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84 का दंगा देश के लिए काला अध्याय

👤 Veer Arjun Desk 4 | Updated on:5 Dec 2018 7:26 PM GMT
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1984 में ईस्ट दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके में हुए दंगों में 95 सिखों की लाशें मिली हैं। इस मामले में 88 लोगों को दोषी ठहराया जाता है। बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट ने 88 लोगों की सजा बरकरार रखी। हाई कोर्ट ने दोषियों की 22 साल पुरानी अपील को खाfिरज करते हुए कहा कि उन्हें निचली अदालत द्वारा दी गई पांच-पांच साल कैद की सजा सही है। बड़ी बात यह है कि किसी भी दोषी पर हत्या की धाराओं (धारा 302) में एफआईआर दर्ज नहीं होती। आखिरकार पुलिस-पशासन हमें यह तो बता दे कि इन 95 सिखों की हत्या किसने की? 88 ने दंगे भड़काए, कर्फ्यू तोड़ा, इन्हें सजा मिल गई लेकिन हमारे पिता, भाई-बहन, दादी-दादा को किसने मारा... कौन है वो जिन्हें बचाया जा रहा है? यह कहना था पीड़ित परिवार के सदस्यों का। बुधवार को हाई कोर्ट ने 88 दोषियों की अपील पर 22 साल बाद फैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने सभी दोषियों की सजा को बरकरार रखा है और सभी दोषियों को सरेंडर करने को कहा है। अभियोजन की इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जो आरोप लगाए गए वह अपराध हुआ था। यह दंगे 34 साल पहले हुए थे, लेकिन इनके पीड़ित अब तक न्याय का इंतजार कर रहे हैं। क्या यही हमारी पभावी न्यायिक पणाली है? क्या हमारा न्यायलय इतने बड़े मामलों की सुनवाई के लिए सक्षम है? क्या हमें न्यायिक पकिया के इस कड़वे अनुभव से सबक सीखने की जरूरत है? यह तल्ख टिप्पणी हाई कोर्ट ने 70 दोषियों की अपील खारिज करते हुए की है। न्यायमूर्ति आर के गावा ने फैसले में कहा कि यह असल में बेहद दुख का विषय है कि रसूखदार लोगों द्वारा कराए गए दंगों की पभावी सुनवाई के लिए न्यायिक पकिया में आज तक किसी ने अर्थपूर्ण तरीके से सोचने की जरूरत नहीं समझी। जिस तरीके से इस केस की सुनवाई हुई है, वह देश के न्यायिक इतिहास में एक ऐसे मुकदमे के तौर पर याद किया जाएगा, जिसका अनुकरण नहीं किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति आर के गावा ने 79 पेज के फैसले में कहा कि यह मामला सुनवाई और अपील के दौरान जिस तरह आज तक लटक रहे हैं उससे साफ है कि कानून की पकिया बेहद धीमी, निष्पभावी व बेहद असंतोषजनक रही है। त्रिलोकपुरी के पीड़ित परिवारवालों ने कहा कि हम तो उम्मीद लगाए बैठे थे कि इन्हें फांसी की सजा मिलेगी, लेकिन पुलिस की लाचारी और लापरवाही के चलते हमें इंसाफ नहीं मिल पाया है। हमारे सामने हमारे परिवारवालों को मारा गया... गवाही हुई... दोषी पाए गए लेकिन एफआईआर में सिर्प दंगा और कर्फ्यू की धाराएं। आखिरकार वे कौन लोग थे fिजन्होंने 95 सिखों का कत्ल किया?

-अनिल नरेन्द्र

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