Home » संपादकीय » अलगाववादियों पर सख्त कार्रवाई की जरूरत

अलगाववादियों पर सख्त कार्रवाई की जरूरत

👤 admin6 | Updated on:24 Jun 2017 4:41 PM GMT

अलगाववादियों पर सख्त   कार्रवाई की जरूरत

Share Post

रमजान में शब--कद्र की मुबारक रात को जब पूरी दुनिया में मुसलमान अपने गुनाहों से तौबा करते हुए खुदा की इबादत में मशगूल थे, उस वक्त श्रीनगर की जामिया मस्जिद के अंदर कश्मीर के अलगाववादी और आतंकवाद के समर्थक मीरवाइज उमर फारुक लोगों को इस्लाम का पाठ पढ़ा रहे थे और मस्जिद के बाहर आतंकवाद के समर्थक नमाजियों की भीड़ ने राज्य पुलिस के उपाधीक्षक (डीएसपी) मोहम्मद अयूब पंडित को पीट-पीटकर उनकी जान ले ली। भीड़ में जमा लोगों को पता था कि मोहम्मद अयूब मस्जिद से ही सटे खानयार के निवासी हैं।

राज्य के सुरक्षा विंग में तैनात डीएसपी बृहस्पतिवार की रात यानि शब--कद्र के अवसर पर मस्जिद के सामने सादे कपड़ों में अपने सहयोगियों के साथ इसलिए खड़े थे ताकि कोई आतंकी या विध्वंसकारी तत्व मस्जिद में न घुस जाए। मस्जिद के मुख्य द्वार पर खड़े डीएसपी पंडित ने अपने मोबाइल से किसी से बात करनी शुरू कर दी तो वहां मौजूद कुछ खुराफाती तत्वों को लगा कि वे उनकी रिकार्डिंग कर रहे हैं। खुफिया सूत्रों के मुताबिक नमाजियों की भीड़ में मौजूद किसी पत्थरबाज ने मोहम्मद अयूब पंडित को पहचान लिया और उन पर हमला कर दिया। अपनी सुरक्षा में डीएसपी ने अपने सर्विस रिवाल्वर से फायरिंग भी कि किन्तु लगता है कि उपद्रवियों ने उनकी जान लेना तय कर लिया था। भीड़ में डीएसपी के साथ तैनात उनके मातहत भी उन्हें बचा नहीं पाए और गोली चलने की आवाज सुनकर पुलिस और सीआरपीएफ जवान जब तक मस्जिद तक पहुंचे तब तक डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित शहीद किए जा चुके थे।

सुरक्षा घेरे में उमर फारुक मस्जिद के अंदर बैठा हुआ था और बाहर भीड़ एक पुलिस अधिकारी को घसीट-घसीट कर मार रही थी, भला कोई कैसे विश्वास करेगा कि उसे इस घटना की भनक नहीं लगी होगी। लोग यह भी मानने को तैयार नहीं हैं कि यदि उमर चाहता तो डीएसपी की जान नहीं बच सकती थी।

असल में पिछले कुछ दिनों से कश्मीर के अलगाववादी गिरोह यानि हुर्रियत जहां एक तरफ पाकिस्तान से मोटी रकम ऐंठ कर आतंक और अलगाव का समर्थन करते हैं और दूसरी तरफ भारत सरकार एवं राज्य सरकार को ब्लैकमेल कर सुरक्षा एवं विशेष सुविधाएं हासिल करते हैं की पूंछ में ईडी और एनआईए आग लगा रही है। केंद्र व राज्य सरकार उनकी धौंसपट्टी के दबाव एवं प्रभाव में नहीं आ रहे हैं। इसीलिए ये अलगाववादी तिलमिलाए हुए हैं। इसके अतिरिक्त सेना पाक प्रायोजित आतंकी संगठनों के खूंखार आतंकियों से निर्णायक रूप से निपटाने में लगी हुई है और इसके लिए विशेष अभियान `ऑल आउट' चलाए हुए है। पाकिस्तान की अपेक्षाओं के मुताबिक हुर्रियत दलाली की भूमिका निभाने में असहाय महसूस कर रही है। इसलिए आतंकियों के आकाओं एवं आईएसआई की नजरों में भी हुर्रियत की कीमत कम हुई है। कीमत कम हुई है तो भुगतान पर भी असर होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि हुर्रियत के लोग भारत सरकार से अत्यंत निराश एवं चिढ़े हुए हैं। हुर्रियत अपनी हैसियत जताने के लिए खुराफातियों द्वारा हिंसा की किसी भी हद को पार करने के पक्ष में है।

मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने यूं ही नहीं कहा कि अलगाववादियों से बात करनी चाहिए केंद्र सरकार को। महबूबा समझती हैं कि राज्य सरकार के हाथ में कुछ भी नहीं है। यहां तक कि पुलिस के शीर्ष अधिकारी भी सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के सम्पर्क में रहते हैं और मुख्य सचिव एवं प्रधान सचिव गृह राज्य में सैन्य अभियान के अधिकारियों के सम्पर्क में रहते हैं। यह बात फालतू है कि सुरक्षा मामलों में महबूबा की कोई दखल राज्य प्रशासनिक मुखिया और पुलिस प्रशासन के प्रमुख मानते हैं। महबूबा अपनी राजनीतिक मजबूरियों की वजह से कुछ भी बयान दें किन्तु वे इस बात को अच्छी तरह समझती हैं कि हुर्रियत को कौड़ी का तीन करने के लिए ही केंद्र सरकार ने पाक से वार्ता ठुकरा दी है। पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ 26 मई 2014 को जब प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे तब भी हुर्रियत के लोग पाक प्रतिनिधिमंडल से नहीं मिल सके थे और हुर्रियत से मिलने की शर्तों की वजह से ही भारत सरकार ने पाक नेताओं से बातचीत ठुकरा दी है।

इसलिए हुर्रियत को उसकी औकात बताने के लिए केंद्र सरकार ने जो रणनीति बनाई है उसमें राज्य सरकार की कोई भूमिका है ही नहीं। हुर्रियत अब पत्थरबाजों, आतंकी आकाओं और पाकिस्तान के प्रति आत्मीयता दिखाने के लिए अपनी हैसियत का अहसास कराता रहता है इसलिए केंद्र सरकार को चाहिए कि किसी भी आतंकी, पत्थरबाजी या हिंसा के लिए हुर्रियत के सरगनाओं को भी जिम्मेदार ठहराने के लिए कानूनी तानाबाना तैयार करे। कानूनी और अदालती कार्यवाहियों में राज्य सरकार कोई बाधा डालेगी, इसकी संभावना बिल्कुल भी नहीं है क्योंकि महबूबा अब राज्य की कानून व्यवस्था की असलियत समझने लगी हैं। डीएसपी अयूब पंडित के परिवार की तरह ही गत सप्ताह शहीद किए गए छह पुलिसकर्मियों एवं एक फौजी जवान की मौत पर कश्मीर के आम निवासी अब महसूस करने लगे हैं कि हुर्रियत सिर्फ आग लगाता है बुझाने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं है। पीड़ित परिवार ने खुद को भारत के प्रति निष्ठा व्यक्त कर अलगाववादी हुर्रियत और आतंकियों को ही चिढ़ाया है।

महबूबा इस बात को अच्छी तरह समझती हैं कि केंद्र सरकार की प्राथमिकता है राज्य में शांति व्यवस्था कायम करना। केंद्र की मजबूरी नहीं है राज्य में एक ऐसी सरकार को वहन करना जो उसके मिशन में बाधक साबित हो। केंद्र सरकार राज्य में इसलिए एक वैचारिक विरोधी पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाने पर सहमत हुई ताकि दुनिया में यह संदेश जा सके कि कश्मीर में एक लोकतांत्रिक सरकार चल सकती है। महबूबा एक राजनीतिक पार्टी चला रही हैं इसलिए उनको अपनी पार्टी के अंदर अपने समर्थकों एवं विरोधियों के साथ संबंधों को प्रभावी बनाए रखने के लिए ऐसे बयान देने पड़ते हैं जो उनकी प्रासंगिकता को बरकरार रखें। महबूबा सरकार कानून व्यवस्था को लेकर न तो आतंकियों को कोई रियायत देती है और न ही अलगाववादियों को। यही कारण है कि आतंकी कश्मीर में चुन-चुनकर पीडीपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को निशाना बना रहे हैं। आतंकी कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को नहीं मारते क्योंकि इन दोनों पार्टियों के लिए तो पत्थरबाज मासूम बच्चे हैं।

बहरहाल अलगाववादियों को भी आतंकियों की ही श्रेणी में रखकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जरूरत है और इसके लिए केंद्र व राज्य सरकारों को राज्य में सेना व पुलिस का पूरा सहयोग इसी तरह करते रहना होगा। निश्चित रूप से कश्मीर में शांति बहाली होगी क्योंकि अब कश्मीर में खुराफात की सारी हदें पार हो गई हैं और खुराफाती अंतिम सांसें गिन रहे हैं क्योंकि इनकी सच्चाई कश्मीरी भी समझ चुके हैं इसलिए विध्वंस का अंत और शांति की शुरुआत तय है। किन्तु इसकी कीमत शांतिप्रिय कश्मीरियों को भी चुकानी होगी। उन्हें समझना होगा कि पुलिस और फौज में भर्ती हुए उनके परिजनों को आतंकी इसलिए निशाना बना रहे हैं ताकि कश्मीर में पुलिस-प्रशासन हतोत्साहित हो जाए और वह निर्दोष एवं शांतिप्रिय कश्मीरियों की मदद करने में असमर्थ हो जाएं। आतंकी संगठन चाहते हैं कि जब पुलिस और जनता असहाय हो जाएगी तो कश्मीर में इंटेलीजेंस एजेंसियों का नेटवर्क भी छिन्न-भिन्न हो जाएगा। आतंकियों की रणनीति की असफलता के लिए पुलिस और नागरिकों को इसी तरह अपना उत्साह कायम रखना होगा।

Share it
Top