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केजरीवाल को चुनौती

👤 admin6 | Updated on:7 May 2017 7:38 PM GMT

केजरीवाल को चुनौती

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शनिवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने अपने मंत्रिपरिषद के एक सदस्य कपिल मिश्रा को बर्खास्त कर दिया तो आशंका व्यक्त की गई कि ऐसा करने के पीछे केजरीवाल का एक ही उद्देश्य हो सकता है कि वह कुमार विश्वास के समर्थकों को सबक सिखाना चाहते हैं। इस धारणा के पीछे एक कारण यह बताया जा रहा था कि केजरीवाल पार्टी के अंदर अपने विरोधियों को बर्दाश्त नहीं करते। सरकार की तरफ से उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने जवाब दिया कि कपिल मिश्रा का कामकाज संतोषजनक नहीं था इसलिए उन्हें हटाया गया किन्तु रविवार को कपिल मिश्रा ने अपनी बर्खास्तगी का जो कारण बताया उसने तो आम आदमी पार्टी की अत्यंत शर्मनाक घटना को साबित कर दिया है। पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने राजघाट पर संवाददाता सम्मेलन करके बताया कि शुक्रवार को एक अन्य मंत्री सत्येन्द्र जैन जो पिछले कुछ दिनों से हवाला कारोबार से लाभान्वित होने के आरोप में सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं उन्होंने मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को उन्हीं के सरकारी आवास पर दो करोड़ कैश दिया। लेकिन कपिल मिश्रा ने जब पूछा कि यह क्या है तो केजरीवाल ने कहा कि राजनीति में कुछ बातें बाद में बताई जाती हैं। कपिल मिश्रा ने दावा किया कि जैन ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से बताया कि केजरीवाल के एक खास रिश्तेदार के लिए 50 करोड़ में भूमि का सौदा कराया है। कपिल ने कहा कि जब उन्होंने जमीन सौदे के बारे में जैन द्वारा दी गई जानकारी के बारे में केजरीवाल से पूछा तो उन्होंने कहा कि तुम्हें मुझ पर भरोसा करना चाहिए। कपिल मिश्रा ने सत्येन्द्र जैन के मंत्रालयों में घोटालों की बात भी कही। कपिल मिश्रा यहीं नहीं रुके उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर इस तरह के अवैध लेनदेन की जानकारी उन्होंने उपराज्यपाल को दे दी है जबकि सीबीआई और एसीबी को कल यानि सोमवार को प्रमाण सहित दे देंगे। कपिल मिश्रा का मुख्यमंत्री पर सीधा आरोप है कि उन्होंने उनको इसलिए मंत्रिपरिषद से बर्खास्त किया क्योंकि उन्होंने उनके भ्रष्टाचार का विरोध किया। इसके बाद मुख्यमंत्री के बचाव में आए उपमुख्यमंत्री ने चन्द सैकेंड में अपनी बात रखते हुए कहा कि कपिल मिश्रा द्वारा लगाए गए आरोप निराधार हैं और इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। कपिल को उनके कामकाज में कमी होने के कारण हटाया गया। विधायकों की काफी शिकायत थी उनसे।

सच तो यह है कि मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने दो नवम्बर एवं 13 नवम्बर 2016 को सार्वजनिक रूप से कपिल मिश्रा की जलापूर्ति के लिए प्रशंसा की थी। 13 फरवरी 2017 को मनीष सिसोदिया ने प्रेस कांफ्रेंस में कपिल की इस बात के लिए तारीफ की थी कि उनके कारण दिल्ली में जलापूर्ति का कामकाज बहुत ही अच्छा हो गया है। इसलिए कपिल द्वारा रिश्वतखोरी के आरोपों में दम लगता है कि घटना के एक दिन बाद ही उनको मंत्रिपरिषद से बाहर कर दिया गया। सरकार के स्पष्टीकरण में दम इसलिए नहीं लगता कि जो मंत्री अभी कुछ दिनों पहले तक तो बहुत कुशल था फिर इतनी जल्दी वह नकारा कैसे हो गया। हो सकता है कि सरकार का स्पष्टीकरण सही हो किन्तु यदि मनीष सिसोदिया के दावों को मान लिया जाए कि दिल्ली में जलापूर्ति बेहद खराब है तो वह प्रतिदिन इस बात का दावा कैसे करते रहते थे कि जलापूर्ति के मामले में दिल्ली में कोई संकट नहीं है। इसका मतलब है या तो सरकार छह मई के पहले दिल्ली की जनता को बेवकूफ बना रही थी या फिर छह और सात मई को मनीष ने कहकर बनाया कि दिल्ली में जलापूर्ति का संकट था और कपिल से समाधान नहीं हो पा रहा था। सवाल इस बात का है कि जब एक तरफ अरविन्द केजरीवाल के समर्थक यह कह रहे हैं कि कपिल मिश्रा उन पर निराधार आरोप लगा रहे हैं तो पूर्व मंत्री अपने आरोपों को साबित कैसे करेंगे? चूंकि कपिल मिश्रा यह दावा कर रहे हैं कि उनके पास अवैध लेनदेन के सबूत हैं और उन्हीं के आधार पर वह सीबीआई जांच की मांग करेंगे, इसलिए कम से कम कपिल मिश्रा द्वारा किए गए खुलासे को हवाहवाई तो नहीं ही कहा जा सकता। अब यह बात स्पष्ट रूप से तभी सामने आएगी कि जमीन का सौदा केजरीवाल के किस रिश्तेदार के लिए मंत्री सत्येन्द्र जैन करा रहे हैं और उसमें कितना कमीशन जैन का बना और कितना केजरीवाल का किन्तु इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पार्टी के सत्ता में आने के बाद केजरीवाल ने अपनी कार्यशैली के खिलाफ अंगुली उठाने वालों को एक-एक कर पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया। इससे एक बात तो साबित होती है कि केजरीवाल पारदर्शिता को मुद्दा बनाकर सत्ता में आए जरूर किन्तु उन्हें पारदर्शिता कभी भी स्वीकार नहीं थी। वे हमेशा अपनी मर्जी से काम करते रहे और अपने विश्वस्त सहयोगियों के साथ ही सहज महसूस करते रहे।

