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आर्थिक व कूटनीतिक रिश्ते साथ-साथ

👤 Veer Arjun | Updated on:7 Oct 2019 9:09 AM GMT

आर्थिक व कूटनीतिक रिश्ते साथ-साथ

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रिश्ते साथ-साथ विदेश नीति में जितना महत्व महाशक्तियों से अच्छे संबंध बनाने का होता है उतना ही महत्व पड़ोसियों से रणनीतिक एवं आर्थिक सहयोग स्थापित करने का होता है। बांग्लादेश भारत का ऐसा पड़ोसी देश है जो रणनीतिक एवं आर्थिक दृष्टि से भारत के लिए अत्यंत आवश्यक एवं संवेदनशील देश है। भारत की सभी सरकारों ने बांग्लादेश से अच्छे संबंध स्थापित करने का प्रायास जारी रखा किन्तु बांग्लादेश में वुछ भारत विरोधी मजहबी ताकतों की वजह से संबंध खट्टे-मीठे रहे किन्तु जब से बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार आईं है उसने अपनी तरफ से हर संभव कोशिश की है जिससे कि भारत से रिश्तों में खटास न आए।

संयोग मोदी सरकार ने वर्षो से लंबित सीमांकन के मुद्दे को हल करने के लिए देश में सभी राजनीतिक दलों के साथ मिलकर संसद में विधेयक पारित कराकर सीमांकन के मुद्दे को खत्म करने का प्रायास किया। इसके बाद से ही ढाका का नईं दिल्ली पर भरोसा बढ़ता चला गया। पश्चिम बंगाल सरकार भी नदी जल बंटवारे पर वेंद्र सरकार का सहयोग करने के लिए सहमत हुईं जिससे बांग्लादेश को इस बात का अहसास हुआ कि नईं दिल्ली बांग्लादेश के साथ संबंधों में सुधार एवं आपसी हितों को बढ़ाने में रुचि ले रहा है।

यही कारण है कि जो बांग्लादेश पहले भारत के खिलाफ हुए बड़े-बड़े आतंकी हमलों की निन्दा करने में इसलिए परहेज करता था कि पाकिस्तान नाराज हो जाएगा, वहीं बांग्लादेश अब भारत में पाक प्रायोजित आतंकी हमले की न सिर्प निन्दा करता है बल्कि पाकिस्तान का नाम लेकर भारतीय कार्रवाईं का समर्थन भी करता है। यही नहीं बांग्लादेश भारत का पक्ष लेते हुए सार्व देशों की होने वाली इस्लामाबाद बैठक से दूर हो गया। अभी हाल ही में जम्मूकश्मीर मुद्दे पर भी भारत का साथ दिया। भारत की चिन्ता दूर करने के लिए ही अपने देश को आतंकियों को इस्तेमाल न करने देने के लिए हर संभव प्रायास कर रही है हसीना सरकार।

बहरहाल प्राधानमंत्री शेख हसीना वाजेद इस वक्त नईं दिल्ली में हैं और उनकी मुलाकात प्राधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हुईं। दोनों देशों में हुईं द्विपक्षीय वार्ता से एक बात स्पष्ट हो गईं है कि भारत अपना विशाल बाजार बांग्लादेश के लिए खोलकर उसे आर्थिक लाभ पहुंचाने के लिए पूरी तरह तैयार है जबकि पड़ोसी देश भी भारत की रणनीतिक चिन्ताओं को दूर करने के लिए तैयार है।

बांग्लादेश की जमीन और राजनीति को भारत के दोनों परंपरागत शत्रु चीन और पाकिस्तान इस्तेमाल करने के लिए तत्पर रहते हैं। पाकिस्तान अपने आतंकी संगठनों को बांग्लादेश के शरारती तत्वों से सहयोग लेने के लिए आईंएसआईं के अधिकारियों एवं जासूसों के माध्यम से हमेशा प्रायास करता है। पाकिस्तान के उच्चायोग में तैनात राजनयिकों को एक ही काम है कि किस तरह बांग्लादेश की जमीन का दुरुपयोग भारत के खिलाफ षड्यंत्र रचने के लिए किया जाए। बांग्लादेश के इस्लामाबाद से न तो ज्यादा व्यावसायिक रिश्ते हैं और न तो वुछ खास कूटनीतिक फिर भी पाक उच्चायोग बांग्लादेश में इस तरह सक्रिय रहता है जैसे कि उसके राष्ट्रीय महत्व के हित बहुत ज्यादा हों। भारत के पूवरेत्तर राज्यों में जितने भी आतंकी गुट सक्रिय रहे हैं उन सभी का वित्तपोषण एवं उन्हें शस्त्र उपलब्ध कराने का काम ढाका स्थित पाक उच्चायोग में तैनात आईंएसआईं के लोग ही करते हैं। आजकल इनकी सक्रियता यदि कम हुईं है तो इसके लिए हसीना सरकार को ही श्रेय जाता है।

