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माफिया मुन्ना बजरंगी की हत्या पर उपजे सवाल

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:11 July 2018 6:43 PM GMT
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हमारी जेलों में मारपीट से लेकर मोबाइल से अपना साम्राज्य चलाना, अवैध चीजों की बरामदगी आम बात बन गई है और हर घटना के बाद जांच (इंक्वायरी) भी आम बात है पर एक अति सुरक्षित मानी जाने वाली जेल की बैरक के अंदर एक कुख्यात डॉन को गोलियों से भून देना आम नहीं माना जा सकता और यही वजह है कि मुन्ना की हत्या चौंकाने वाली है। बागपत जिला कारागार में सोमवार सुबह करीब 6.15 बजे कुख्यात सुनील राठी ने पूर्वांचल के माफिया मुन्ना बजरंगी की ताबड़तोड़ नौ गोलियां मारकर हत्या कर दी। बजरंगी पर बसपा के पूर्व विधायक लोकेश दीक्षित से रंगदारी मामले में कोर्ट में पेशी होनी थी। उसे रविवार रात नौ बजे झांसी से बागपत जेल में शिफ्ट किया गया था। इस मामले में जेलर उदय पताप सिंह, डिप्टी जेलर शिवानी यादव व दो मुख्य बंदी रक्षक अरजिंदर सिंह व माधव कुमार को निलंबित कर दिया गया है। मुन्ना बजरंगी की हत्या पतिद्वंद्वी अपराधी गुटों की आपसी रंजिश का नतीजा हो सकती है, लेकिन इससे उत्तर पदेश की कानून-व्यवस्था को लेकर गंभीर सवाल जरूर उठते हैं। खासकर इसलिए भी क्योंकि योगी आदित्यनाथ सरकार ने सालभर से अपराधियों के खिलाफ व्यापक अभियान छेड़ रखा है। ऐसे में यह कैसे संभव हो गया कि एक ऐसे अपराधी को, जिसके खिलाफ हत्या से लेकर रंगदारी के चालीस से अधिक मामले दर्ज हों, जेल के भीतर गोली मारकर हत्या कर दी जाए? जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या की गुत्थियां उलझी हुई हैं। सवाल है कि आखिर जेल में पिस्तौल कब और कैसे पहुंची? वारदात में क्या अकेला सुनील राठी शामिल था या उसके गैंग की भी भूमिका थी? सुनील राठी कह रहा है कि पिस्तौल मुन्ना बजरंगी की थी, ऐसा है तो फिर राठी ने उसे गटर में क्यों फेंक दिया? जेल में एंट्री से पहले हर सामान की जांच होती है। हर जाने वाले का हिसाब रखा जाता है, इसके बाद ही उसे अंदर जाने दिया जाता है। उत्तर पदेश पुलिस का बड़ा सिरदर्द मुन्ना नवंबर 2005 में तब सुर्खियों में आया जब उसने भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या की। इस हत्याकांड में राय के अलावा 6 और लोग मारे गए थे। यह इतना कूर हत्याकांड था कि हर मृतक के शरीर पर 60 से सौ गोलियों के निशान पाए गए थे। सच है कि अपने मुंह से 20 साल के आपराधिक जीवन में 40 हत्याओं की बात करने वाला मुन्ना की फरारी से लेकर उसके एनकाउंटर में बचने और फिर गिरफ्तारी की कहानी जितनी फिल्मी है, उसका अंत भी उतना ही फिल्मी हुआ। राजनीति में पैठ रखने वाले इस माफिया सरगना की हत्या के बाद पूर्वांचल के आपराधिक गैंगवार और माफिया दुनिया में तो नए समीकरण बनेंगे ही, जातीय गुणा-गणित वाला पूर्वांचल का राजनीतिक परिदृश्य भी इससे कहीं अधिक पभावित होने जा रहा है, इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता। जो गैंगवार जेल के बाहर हो रहा है वह अब जेल के अंदर पहुंच गया है।

-अनिल नरेन्द्र

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