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जहां रोज 100 किमी रफ्तार के 4 से 6 तूफान आते हैं
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आंधी-तूफान ने रविवार को देश के उत्तर से लेकर दक्षिणी और पूर्व से लेकर पश्चिमी हिस्सों में तबाही मचाई। दिल्ली में 109 किलोमीटर की रफ्तार से आंधी चली। 24 घंटे के दौरान आंधी-तूफान और बारिश की वजह से हुए हादसों में छह राज्यों में 50 से ज्यादा लोग मारे गए, सैकड़ों पेड़ गिर गए, कई घर तबाह हो गए। हवा की रफ्तार की बात करें तो दैनिक भास्कर में मैंने एक दिलचस्प रिपोर्ट पढ़ी। इस साल दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ माउंट एवरेस्ट पर जाने के लिए भारत की आठ महिलाओं को परमिट मिला है। इन आठ में एक मध्यप्रदेश की मेघा परमार भी हैं। मेघा अभी सफर में हैं। करीब 23 हजार फुट की ऊंचाई तक पहुंच चुकी हैं। 15 मई के आसपास वह 29 हजार फुट ऊंचाई वाले शिखर के लिए निकलेंगी। यह रिपोर्ट एवरेस्ट के रास्ते से उन्होंने भेजी है। रविवार दोपहर तीन बजकर 30 मिनट पर। मैं माउंट एवरेस्ट के कैंप दो यानि 21 हजार फुट पर हूं। तापमान माइनस 18 डिग्री है। तीन घंटे पहले आए बर्फीले तूफान से बचने के लिए हम कैंप के अंदर बैठे हैं। बाहर करीब 100 किलोमीटर की रफ्तार से बर्फीली हवाएं चल रही हैं लेकिन मुझे अपने गांव की मिट्टी को चोटी तक पहुंचाना है। यहां रोज चार से छह बर्फीले तूफान आते हैं। कई बार तो बर्प के बड़े टुकड़े भी खिसक आते हैं। ऐसे तूफान दिन में ज्यादा आते हैं। इसलिए चढ़ाई रात दो बजे के बाद करते हैं। हम लोग प्रेस्टीज एडवेंचर ग्रुप के साथ हैं और मेरे अलावा इसमें ईरान से मेहर दादशहलाए, इटली की मार्को जाफरोनी और पोलैंड की पावेल स्टम्पनिस्वस्की हैं। पिछले सप्ताह जब हम कैंप दो से तीन के बीच सीधी पहाड़ी पर चढ़ रहे थे तब रात दो बजे तेज हवाएं हमारा रास्ता रोक रही थीं और आठ घंटे लगातार सीधी चढ़ाई के बाद हम कैंप तीन पर पहुंचे थे। कैंप दो से तीन के बीच पीठ पर बंधा ऑक्सीजन सिलेंडर हमेशा सांस लेने में मदद करता है। कैंप तीन से आने के बाद भी हम लगातार यहां आसपास मौजूद छोटी-छोटी पहाड़ियों पर चढ़ने की प्रैक्टिस करते रहते हैं ताकि एनर्जी बनी रहे। बेस कैंप से शिखर तक कुल चार कैंप हैं। बर्फीली पहाड़ियों पर चढ़ने पर शरीर में पानी की कमी भी हो जाती है। इसे दूर करने के लिए पहाड़ पर जमी बर्प को काटकर एल्युमीनियम के बर्तन में गरम करते हैं। यही पानी पीते हैं। अभी-अभी खबर आई है कि आठ शेरपा शिखर पर पहुंच चुके हैं। ऐसा करने वाले इस साल के पहले पर्वतारोही हैं। मेरे ग्रुप का 15 मई के आसपास शिखर पर जाने का प्लान है। अब जैसे-जैसे हम ऊंचाई तक पहुंचेंगे ऑक्सीजन कम होती जाएगी। फेफड़ों में पानी भरने व दिमाग शून्य होने का खतरा होता है। इस साल भारत से आठ महिलाएं माउंट एवरेस्ट पर जाने वाली हैं, मुझे लगता है कि सबसे पहले मैं ही शिखर पर पहुंचूंगी। बैस्ट ऑफ लक मेघा परमार।
-अनिल नरेन्द्र
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