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कांग्रेस पार्टी की दुर्दशा अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है

👤 manish kumar | Updated on:9 Oct 2019 6:50 AM GMT

कांग्रेस पार्टी की दुर्दशा अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है

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-अनिल नरेन्द्र

पार्टी अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद सोनिया गांधी द्वारा कांग्रेस का कार्यभार संभालने के बाद कार्यकर्ताओं में यह उम्मीद जगी थी कि पार्टी में गुटबाजी थम जाएगी और वह पूरी तरह एकजुट होकर बड़े मनोबल के साथ सियासत में अपनी प्रभावी भूमिका निभाएगी। पर न तो गुटबाजी कम हुई और न ही पार्टी को मजबूती ही मिल सकी। पार्टी के अंदर बल्कि दो प्रभावी गुटों की अफवाह उड़ रही है। एक गुट सोनिया व उनके समर्थकों का है तो दूसरा राहुल के करीबियों का। कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर सोनिया गांधी की वापसी के दो महीने से भी कम समय में राहुल गांधी की ओर से नियुक्त किए गए बहुत से नेताओं को हटा दिया गया है या वो पार्टी से नाराज हैं। कांग्रेस से नाता तोड़ चुके हैं। अशोक तंवर (हरियाणा), संजय निरूपम और मिलिंद देवड़ा (मुंबई), नवजोत सिंह सिद्धू (पंजाब),अदिति सिंह (यूपी) और प्रद्योत देववर्मन (त्रिपुरा) जैसे बहुत से नेताओं को राहुल ने आगे बढ़ाया था। इसके लिए कांग्रेस के पुराने नेताओं को नजरंदाज किया गया था। तंवर, निरूपम और देववर्मन ने राहुल के वफादारों को हाशिये पर रखने की शिकायत सार्वजनिक तौर पर की है। कांग्रेस के धड़ों में यह देखा जा रहा है कि राहुल इन नेताओं की कमजोर होती स्थिति का विरोध करने के लिए प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से कुछ नहीं कर रहे। हरियाणा और महाराष्ट्र में इसी महीने विधानसभा चुनाव हैं और ऐसे में राहुल के विदेश जाने की रिपोर्ट है। राहुल के उत्तराधिकारी की खोज पर युवा और पुराने नेताओं के बीच विवाद का असर पड़ने की आशंका स्वाभाविक ही है।

कैप्टन अमरिंदर सिंह, करण सिंह और मिलिंद देवड़ा के कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर एक युवा और प्रभावशाली नेता लाने का समर्थन किया गया है,लेकिन राहुल ने इसके लिए किसी युवा नेता की सिफारिश नहीं की है। मध्यप्रदेश में कमलनाथ बनाम दिग्विजय बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया की लड़ाई खुलकर सामने आ गई है। इसी तरह राजस्थान में भी सचिन पायलट की स्थिति कमजोर होती दिख रही है। तंवर सहित संजय निरूपम भी साफ तौर पर कह रहे हैं कि इस समय कुछ नेता पार्टी को मटियामेट करना चाहते हैं। इसके लिए वे सबसे पहले तो राहुल गांधी द्वारा तैयार किए गए नेताओं को पार्टी निर्णय से दूर रखने का षड्यंत्र रच रहे हैं। इधर तंवर अब हुड्डा की तोड़ निकालने का दावा करते हुए उनका राजनीतिक खेल बिगाड़ने की जद्दोजहद में हैं,लेकिन वे भूल रहे हैं हुड्डा राजनीति के अनुभवी और मंजे हुए खिलाड़ी हैं। प्रकारांतर से यह कहा जा रहा है कि पुरानी पीढ़ी के नेताओं के निशाने पर राहुल गांधी हैं, जिन्हें उनकी कार्यशैली पसंद नहीं थी। अगर इसमें सच्चाई है तो यह पार्टी हित में नहीं है। कोई नहीं जानता कि इस प्रवृत्ति का अंत कहां होगा, लेकिन इस पार्टी को मौजूदा प्रबंधन क्षमता के बारे में नकारात्मक संदेश निसंदेह अवश्य जा रहा है। यही नहीं, उम्र की पुष्टि से पुरानी पीढ़ी के नेता ढलान पर हैं, इसलिए राजनीति से हटने पर संगठन में शून्यता की स्थिति पैदा हो जाएगी। कल्पना करें कि अगर नई पीढ़ी बागडोर संभालने के लिए पूरी तरह से तैयार न रहे तो उससे पार्टी का नुकसान होगा। इतनी पुरानी पार्टी की दुर्दशा ठीक नहीं। आज मजबूत विपक्ष की सख्त जरूरत है पर कांग्रेस इस स्थिति में ही नहीं है।


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