति के रूप में कैसे स्थापित कर पाते हैं यह तो समय ही बताएगा। राष्ट्रपति पुतिन को इस शानदार जीत पर बधाई।

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