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2019 जीतने के लिए मोदी को बिहार में मिले यूपी के रामनाथ

👤 admin6 | Updated on:21 Jun 2017 7:45 PM GMT

2019 जीतने के लिए मोदी को बिहार में मिले यूपी के रामनाथ

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लाल कृष्ण आडवाणी, डाक्टर मुरली मनोहर जोशी, सुमित्रा महाजन, सुषमा स्वराज, द्रोपदी मुर्मू, . श्रीधरन... और ऐसे कई नाम राष्ट्रपति बनने के लिए चर्चा में थे। शत्रुघ्न सिन्हा ने तो खुलकर आडवाणी का नाम लेकर अगले राष्ट्रपति की उम्मीद भी जता दी थी। फिर अटकलें इस बात पर भी लगाई जा रही थीं कि शायद गुरुदक्षिणा के नाम पर मोदी जी आडवाणी जी को देश का प्रथम नागरिक बना देंगे। लेकिन जो नाम चर्चा में रहे, मोदी उस पर कभी मुहर नहीं लगाते। नवाज शरीफ को शपथ पर बुलाकर, स्मृति ईरानी का विभाग बदलकर, गुजरात में आनंदीबेन और फिर रूपाणी को मुख्यमंत्री बनाकर भी वे ऐसे ही चौंका चुके हैं। हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के सीएम के नाम का ऐलान भी सारे कयासों को झुठलाते हुए ही किए थे और अब रामनाथ कोविंद। लेकिन कोविंद ही क्यों? क्या मायने हैं इसके? मोदी-शाह की सोच क्या है? भारतीय जनता पार्टी ने बिहार के मौजूदा राज्यपाल रामनाथ कोविंद को एनडीए का राष्ट्रपति घोषित कर आखिर सारी अटकलों पर न सिर्फ विराम ही लगा दिया, बल्कि विपक्ष को शायद अपनी रणनीति फिर से बनाने के लिए बाध्य कर दिया है। सच तो यही है कि जिस नाम की अब तक चर्चा तक न थी, उस नाम को सामने लाकर भाजपा नेतृत्व ने अपने-परायों सभी को चारों खाने चित्त कर दिया है। पहली बार प्रधानमंत्री के साथ-साथ राष्ट्रपति भी उत्तर प्रदेश से होगा। रामनाथ कोविंद 15 साल बाद दूसरे दलित राष्ट्रपति होंगे। रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने के कई सियासी मायने भी हैं। भाजपा ने मिशन 2019 के लिए बड़ा कार्ड खेला है। कोविंद जीते तो यह पहला मौका होगा जब दोनों पीएम और राष्ट्रपति एक ही राज्य से होंगे। कोविंद के चुने जाने पर वे देश के दूसरे और उत्तर भारत से आने वाले पहले दलित राष्ट्रपति होंगे। कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर भाजपा उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राजनीतिक-सामाजिक समीकरणों वाले राज्यों के दलितों में अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिश करेगी। भाजपा का कभी कोई राष्ट्रपति नहीं रहा। कलाम को अटल जी ने राष्ट्रपति बनाया था, लेकिन उनका नाम मुलायम सिंह यादव ने बढ़ाया था, भाजपा ने सिर्फ समर्थन दिया था। फिर कलाम गैर-राजनीतिक थे। अब पहली बार भाजपा को यह मौका मिला है और वो इसे चूकना नहीं चाहती। कोविंद संघ और भाजपा के हैं। बावजूद उनकी छवि कट्टरपंथी की नहीं है, यही उनके पक्ष में भी गया। जिस तरह से दलितों के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट हो रहा था, मोदी ने उसका तोड़ निकाल लिया है। हां अब बैकफुट पर आया विपक्ष भी किसी दलित को अपना उम्मीदवार बनाने की सोच रहा है। पर यह देश की विडंबना ही कही जाएगी कि अब देश के सर्वोच्च पद पर जाति के आधार पर फैसले होंगे। राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक होता है। उसकी अंतर्राष्ट्रीय विजन, छवि, पहचान जरूरी है। पता नहीं कि श्री कोविंद इन मापदंडों पर कितने खरे उतरते हैं? रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा के साथ विपक्षी गुणा-गणित भले ही नए सिरे से शुरू करें लेकिन कटु सत्य तो यह है कि इस अप्रत्याशित चेहरे को सामने लाकर भाजपा ने विपक्ष के समीकरण बिगाड़ दिए हैं। भाजपा के वोट और समर्थन के समीकरण की मौजूदा गणित में बड़ा हेरफेर न हुआ तो तय है कि इसके बाद विपक्ष की लड़ाई शायद औपचारिक रह जाएगी। कोविंद दलितों में कोली समुदाय से आते हैं जो यूपी में जाटव और पासी के बाद सबसे बड़ा दलित समुदाय है। बीते लोकसभा और विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में मायावती के दलित वोट में सेंध लगाकर बड़ी सफलता हासिल की है और अब इसमें और बढ़ोत्तरी करने की कोशिश करेगी। भाजपा की रणनीति में दलित राष्ट्रपति की योजना पहले से ही थी, इसलिए मध्यप्रदेश से आने वाले थावरचन्द गहलोत के नाम की चर्चा थी। राजनीतिक संदेश के लिए मध्यप्रदेश से ज्यादा बेहतर उत्तर प्रदेश और बिहार होता है इसलिए भी कोविंद का पलड़ा भारी पड़ा। वैसे भी भाजपा में ज्यादा बोलने वाले से ज्यादा सुनने वाले को पसंद किया जाता है। यह भी रामनाथ कोविंद के पक्ष में रहा है।

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