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...और अब भारतीय रेल का निजीकरण

👤 Veer Arjun | Updated on:16 Oct 2019 6:14 AM GMT

...और अब भारतीय रेल का निजीकरण

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-अनिल नरेन्द्र

यह अत्यंत दुखद है कि मोदी सरकार ने अब भारतीय रेलवे को भी बेचने की ओर पहला कदम उठा लिया है। सरकार ने रेलवे के निजीकरण की दिशा में एक कदम और बढ़ा दिया है। इसके लिए सरकार ने 150 ट्रेनों और 50 रेलवे स्टेशनों को निजी ऑपरेटरों को सौंपने के लिए अधिकार प्राप्त समूह का गठन किया है। यह समूह इसके लिए एक ब्लूप्रिंट तैयार करेगा। अधिकार प्राप्त समूह में नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अमिताभ कांत के चेयरमैन जबकि रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष विनोद कुमार यादव, सचिव आर्थिक मामले (वित्त मंत्रालय), सचिव शहरी विकास मंत्रालय और रेलवे के वित्त आयुक्त को बतौर सदस्य बनाया गया है। तमाम आपत्तियों के बावजूद सरकार ने आखिरकार रेलवे के निजीकरण की प्रक्रिया तेज कर दी है।

दरअसल यह इकलौता क्षेत्र है, जहां निजीकरण शायद लोकप्रिय कदम माना जाए। सरकारें बार-बार इसका खंडन करती रही हैं। मौजूदा एनडीए सरकार और प्रधानमंत्री खुद भी रेलवे के निजीकरण की बात का खंडन कर चुके हैं। हाल ही में संसद के बजट सत्र में भी 12 जुलाई को रेलमंत्री पीयूष गोयल ने विपक्ष के इस आरोप का जोरदार खंडन किया था कि सरकार रेलवे का निजीकरण करने जा रही है। रेलवे के निजीकरण, छंटनी व तमाम तरह के उपक्रमों को बंद किए जाने का रेल कर्मचारियों ने विरोध किया है।

रेलमंत्री पीयूष गोयल के साथ नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवे मेंस (एनएफआईआर) के साथ हुई बैठक में रेलवे मेंस के पदाधिकारियों ने पुरजोर तरीके से यह मसला उठाया। फेडरेशन के महामंत्री राघवैया ने रेलमंत्री को एक ज्ञापन भी दिया जिसमें रेल मंत्रालय के प्रस्तावों, कर्मचारी उन्नयन, कुछ श्रेणियों के मामले में सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के क्रियान्वयन की मांग की। फेडरेशन के मीडिया सचिव एनएस मलिक ने बताया कि महामंत्री ने रेल मंत्रालय के मनमाने फैसले पर अपनी चिन्ता जाहिर की।

उन्होंने कहा कि रेलवे के कर्मचारी विरोधी नीतियों का यह आलम है कि गाड़ियों को निजी ऑपरेटरों को सौंपा जा रहा है। उत्पादन इकाइयों का निगमीकरण किया जा रहा है व रेलवे गतिविधियों की आउटसोर्सिंग व निजीकरण किया जा रहा है। कार्यशालाओं व प्रिंटिंग प्रेसों को बंद करने के फैसले इसमें शामिल हैं। डॉ. राघवैया ने कहा कि रेलवे और रेल कर्मचारियों के हितों में अंतिम विचार करने के मकसद से ऐसे प्रस्तावों पर पहले कर्मचारियों से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए। राघवैया ने रेलमंत्री से यह भी कहा कि स्वस्थ औद्योगिक संबंधों के संरक्षण के लिए ऐसे सभी प्रस्तावों पर पूर्व परामर्श होना आवश्यक है।

रेलवे न सिर्फ देश में सबसे ज्यादा नौकरियां मुहैया कराता रहा है, बल्कि वह आम आदमी के परिवहन का साधन भी है। इसलिए इन्हें बाकी उद्योग-धंधों से अलग नजरिये से देखा जाता रहा है। लेकिन 2014 में आई एनडीए सरकार ने जब रेलवे बजट पेश करने का रिवाज खत्म किया और उसे आम बजट का महज छोटा-सा हिस्सा बना दिया तो आशंकाएं उभरने लगीं कि सरकार रेलवे के निजीकरण करने के बारे में सोच रही है। अपने दूसरे कार्यकाल में सरकार ने आखिर अपने प्रचंड बहुमत के सहारे यह कदम उठाने का फैसला किया।

सरकार का दावा है कि रेलवे की दशा सुधारने के लिए भारी निवेश की दरकार है, जो निजी-सरकारी साझेदारी (पीपीपी) से ही आ सकती है। हालांकि अभी करीब 150 ट्रेनों और 50 रेलवे स्टेशनों को निजी हाथों में सौंपने की ही प्रक्रिया है। दावा यह भी है कि इससे रेल सुधरेगी और प्रतिस्पर्धा से किराये कम होंगे। अब देखना है कि यह कितना सच होता है?

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