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सात साल बाद जाकर निर्भया शुक्रवार को चैन की नींद सोई होगी

👤 manish kumar | Updated on:22 March 2020 5:06 AM GMT
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-अनिल नरेन्द्र

अंतत अभागिन निर्भया शुक्रवार को चैन की नींद सोई होगी। सात सालों के बाद आखिर वह दिन आ ही गया जब निर्भया के साथ घिनौना खेल खेलने वाले चारों दरिन्दों को शुक्रवार सुबह 5ः30 बजे तिहाड़ जेल में फांसी के फंदे से लटका दिया गया। सात सालों के बाद निर्भया और उनके परिवार वालों को न्याय मिला। दोषियों के लिए बीती रात भयानक रही। यह पूरी रात सोए नहीं। बार-बार जेल कर्मियों से पूछते रहे कि क्या कोर्ट से कोई ऑर्डर आया? आखिरी लम्हों में वह बचने की हर कोशिश करते दिखे। अपने वकील से एक बार मिलने की जिद करते रहे। मौत की दहलीज पर खड़े होने के बावजूद उन्हें लग रहा था कि वकील उन्हें फांसी से बचा लेंगे। निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के दोषियों को शुक्रवार सुबह ठीक 5ः30 बजे फांसी दे दी गई। इस मौके पर जेल प्रशासन से जुड़े 50 से अधिक अधिकारी मौजूद रहे। इस दौरान वहां मौजूद जेल अधिकारियों ने ऐसी पुख्ता व्यवस्था की थी, जिसके चलते दोषियों को चीखने-चिल्लाने का कोई मौका नहीं मिला। शुक्रवार तड़के 3ः15 बजे निर्भया के दोषियों को उनके सेल में जगा दिया गया। दैनिक क्रियाकलाप के बाद उन्हें नहलाया गया। इसके बाद उनकी इच्छा के अनुसार उन्हें चाय के साथ हल्का नाश्ता दिया गया। इसके बाद उन्हें सेल से बाहर फांसी घर की ओर ले जाने की प्रक्रिया शुरू की गई। नहाने के बाद उन्हें काले कपड़े पहनाकर तिहाड़ जेल संख्या-तीन के फांसी घर में ले जाया गया। इससे पहले चारों को सुबह की चाय भी मिली, लेकिन सभी दोषियों ने चाय नहीं पी।

फांसी के तख्त पर पहुंचने से पहले कैदियों के हाथ पीछे से बांध दिए जाते हैं। फिर जल्लाद कैदियों के मुंह पर कपड़ा डालता है और दोषियों के गले में फांसी का फंदा डाल देता है। इसके बाद जल्लाद झटके से लीवर खींच देता है। भारत में लांग ड्रॉप के जरिये फांसी दी जाती है। इसमें दोषियों के वजन के हिसाब से रस्सी की लंबाई तय की जाती है, ताकि झटका लगते ही कैदी की गर्दन के साथ उसकी रीढ़ की हड्डी टूट जाए। यहां पर बता दें कि पूर्व में दिल्ली कि तिहाड़ जेल में वर्ष 2013 में अफजल गुरु को फांसी दी गई थी। भारत में कैदी को सुबह ही फांसी देने का प्रावधान है, लेकिन फांसी का समय महीने के हिसाब से अलग-अलग होता है। ज्यादातर सुबह छह से सात बजे के बीच फांसी दी जाती है। निर्भया मामले में कोर्ट ने डेथ वारंट जारी करते हुए सुबह 5ः30 बजे फांसी का वक्त मुकर्रर किया था। इसके पीछे तर्प दिया जाता है कि जेल में बंद अन्य कैदी सो रहे होते हैं वहीं फांसी पर चढ़ने वालों को पूरे दिन का इंतजार नहीं करना पड़ता, इसलिए मुंह अंधेरे फांसी दी जाती है। फांसी के लिए मुकर्रर समय पर संबंधित कैदी या कैदियों को फांसी के तख्त के पास ले जाया जाता है। नियमों के मुताबिक इस दौरान जल्लाद के अतिरिक्त तीन अफसर जेल सुपुरिंटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर और मजिस्ट्रेट अनिवार्य रूप से साथ होते हैं।

