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क्या घाटी में ब्लॉक काउंसिल चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र माने जाएंगे ?

👤 Veer Arjun | Updated on:19 Oct 2019 7:42 AM GMT

क्या घाटी में ब्लॉक काउंसिल चुनाव निष्पक्ष और स्वतंत्र माने जाएंगे ?

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-अनिल नरेन्द्र

अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लगभग दो महीने होने को हैं और जम्मू-कश्मीर में स्थिति सामान्य नहीं हो रही। एक तरफ जहां कश्मीर घाटी में राजनीतिक पार्टियों से जुड़े बडे, मझौले, छोटे नेता नजरबंद हैं वहीं जम्मू-कश्मीर में ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल (बीडीसी) के चुनाव की तैयारी हो रही है। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद वहां यह चुनाव होंगे। ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के चुनाव 24 अक्तूबर को होने हैं। ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल पंचायती राज व्यवस्था प्रणाली का दूसरा स्तर है, इसमें पंच और सरपंच वोट करते हैं।

जम्मूकश्मीर में 316 ब्लॉक हैं जिनका चुनाव होना है। एक तरफ जहां घाटी में राजनेता नजरबंद हैं और इंटरनेट और मोबाइल सेवा पूरी तरह से बहाल नहीं हुईं है, विपक्षी नेता इस चुनाव को लोकतंत्र का मजाक बता रहे हैं। आलोचकों के मुताबिक वेंद्र सरकार के कदमों के कारण घाटी में राजनीतिक शून्यता आएगी जिससे लोगों की व्यवस्था में आस्था कम होगी। जम्मू के कांग्रोस नेता रविन्दर शर्मा शिकायत करते हैं, हम वैसे उम्मीदवार खड़े करें? हम उम्मीदवारों को वैसे चुनें जब हम उनसे सम्पर्व तक नहीं कर सकते? घाटी में हमारे सारे नेता नजरबंद हैं।

अगस्त में रविन्दर शर्मा को प्रोसवार्ता करने से रोका गया था और हिरासत में ले लिया गया था। कांग्रोस ने इस चुनाव का बहिष्कार किया है। पाटा का कहना है कि वो अपने नेताओं से सम्पर्व नहीं कर पा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर नेशनल पैंथर्स पाटा के हर्ष देव सिह कहते हैं कि हम अपने उम्मीदवारों को अथारिटी लेटर्स नहीं दे पा रहे हैं ताकि वे चुनाव हमारे चुनाव चिन्हों पर लड़ पाएं, ये किस तरह के चुनाव हैं। हर्ष देव सिह को हाल ही में जम्मू में 58 दिन की नजरबंदी के बाद रिहा किया गया था। लोकतंत्र का मतलब है कि सियासी दलों और नेताओं को समान अवसर मिलें। ये तो लोकतंत्र का मजाक है। नेशनल कांप्रोंस के देवेंद्र राणा का कहना है कि जब सब वुछ लॉकडाउन में है तो ऐसे वक्त राजनीति के बारे में बात करना उचित नहीं होगा।

ऐसी स्थिति में राजनीतिक गतिविधि वैसे होगी? राजनीतिक गतिविधियों के लिए एक तरह का माहौल चाहिए.. जब तक राजनीतिक कार्यंकर्ता लोगों से मिलेंगे नहीं, लोगों की भावनाओं, आकांक्षाओं को समझकर नेताओं तक जानकारी नहीं पहुंचाएंगे, तब तक सिस्टम वैसे चलेगा? वहीं जम्मू-कश्मीर भाजपा के रविन्दर रैना नहीं मानते कि नेताओं की गिरफ्तारी से घाटी की राजनीतिक गतिविधियों पर असर पड़ा है। वे कहते हैं कि घाटी में मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों के नेताओं पर कोईं केस दर्ज नहीं किए गए हैं।

सिर्फ फारुक अब्दुल्ला के खिलाफ केस (पब्लिक सेफ्टी एक्ट) लगाया गया है और वो भी क्योंकि इंटेलीजेंस एजेंसियों को यह डर था कि वो बयानबाजी करके हालात खराब कर सकते हैं। इसके अलावा बाकी सब नेता हाउस अरेस्ट में हैं, प्रिवेंटिंग कस्टडी में हैं। इनके खिलाफ सरकार ने एफआईंआर डालकर इन्हें अंदर नहीं किया जैसा किया जाता है। मूल प्रश्न यह है कि जब जम्मू-कश्मीर में नॉर्मल सियासी गतिविधियां नहीं हों तो स्वतंत्र, निष्पक्ष चुनाव वैसे माने जा सकते हैं। वैसे भी अगर एक सियासी पाटा अकेले अपने उम्मीदवार खड़ा करेगी और बाकी बहिष्कार तो यह लोकतांत्रिक चुनाव वैसे माना जाएगा।

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