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एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण में

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:12 July 2018 6:58 PM GMT
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दिल्ली में नौकरशाहों के तबादले का हक किसे है? दिल्ली सरकार या दिल्ली के उपराज्यपाल के पास यह अधिकार है इसे लेकर दिल्ली सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद एलजी से अधिकारों की जंग एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई है। दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से ट्रांसफर-पोस्टिंग जैसे मामलों सहित कुल नौ अपीलों पर जल्द सुनवाई कर निपटारा करने की मांग की है। गत चार जुलाई को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले के बाद दिल्ली सरकार को कई मामलों में निर्णय लेने की छूट मिल गई है, लेकिन ट्रांसफर-पोस्टिंग आदि से जुड़े सर्विस मैटर अभी लटके हैं, क्योंकि पब्लिक ऑर्डर, पुलिस व भूमि के अलावा सर्विस मामलों का क्षेत्राधिकार भी उपराज्यपाल को देने वाली केंद्र सरकार की 21 मई 2015 की अधिसूचना को चुनौती देने की आप सरकार की अपील के अलावा भ्रष्टाचार निरोधक शाखा में दिल्ली सरकार के अधिकारों में कटौती करने वाली केंद्र की 23 जुलाई 2015 की अधिसूचना को चुनौती देने वाली अपील भी लंबित है। दिल्ली हाई कोर्ट ने दोनों ही मामलों में दिल्ली सरकार की याचिकाएं खारिज कर दी थीं। संविधान पीठ ने चार जुलाई को कहा था कि लंबित अपीलों की मैरिट पर उचित पीठ सुनवाई करेगी। दिल्ली सरकार के वकील ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बैंच के सामने इस मामले को उठाया। चीफ जस्टिस ने कहा कि वह अगले हफ्ते सुनवाई कर सकते हैं। दिल्ली सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसले के बाद भी कई मुद्दों पर गतिरोध कायम है। ऐसे में सुनवाई की जरूरत है। उच्चतम न्यायालय ने चार जुलाई को अपनी व्यवस्था में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को राहत दी थी जो उपराज्यपाल पर सरकार को ठीक ढंग से कामकाज करने से रोकने के आरोप लंबे समय से लगा रहे थे। दिल्ली में 2014 में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से ही केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों को लेकर लंबे समय से रस्साकशी चल रही है। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति एएम खानविंलकर और न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने दिल्ली सरकार के इस कथन पर विचार किया कि शीर्ष अदालत के फैसले के बाद भी सार्वजनिक सेवाओं के मुद्दे पर गतिरोध बना हुआ है और इस पर किसी उचित पीठ द्वारा विचार की आवश्यकता है। हम उम्मीद करते हैं कि माननीय सुप्रीम कोर्ट अगले हफ्ते जब सुनवाई करेगा तो इन पेन्डिंग मुद्दों पर भी अपनी स्पष्ट व्यवस्था देगा ताकि दिल्ली में सरकार के कामकाज व विकास में न तो कोई गतिरोध रहे और न ही बहाना। उधर एलजी का कहना था कि सेवाओं को विधानसभा के अधिकार क्षेत्र के बाहर बताने से संबंधित गृह मंत्रालय की 2015 की अधिसूचना अभी तक वैध है। इसलिए दिल्ली सरकार के पास इस मामले में कार्यकारी शक्ति नहीं है।

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