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भाजपा के हाथ से कहीं झारखंड भी न खिसक जाए ?

👤 Veer Arjun | Updated on:19 Nov 2019 3:58 AM GMT

भाजपा के हाथ से कहीं झारखंड भी न खिसक जाए ?

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-अनिल नरेन्द्र

झारखंड में एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) को बचाए रखने के लिए इस्तेमाल किए गए तमाम फार्मूले ध्वस्त होते दिख रहे हैं। गठबंधन टूट चुका है, भाजपा-आजसू की राहें अलग-अलग हो चुकी हैं, लेकिन दोनों ही दल इसके टूटने का ठीकरा अपने सिर लेने को राजी नहीं हैं।

शुक्रवार को आजसू ने धारशिला से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बलमुमू समेत छह प्रत्याशियों की एक सूची जारी कर भाजपा को एक और झटका दिया है। इधर आजसू से चोट खाई भाजपा ने प्लान बी पर अमल शुरू कर दिया है। खास बात यह है कि इन सीटों पर भाजपा अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी है। अब दोनों दलों में गठबंधन तो व्यावहारिक रूप से खत्म हो गया, मगर दोनों इसकी घोषणा से बच रहे हैं। आजसू की ताजा सूची के बाद अब कुल 19 सीटों पर पार्टी ने प्रत्याशी उतार दिए हैं। अब भाजपा-आजसू 15 सीटों पर आमने-सामने हो गए हैं। इनमें 13 सीटों पर सीधा संघर्ष है जबकि दो सीटों पर दोनों निर्दलीय को अपना समर्थन दिया है।

आजसू ने हालांकि अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह कुल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। माना जा रहा है कि अभी पार्टी और प्रत्याशियों की सूची जारी कर सकती है। उधर झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को आगामी राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने की इजाजत देने से इंकार कर दिया है। 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ने के खर्च का ब्यौरा दाखिल नहीं करने पर चुनाव आयोग ने 2017 में मधु कोड़ा को तीन साल के लिए चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने अयोग्य ठहराए जाने के फैसले का समर्थन किया है। हरियाणा और महाराष्ट्र में सीटें कम होने के बाद भाजपा को झारखंड के भी हाथ से खिसकने का डर सताने लगा है।

पार्टी के आंतरिक सर्वे में सीटें कम होने की बात उभर कर सामने आई है। मुखयमंत्री रघुवर दास की व्यक्तिगत छवि, दो महादागी नेताओं को टिकट देने और 19 साल पुराने मित्र ऑल इंडिया स्टूडेंट यूनियन (आजसू) के साथ गठबंधन टूटने से पार्टी को नुकसान होने की संभावना है। इसके बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने खुद कमान संभाली और वह इस प्रयास में हैं कि आजसू से टूटी बात फिर बन जाए। चुनाव के समय भाजपा आंतरिक सर्वे कराती है, उसी हिसाब से चुनाव की रणनीति बनाती है और वर्तमान विधायकों, मंत्रियों के टिकट काटती है। इस बार छह महीने और अब चुनाव के समय कराए गए सर्वे में अंतर आ गया है। भाजपा सूत्रों के अनुसार पार्टी को 2014 के चुनाव के मुकाबले कम सीटें मिल रही हैं। पिछली बार 81 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा ने 44 और आजसू ने तीन सीटें जीती थीं।

चुनाव के दौरान एक भ्रष्ट नेता और हत्या के आरोपी को टिकट देना भाजपा को भारी पड़ रहा है। आजसू ने 19 सीटें मांगी थीं, लेकिन भाजपा 10 देने को तैयार थी, इससे नाराज होकर आजसू ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए और अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। अमित शाह ने मंगलवार को आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो को दिल्ली बुलाया और देर रात तक चर्चा की। सूत्रों ने हालांकि दावा किया कि महतो 10 सीटों पर चुनाव लड़ने को तैयार हो गए हैं। वहीं लोकजन शक्ति पार्टी ने पिछली बार भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार वह भाजपा से अलग हो गई है। हरियाणा, महाराष्ट्र के बाद अगर झारखंड भी भाजपा के हाथ से खिसक जाता है तो यह पार्टी के लिए भारी धक्का होगा।

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