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नवाज शरीफ का भविष्य

👤 Veer Arjun Desk | Updated on:15 July 2018 6:48 PM GMT
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पाकिस्तान के अपदस्थ प्रधानमंत्री नवाज शरीफ यह जानते हुए भी कि देश में सेना के प्रभुत्व के सामने सिर उठाने का क्या परिणाम होगा उन्होंने सेना को आइना दिखाना शुरू किया जिसका परिणाम है कि आज वे बेटी-दामाद सहित अदियाला जेल पहुंच गए। जेल जाना उनकी मजबूरी और ताकत दोनों हैं। मजबूरी इसलिए क्योंकि यदि वे लंदन में पत्नी के बीमारी का बहाना बनाकर दुबके रहते तो पाकिस्तान में उनकी राजनीतिक पूंजी लुप्त हो जाती। इसलिए चुनाव के अवसर पर शेर का चुनाव चिन्ह लेकर मुस्लिम लीग (नवाज) साफ हो जाती। लेकिन नवाज शरीफ भले ही जेल में बंद हैं, मगर उनकी पार्टी के प्रत्याशी अपने प्रतिद्वंद्वियों को ललकारने की स्थिति में आ गए हैं। शरीफ का वापस आना उनकी ताकत इसलिए बन गई है क्योंकि दूर किसी देश में स्वनिर्वासन की जिन्दगी जीने के बजाय अदियाला जेल में सजा काटने के उनके फैसले ने उनका कद जनरलों की तुलना में कई गुना बढ़ा दिया है। नवाज शरीफ ने पाक मीडिया के साथ-साथ दुनियाभर की मीडिया में यह संदेश दिया कि वह `मुशर्रफ की तरह बुझदिल नहीं हैं।'

असल में पाकिस्तान की न्यायपालिका सेना प्रतिष्ठान द्वारा दिए निर्देशों को कानूनी तरीके से लागू करने के लिए अभिशप्त है। जनरल जिया उल हक ने देश की न्यायपालिका को बता दिया था कि चुनी हुई सरकार और राजनेताओं के खिलाफ किसी मामले में फैसला देने से पहले बचाव पक्ष की दलीलों और सबूतों को कैसे ठुकराया जाता है। जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी देने वाले सभी जजों ने मरने से पहले स्वीकार किया कि भुट्टो की फांसी उनकी `न्यायिक हत्या' थी। आज भी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज सेना के मनमुताबिक फैसले देकर अपना मान बढ़ाते हैं। नवाज शरीफ के मामले में भी यही हुआ। अप्रैल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कह दिया था कि नवाज शरीफ पर पनामा पेपर्स मामले में ऐसा आरोप नहीं है कि उन्हें सत्ता से हटाया जा सके किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने एक संयुक्त जांच समिति का गठन किया था जिसमें फेडरल जांच एजेंसी के एडीशनल डीजी वाजिद जिया, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकिंग एंड फाइनेंस के एमडी आमीर अजीज (ब्रिगेडियर अब्दुल अजीज के पुत्र), सिक्योरिटी एक्सचेंज के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर बिलाल रसूल, पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के ब्रिगेडियर मोहम्मद नौमान सईद, मिलिट्री इंटेलीजेंस के ब्रिगेडियर कामरान खुर्शीद शामिल थे, उसने उनके खिलाफ विरोधियों द्वारा लगाए गए सभी आरोपों की जांच करने की सिफारिश की। उनके खिलाफ जांच में पाया गया कि यूनाइटेड अरब अमीरात में अपनी नौकरी करने की बात उन्होंने चुनावी हलफनामे में छिपाई थी। इसका दोषी पाते हुए उन्हें संसद की सदस्यता से अयोग्य ठहरा दिया गया। परिणामस्वरूप उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा। फैसले में यह भी कहा गया कि नवाज शरीफ के खिलाफ तीन मामलों में जांच होगी। सितम्बर 2017 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नेशनल जवाबदेही ब्यूरो की विशेष भ्रष्टाचार निरोधक अदालत ने कार्रवाई शुरू की और इसी 6 जुलाई को उन्हें 10 साल की सजा और उन पर 80 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया। पुत्री मरियम को सात साल और दामाद कैप्टन (से.नि.) मोहम्मद सफदर को एक साल की कड़ी सजा सुनाई। मजे की बात तो यह है कि जिस वक्त नवाज शरीफ को सजा सुनाई जा रही थी उस वक्त वे लंदन एवनफील्ड हाउस, पार्प लेन के ही फ्लैट में थे जिसे लेकर उनके खिलाफ मुकदमे का फैसला हो रहा था। नवाज शरीफ ने अदालत में अपील की थी कि फैसला उनके सामने सुनाया जाए किन्तु कोर्ट ने उनकी एक न सुनी। इतना जरूर किया कि पहले नवाज को जो सजा 14 वर्ष की सुनाने वाले थे उसे 10 वर्ष कर दिया और बेटी मरियम को 10 साल की सुनाई जाने वाली सजा को घटाकर सात साल कर दिया।

बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार बुसतुल्लाह खान ने लिखा है कि ``इस मामले को तकनीकी और कानूनी तरीके से पेशेवर अंदाज में बंद कमरे की सुनवाई तक सीमित करने के बजाय एक समानांतर अदालत सुप्रीम कोर्ट की सीढ़ियों पर लगा ली गई और यूं अदालत समर्थक और अदालत विरोधी समूह उभर कर सामने आ गए और मीडिया की मेहरबानी से पनामा एक दलदल की तरह बढ़ता चला गया।''

बहरहाल नवाज शरीफ को सजा का आधार लंदन में खरीदे गए उन चार आलीशान फ्लैटों की कीमत की रकम की जानकारी छिपाने के आरोप में हुई है। सवाल यह है कि जब संयुक्त जांच टीम (जेआईटी) ही विश्वसनीय नहीं थी तो वह निष्पक्ष जांच कैसे कर सकती थी? और जब बचाव पक्ष के दस्तावेजों को कोर्ट ने माना ही नहीं तो कोर्ट का फैसला मानने के लिए नैतिक व कानूनी दोनों ही दृष्टि से नवाज शरीफ चुनौती देने के लिए स्वतंत्र हैं।

नवाज शरीफ का देश के अंदर जेल में बंद रहकर ही देश की जनता को यह सशक्त संदेश ही नहीं, बल्कि मूक प्रचार भी है कि अब देश में मजबूत लोकतंत्र की जरूरत है। आश्चर्य की बात तो यह है कि सेना ने लोकतंत्र की आवाज उठाने पर पहले नवाज शरीफ के खिलाफ मीडिया का ही इस्तेमाल किया था। पाकिस्तान की मीडिया में काफी दिनों तक चला कि नवाज शरीफ कहते हैं कि ``जिस सेना को हमने लड़ाकू विमान खरीद कर दिए, गोला-बारूद दिए वह सीमा पर लड़ती है तो हार जाती है। आतंकवादियों से लड़ने का जिम्मा लिया किन्तु आतंकी बढ़ते ही जा रहे हैं। जो सेना युद्ध करने लायक नहीं और जो सेना आतंक को खत्म करने में सक्षम नहीं वह देश के लोकतंत्र के लिए चुनौती बनी हुई है।'' लेकिन आज हालत यह है कि पाकिस्तान की सेना डॉन अखबार और जियो न्यूज टीवी चैनल को बंद कराने की हर तरकीब लगा रही है जबकि देश का मीडिया जो सेना की आलोचना के लिए नवाज शरीफ की आलोचना करता था वही अब यह सलाह देने लगा है कि नवाज शरीफ को लोकतंत्र की मजबूती के लिए जो भी कीमत चुकानी पड़े, चुकानी चाहिए।

पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है जिसकी सेना के पास अपना एक मुल्क है। वह रीयल एस्टेट में काम करती है, वह फ्रिज बनाती है, एसी और कूलर बनाती है, वह हवाला का कारोबार करती है। इसलिए वह कभी नहीं चाहेगी कि कोई चुनी हुई सरकार उस पर हुक्म चलाए इसीलिए वह अपना एक `ढक्कन' प्रधानमंत्री चाहती है। 25 जुलाई को देश में मतदान होगा और इस चुनाव में सभी पार्टियों से तोड़कर 140 निर्दलीय प्रत्याशी खड़े किए गए हैं जिनका चुनाव निशान `जीप' है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि 342 सीटों वाली नेशनल असेम्बली में बहुमत जुटाने के लिए निर्दलीयों की मदद से एक कमजोर प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार बनाई जा सके। अभी पाकिस्तान में चुनाव होने में एक सप्ताह बाकी है और दिवंगत ब्रिटिश प्रधानमंत्री हेराल्ड विल्सन की मानें तो `एक सप्ताह कई सालों पर फैल जाता है।' यदि नवाज शरीफ की पार्टी जीत जाती है तो सेना प्रतिष्ठान का मनोबल जरूर गिरेगा। किन्तु देश में लोकतंत्र की मजबूती तो तभी संभव है जब सभी पार्टियां लोकतंत्र के लिए त्याग करने के लिए तैयार हों। नवाज शरीफ 2008 की तरह पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) को भी इस मुद्दे पर जोड़ने की कोशिश करें तो बेहतर होगा। सच तो यह है कि अब नवाज शरीफ को समय की प्रतीक्षा करनी होगी लेकिन अपने लिए नहीं बल्कि अपने लोकतंत्र बचाने के अभियान की। नवाज शरीफ की पार्टी के बड़े नेताओं को चाहिए कि वह अमेरिका, यूरोप और चीन को अपने बिगड़ैल जनरलों की करतूतों की जानकारी दें। सच तो यह है यदि पाकिस्तान की सेना नियंत्रित हो जाए तो एशिया के तमाम मुल्कों में शांति महसूस की जाएगी जबकि इसका प्रत्यक्ष असर भारत, अफगानिस्तान, ईरान और बांग्लादेश में आतंकी गतिविधियों पर पड़ेगा।

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