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करदाताओं की चिन्ता

👤 Veer Arjun | Updated on:9 Dec 2019 4:54 AM GMT

करदाताओं की चिन्ता

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आर्थिक विकास दर में तेजी लाने के उद्देश्य से वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने टैक्स दर को घटाने के साथ ही कर ढांचे को आम करदाताओं के लिए सुगम बनाने का आश्वासन दिया। कर प्राणाली को वित्त मंत्री जितना ही सहज और सरल बनाएंगी करदाता उतने ही अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने में सहयोगी बनेंगे।

मतलब यह कि कर प्राणाली उत्पीड़न मुक्त बनेंगी। दरअसल पर्सनल टैक्स व्यवस्था में बदलाव के लिए सरकार की ओर से गठित समिति की तरफ से डायरेक्ट टैक्स कोड (डीटीसी) नाम से एक रिपोर्ट दी गईं है। इसी रिपोर्ट में आयकर की दर को भी नीचे लाने और मौजूदा कर प्राणाली को पूरी तरह बदलने की सिफारिश की गईं है। डीटीसी के मुताबिक तमाम तरह की कर सुविधाओं को समाप्त करके उनकी जगह कर की दर को कम करने की सिफारिश की गईं है। डीटीसी की सिफारिश मिलने के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण राज्यसभा में भी इस बात का संकेत दे चुकी हैं कि सरकार इस सिफारिश पर विचार कर रही है।

बहरहाल सरकार अर्थव्यवस्था में तेजी लाने के लिए उदृामियों एवं करदाताओं के लिए एक के बाद एक सुविधाओं की घोषणा सिर्प इसलिए कर रही है कि मांग और उत्पादन दोनों बढ़ें। गत माह सितम्बर में कारपोरेट टैक्स की दर 30 प्रातिशत से घटाकर 22 प्रातिशत सिर्प इसलिए की थी ताकि मैनुपैक्चरिग उदृाोग को बढ़ावा मिल सके। इस पहल की सार्थकता तभी है जब करों की दरें कम की जाएं क्योंकि मैनुपैक्चरिग में वृद्धि से तब तक अर्थव्यवस्था पर बड़ा प्राभाव नहीं पड़ेगा जब तक दरों में कमी नहीं आएगी। जब करों में कमी आएगी तभी घरेलू मांग में बढ़ोत्तरी संभव है। मांग बढ़ाने के लिए करों की दर नीचे करना जरूरी है।

सवाल यह है कि आयकर की दर में कमी लाने से राजकोषीय घाटे में बढ़ोत्तरी होना तय है। कारपोरेट टैक्स में कटौती के बाद 1.45 लाख करोड़ सरकार की आय कम हो रही है। इसके अलावा जीएसटी संकलन निराशाजनक नहीं है। नवम्बर 2019 तक डायरेक्ट टैक्स संग्राहण पांच प्रातिशत बढ़ा है लेकिन आयकर की दरों में कमी आने से सरकार विपक्ष के निशाने पर आएगी। सरकार को विपक्ष की आलोचनाओं से राजकोषीय घाटे की परवाह किए बिना करदाताओं को उत्पीड़न से मुक्ति देने को ढांचागत विकास में निवेश करने एवं कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करने की नीति अपनानी चाहिए। टैक्स बढ़ाने और ढांचागत विकास में निवेश न करने से राजकोषीय घाटा तो नियंत्रण में जरूर रहेगा किन्तु इससे भला किसका होगा?

दरअसल राजकोषीय घाटे पर हायतौबा बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हमदर्द अर्थशास्त्री ही ज्यादा चिल्लपों मचाते हैं। ऐसे अर्थशास्त्रियों का वित्तपोषण बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी विभिन्न स्कीमों के माध्यम से करती हैं। इसीलिए ऐसे अर्थशास्त्री विकासशील देशों से अपने-अपने राजकोषीय घाटे को खूंटे में बांधकर रखने की नसीहत देते हैं। राजकोषीय घाटे को नियंत्रण में रखने की नसीहत का कारण ही यही है कि जब सरकारें अपने ढांचागत विकास के लिए निवेश नहीं करेंगी और आय के अनुरूप ही ढांचागत विकास दर खर्च करेंगी तो अर्थव्यवस्था स्थिर रहेगी। महंगाईं भी नियंत्रण में रहेगी। बहुराष्ट्रीय कंपनियों को निवेश करने का खुला मैदान मिलता ही तब है जब देश का बुनियादी ढांचा लचर होता है। मतलब यह कि जब सरकारें, हाईंवे, बिजली व संचार व्यवस्था इत्यादि पर राजकोषीय घाटे के बढ़ने की आशंका से कम खर्च करेंगी तो बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक अच्छा अवसर मिलेगा।

सच तो यह है कि राजकोषीय घाटे के बढ़ने की दर से विकासशील देशों की सरकारें विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष और अमेरिका की तिकड़ी की शिकार बनी हैं। राजकोषीय घाटे की अवधारणा इन्हीं तीनों ने मिलकर विकसित की है। राजकोषीय घाटे से बचने की अवधारणा इन तीनों ने सबसे पहले दक्षिण अमेरिकी देशों के भ्रष्ट अधिकारियों एवं राजनेताओं से बचने के लिए एक उपाय के तौर पर शुरू की थी। दक्षिण अमेरिकी देशों के भ्रष्ट अधिकारी और राजनेता अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों एवं अमेरिका से प्राप्त धनराशि अपने-अपने निजी खातों में स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा कराते थे। अब ऐसी स्थिति कम से कम भारत में नहीं है। भारत में तमाम लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं जो भ्रष्टाचार को रोकने में पूरी तरह सक्षम हैं। इसलिए सरकार को राजकोषीय घाटे की परवाह किए बिना कर प्राणाली को सरल बनाने, आयकर दर में कमी लाने, बुनियादी ढांचे पर निवेश करने तथा सामाजिक क्षेत्र में निवेश करने में संकोच नहीं करना चाहिए।

भारत की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है कि सभी वर्ग खुशहाल हों और यदि सभी वर्ग खुशहाल होंगे तो अर्थव्यवस्था का गतिशील होना स्वाभाविक है। इसलिए सरकार को राजकोषीय घाटे की चिन्ता छोड़कर देश के सभी वर्गो की जिन्दगी से जटिलता खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए। यदि राजकोषीय घाटा ज्यादा बढ़ता है तो सरकार को अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से त्रण लेकर बुनियादी क्षेत्र में निवेश करने में संकोच नहीं करना चाहिए। सरकार के इन्हीं उपायों से अर्थव्यवस्था की गति और आकार दोनों बढ़ेगा।

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