बहरहाल सबसे बड़ा सवाल यह है कि अब क्या होगा केजरीवाल सरकार और उनकी पार्टी के भ्रष्टाचार विरोधी छवि का? सच तो यह है कि अरविन्द केजरीवाल ही पार्टी और सरकार के मुखिया हैं इसलिए उनकी छवि से ही पार्टी और सरकार का भविष्य जुड़ा है। किसी भी पार्टी पर भ्रष्टाचार का आरोप लग जाए तो उसके प्रति आम लोगों में जो धारणा बनती है वही घातक साबित होती है। डॉ. मनमोहन सिंह सरकार के खिलाफ 2जी, कोलगेट और कॉमनवेल्थ घोटाले साबित नहीं हुए थे किन्तु धारणा के आधार पर कांग्रेस 44 सीटों पर सिमट गई। अभी तक जनता में एक धारणा बन गई थी कि केजरीवाल अपने लोगों के भ्रष्टाचार को नजरंदाज करते हैं। उन पर आरोप लगा कि पंजाब के दोनों प्रभारी संजय सिंह और दुर्गेश पाठक ने टिकटों के लिए प्रत्याशियों से पैसे लिए किन्तु दोनों ही केजरीवाल के अंधसमर्थक हैं इसलिए उनके खिलाफ तो कार्रवाई हुई नहीं, बल्कि उनको जरूर पार्टी से बाहर कर दिया गया जिन्होंने संजय सिंह और दुर्गेश पाठक के खिलाफ बोलने का साहस किया। अरविन्द पर आरोप था कि उन्होंने राजेन्द्र कुमार जैसे भ्रष्ट अधिकारी को मुख्यमंत्री कार्यालय का प्रधान सचिव बनाया और जब वह गिरफ्तार हो गए तब भी उसका साथ देते रहे। केजरीवाल के साढू सुरेन्द्र बंसल पर तो शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि उन्हें फर्जी ठेका दिया गया है। यही नहीं, शुंगलू कमेटी ने तो केजरीवाल और सत्येन्द्र जैन के कारनामों को खोलकर रख दिया। लेकिन अब कपिल मिश्रा ने सीधे पार्टी के शीर्ष पुरुष और सरकार के मुखिया को निशाना बनाकर जो यह कोशिश की है कि मंत्रिपरिषद से उनकी बर्खास्तगी का कारण उनकी अकर्मण्यता नहीं बल्कि केजरीवाल का भ्रष्टाचार है, इससे पार्टी की छवि तो खराब हुई ही साथ ही सरकार के प्रति लोगों में विश्वास भी टूटा है। अब लोगों में यह धारणा बन गई है कि केजरीवाल अपने रिश्तेदारों एवं अपने लिए जमकर सत्ता का इस्तेमाल करके लूट-खसोट कर रहे हैं। अपना मानना है कि जिस पार्टी के प्रति आम जनता की धारणा प्रतिकूल हो, उसका पतन निश्चित है। अब तो केजरीवाल के सामने एक ही विकल्प है कि वह मुख्यमंत्री एवं पार्टी के संयोजक पद से त्याग पत्र देकर अपने खिलाफ लगे आरोपों की जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा करें अन्यथा भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे अन्य पार्टी के नेताओं की तरह अपने कथित भ्रष्ट छवि के खिलाफ संघर्ष करते हुए आम आदमी पार्टी को तबाह होने दें और सरकार की विश्वसनीयता को रसातल में जाने दें। लब्बोलुआब यह है कि दिल्ली के लोगों ने आम आदमी पार्टी और केजरीवाल के रूप में अपने सपनों को साकार करने के लिए इस्तेमाल किया था वह पूरा होता नहीं दिखता। आश्चर्य की बात तो यह है कि जो पार्टी अन्ना के आंदोलन में राइट टू रिकॉल यानि जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के अधिकार को लेकर जनमानस को आंदोलित कर रही थी। अब केजरीवाल के सामने चुनौती है कि वे खुद को बचाना चाहेंगे या पार्टी को।

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