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कमलनाथ की सरकार पर खतरे के बादल

👤 manish kumar | Updated on:7 March 2020 3:25 AM GMT

कमलनाथ की सरकार पर खतरे के बादल

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-अनिल नरेन्द्र

मध्य प्रदेश की राजनीति में मंगलवार सुबह से आधी रात तक चले सियासी ड्रामे के बाद कमलनाथ की कांग्रेस सरकार की कुर्सी पर खतरा मंडराने लगा है। हालांकि मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंगलवार को दावा किया कि उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है और न ही किसी को इस बारे में कोई चिन्ता करने की जरूरत है। उनकी टिप्पणी वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के इन आरोपों के एक दिन बाद आई कि भाजपा नेता प्रदेश सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस विधायकों को भारी धनराशि देने की पेशकश कर रहे हैं। कमलनाथ ने कहा कि कांग्रेस विधायकों को भाजपा नेताओं के धनराशि देने के प्रस्ताव की जानकारी उन्हें उपलब्ध कराई गई है। मैंने विधायकों से कहा है कि अगर मुफ्त में पैसा मिल रहा है तो वह इसे ले लें। 2018 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार बन जाने के बाद से ही राज्य में विधायकों के पाला बदलने की खबरें बराबर आती रही हैं।

इसकी वजह यह है कि कांग्रेस और भाजपा के विधायकों की संख्या के बीच बहुत कम फासला है। कमलनाथ सरकार बसपा, समाजवादी पार्टी और निर्दलीय विधायकों के दम पर चल रही है। लेकिन इन विधायकों को भाजपा कमलनाथ सरकार की कमजोर कड़ी के रूप में देखती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई में लगातार चौथी बार सरकार बनाने की उम्मीद कर रही थी। लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान कुछ चीजें ऐसी हुईं कि भाजपा 230 सदस्यीय विधानसभा में 107 सीटें ही जीत पाई। कांग्रेस ने 114 सीटें जीतीं। सरकार बनाने के लिए जरूरी आंकड़ा उस समय 116 था। कांग्रेस ने दो बसपा, समाजवादी पार्टी के एक और चार निर्दलीयों की मदद से सरकार बना ली। इन्हीं पर पहले दिन से ही भाजपा की नजर है। कांग्रेस को इन्हें संभाल कर रखने में बार-बार कसरत करनी पड़ती है।

वह तो मुख्यमंत्री कमलनाथ का लंबा अनुभव और सियासी चतुराई है, जो यह विधायक सरकार के साथ रह रहे हैं। पहले कई बार की तरह अब फिर ऑपरेशन लोटस की खबरें हैं। हालांकि भाजपा नेता कह रहे हैं कि यह कांग्रेस और उसके सहयोगियों की अपनी कमजोरी है, गलतियां हैं, भाजपा का कोई रोल नहीं है। असल में राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह फिर से ऊपरी सदन में आना चाह रहे हैं। उनके मंसूबों को झटका लगाने की कोशिश भाजपा में ही नहीं, कांग्रेस में भी लग रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा अंदरूनी तौर पर कुछ और कांग्रेस नेता भी दिग्गी राजा और कमलनाथ के साथ मन से नहीं बताए जा रहे हैं। कहा जा रहा था कि भोपाल से आठ विधायक भाजपा की तरफ जाने के लिए बाहर गए हैं। गुरुग्राम में रात को हुए ड्रामे के बाद चार विधायकों को तो कांग्रेस फिर से अपनी तरफ ले गई है। लेकिन चार अब भी दूर हैं। कांग्रेस उन्हें भी साथ फिर से लाने की उम्मीद कर रही है। देखना यह है कि कमलनाथ भाजपा के ताजा हमले को पर्याप्त जवाब दे पाएंगे?


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