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डॉ. गुलेरिया पास बाकी ज्योतिषी पेल

👤 Veer Arjun | Updated on:24 May 2020 5:42 AM GMT

डॉ. गुलेरिया पास बाकी ज्योतिषी पेल

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-अनिल नरेन्द्र

भारत के कईं नामी-गिरामी ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि देश में कोरोना महामारी का प्राकोप अप्रौल अंत से मईं के शुरू में कम होता जाएगा। एक ने तो यहां तक कहा था कि 21 मईं तक यह समाप्त हो जाएगा। पर यह सब गलत साबित हुए हैं। कोरोना का प्राकोप दिन-प्रातिदिन बढ़ता जा रहा है। अब तो डब्ल्यूएचओ यह भी कह रहा है कि शायद हमें कोरोना वायरस से कभी छुटकारा न मिले। कईं विशेषज्ञ भी इसकी तस्दीक कर चुके हैं। पर एक डॉक्टर की भविष्यवाणी अभी तक सही साबित हो रही है। राजधानी में बढ़ते कोरोना के मामलों से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया की भविष्यवाणी सच साबित होने लगी है। डॉ. गुलेरिया ने दावा किया था कि मईं के तीसरे सप्ताह से लेकर जून-जुलाईं में कोरोना वायरस के मामले अपने उच्चतम स्तर पर हो सकते हैं।

कोरोना वायरस के जितने मामले मार्च और अप्रौल दोनों महीनों को मिलाकर देखे गए थे उससे लगभग दोगुने मामले केवल 18 दिनों में सामने आ चुके हैं। 22 मईं तक दिल्ली में 11000 से ऊपर संक्रमण के मामले आ चुके हैं। वहीं अगर पूरे देश की बात की जाए तो संव््रामितों की संख्या बढ़कर 1,18,447 हो चुकी है और 148 और मौतों के साथ मृतकों का आंकड़ा 3583 हो गया है। हालांकि 66330 का इलाज चल रहा है और खुशी की बात यह है कि 48,522 लोग ठीक भी हो गए हैं। अगर हम मार्च-अप्रौल में संव््रामितों की बात करें तो दिल्ली में 3515 मामले थे। राजधानी में मईं महीने में प्रातिदिन 300 कोरोना वायरस के मामले सामने आ रहे हैं।

वायरस के कुल मामले 11000 से ऊपर पहुंच चुके हैं। ऐसे में कहा जा सकता है कि एम्स के डायरेक्टर की बात सच होती नजर आ रही है। महामारी के बढ़ते रुख को देखते हुए और लॉकडाउन की वजह से देश के विभिन्न शहरों से तमाम प्रावासी मजदूर मुसीबतों का पहाड़ लेकर अपने घर को पलायन करने पर मजबूर हो गए हैं। जब वह तमाम मुसीबतों के बाद अपने घरों में पहुंचते हैं तो अपनों से मिलने से पहले वह नईं मुसीबत में पड़ रहे हैं। दूसरों को संव््रामण से बचाने के लिए उन्हें इस भीषण गमा में खेतों में क्वारंटाइन होना पड़ रहा है। सरकार के सामने इधर वुआं तो उधर खाईं की स्थिति है।

अगर लॉकडाउन नहीं खोलते तो भी मरते हैं और खोलते हैं तो भी। अब सारी उम्मीदें किसी प्राभावी वैक्सीन पर आ टिकी है। खुशी की बात भारत के लिए यह है कि हम मरने वालों की दर पर नियंत्रण फिलहाल पाने में सफल रहे हैं। इसीलिए मरने वालों की दर दुनिया के कईं विकसित देशों से हमारी बेहतर है।

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