फांसी से ठीक पहले मजिस्ट्रेट दोषियों को पहचानने की बात बताने के बाद डेथ वारंट सुनाता है, जिस पर पहले से ही दोषियों के हस्ताक्षर होते हैं। 16 दिसम्बर 2012 में निर्भया के साथ हुई दरिन्दगी के बाद बेटी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ने वाली उसकी मां आशा देवी ने चारों दोषियों को फांसी देने के बाद संतोष जताया। उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि आखिरकार निर्भया को इंसाफ मिल ही गया। उन्होंने कहा कि बेटी को तो वह बचा नहीं पाईं, लेकिन बेटी के हत्यारों को फांसी तक पहुंचाने का जो प्रयास उन्होंने लोगों के साथ मिलकर शुरू किया था वह आखिरकार न्यायपालिका के सफल प्रयास के बाद सम्पन्न हो गया। आशा देवी ने कहा कि निर्भया को इंसाफ तो मिल गया लेकिन अब भी उनका अभियान आगे जारी रहेगा और वह प्रयास करेंगी कि जिस तरह से इस मामले में दोषियों और उनके वकील के द्वारा मामले को लंबा लटकाने का प्रयास किया गया वह आगे किसी के साथ न हो। आशा देवी ने बताया कि जिस द्वारका अक्षरधाम अपार्टमेंट में उनका परिवार रहता है, वहां के लोगों ने भी पिछले 16 दिसम्बर 2019 से एक कैंडल जलाने का अभियान शुरू किया था। जो आखिरकार कल रात आखिरी रात साबित हुआ। आज तड़के 5ः30 बजे फांसी होने के बाद यह 90 रात से चल रहा कैंडल अभियान पूरा हो गया। जहां हम आशा देवी की न हिम्मत हारने की भावना की तारीफ करते हैं वहीं उनकी वकील सीमा कुशवाहा की तारीफ भी करना चाहेंगे। निर्भया रेप केस में दोषियों के वकील एपी सिंह लगातार गलत वजहों से मामले को अंत तक लटकाते रहे वहीं इसी केस में एक वकील ऐसी भी रहीं जो हीरो बनकर सामने आई हैं। यह हैं सीमा कुशवाहा, जिन्होंने निर्भया के लिए निशुल्क सात साल से ज्यादा समय हिम्मत न हारते हुए केस को सही अंजाम तक पहुंचाया। वह निर्भया के साथ दरिन्दगी होने के बाद हुए प्रदर्शन में शामिल थीं। फिर हर घड़ी निर्भया के परिवार के साथ रहीं। उनका यह पहला केस भी बताया जा रहा है।

16 दिसम्बर 2012 को निर्भया केस के समय दिल्ली पुलिस के कमिश्नर रहे नीरज कुमार ने दोषियों को फांसी देने पर खुशी जाहिर करते हुए इसका स्वागत किया। कहाöदेर से मिला पर इंसाफ मिला। लेकिन इस केस को हमें भूलना नहीं है। हमारे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम की कमियों को दूर किया जाना चाहिए। डार्प स्पॉट, सीसीटीवी, प्राइवेट और पब्लिक ट्रांसपोर्ट कर्मियों की वेरीफिकेशन, महिलाओं के प्रति मानसिकता बदलने का अभियान आदि पर जो सिफारिशें उस समय हमने की थीं, उस दिशा में देशभर में अभी बहुत काम करने की जरूरत है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि आज वह दिन है जब हम सब लोगों को मिलकर यह संकल्प करने की जरूरत है कि दूसरी निर्भया नहीं होनी चाहिए। हमारे सिस्टम के अंदर बहुत कमियां हैं जो गलत काम करने वालों को प्रोत्साहन देती हैं। पुलिस, कोर्ट, राज्य सरकार, केंद्र सरकारöसबको संकल्प लेना है कि हम सब मिलकर सिस्टम की खामियों को दूर करेंगे और भविष्य में किसी बेटी के साथ ऐसा नहीं होने देंगे। निर्भया केस में जिस तरह सात साल मामले को लटकाया गया उससे हमारे सिस्टम की कमियां उजागर हुईं। रेप और ऐसे घिनौने मामलों में कानून बदलना होगा। अपील दर अपील की व्यवस्था को बदलना होगा। यह काम संसद को करना है न कि अदालतों को। अदालतें तो वही करेंगी जो कानून के अंतर्गत आती हैं। जब तक कानून नहीं बदला जाएगा एपी सिंह सरीखे वकील इसका लाभ उठाते रहेंगे, मामले को लटकाते रहेंगे।


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