जहां तक चीन का सवाल है, उसने भारत को घेरने के उद्देश्य से ही चट्टोग्राम बंदरगाह बनाया और बांग्लादेश में निवेश की रणनीति अपनाईं। मनमोहन सरकार के वक्त चीन ने बांग्लादेश में अंधाधुंध निवेश किया और बांग्लादेश ने भी भारत की परवाह किए बिना चीन को ऐसा करने के लिए हर तरह का सहयोग किया। भारत का दुर्भाग्य यह था कि उन दिनों जमात- ए-इस्लामी बहुत ताकतवर थी जो बांग्लादेश में चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों के पक्ष में तो थी किन्तु भारत की तरफ से जब भी कोईं प्रायास होता वह आसमान सिर पर उठा लेते थे। फिलहाल इस वक्त इस तरह का भारत विरोधी संगठनों का हतोत्साहित होना भी भारतीय हितों के लिए शुभ है।

बांग्लादेश की सबसे बड़ी चिन्ता एनआरसी यानि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर है। एनआरसी को लेकर पाकिस्तान एक भ्रम पैला रहा है कि लाखों बांग्लादेशी मुसलमानों को भारत ने देश से निकाल दिया और अब वे दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हैं। इसी तरह का माहौल बांग्लादेश के अतिवादी मजहबी संगठन भी बना रहे हैं। वे बांग्लादेश में ऐसी अफवाह पैला रहे हैं कि जो लोग भारत में दशकों पहले गए थे, उन्हें एनआरसी के माध्यम से वापस बांग्लादेश भेजने की कोशिश कर रही है मोदी सरकार।

शनिवार को बांग्लादेश की प्राधानमंत्री ने यह मुद्दा उठाया तो उन्हें बताया गया कि यह प्राव््िराया विधि-सम्मत व सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत चलाईं जा रही है। प्राधानमंत्री मोदी ने प्राधानमंत्री शेख हसीना को गत सप्ताह न्यूयार्व में भी समझाया था कि एनआरसी में बाहर किए गए लोगों को बांग्लादेश भेजने का कोईं पैसला नहीं हुआ है।

भारत सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों की समस्या से निपटने के लिए भी बांग्लादेश की प्राधानमंत्री को आश्वासन दिया। शीर्ष बैठक में बांग्लादेश पक्ष ने प्याज आपूर्ति रोक जाने का मुद्दा उठाया तो वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने स्पष्ट किया कि समझौते के अनुसार जितनी प्याज बांग्लादेश भेजी जानी है, वह भेजी जाएगी। उल्लेखनीय है कि देश में प्याज की कमी के कारण सरकार ने निर्यांत पर रोक लगा दी है। सरकार ने ऐसा सिर्प इसलिए किया ताकि देश में प्याज का संकट न पैदा हो जाए। दूसरी तरफ भारत सरकार की मजबूरी यह है कि अपने जिन पड़ोसी देशों के साथ प्याज आपूर्ति का समझौता कर रखा है, उन्हें आपूर्ति करना भी जरूरी है। इसीलिए सरकार ने प्याज आयात के लिए टेंडर जारी किया था ताकि प्याज भंडार बढ़ाया जा सके और देश में बिना प्याज संकट के दूसरे देशों को आपूर्ति की जा सके।

पीएम मोदी और पीएम शेख हसीना ने बांग्लादेश से भारत के पूवरेत्तर राज्यों में गैस आपूर्ति शुरू करने की परियोजना का शुभारंभ किया। बांग्लादेश के पास गैस का भरपूर भंडार है, जिस पर भारत में आपूर्ति के लिए बातचीत दो दशक से चल रही है। यूपीए सरकार के दौरान भी भारत तक गैस पाइप लाइन बिछाने की बात हुईं थी लेकिन बांग्लादेश में राजनीतिक विरोध की वजह से इस परियोजना को टाल दिया। दोनों देशों ने तय किया है कि अभी ट्रकों के माध्यम से एलपीजी को भारत के पूवरेत्तर राज्यों में लाया जाएगा। बाद में पाइप लाइन बिछाने की प्राव््िराया शुरू की जाएगी।

जबकि भारत ने पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति के लिए पाइप लाइन बिछानी शुरू कर दी है। चट्टोग्राम और मोंगला बंदरगाह के इस्तेमाल को लेकर हुए समझौतों की वजह से देश के पूवरेत्तर राज्यों के उत्पादों को दूसरे देशों में भेजने की सुविधा मिलेगी।

बांग्लादेश भी भारत के साथ ही सार्व की अपेक्षा बिम्सटेक यानि वे ऑफ बंगाल इनीसिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन को मजबूत करने के लिए सहमत है। बिम्सटेक में बांग्लादेश, भारत, म्यांमार, श्रीलंका, थाइलैंड, नेपाल और भूटान शामिल हैं यानि बिम्सटेक में पाकिस्तान शामिल नहीं है जबकि सार्व में पाकिस्तान शामिल है। तभी तो दोनों देशों ने सार्व के बजाय बिम्सटेक पर चर्चा की। सार्व में पाकिस्तान शामिल है जबकि बिम्सटेक में पाकिस्तान सदस्य नहीं है। इसीलिए दोनों देश एक साथ मिलकर पाकिस्तान से पीछा छुड़ाना चाहते हैं। वुल मिलाकर भारत और बांग्लादेश साथ-साथ आर्थिक और कूटनीतक रिश्ते निभाएंगे।

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