रोजे की हालत में इफ्तार से पहले शहीद हो गए
-अनिल नरेन्द्र
मुकद्दस रमजान में रोजा रखकर अपनी नफ्स (इच्छा) पर काबू पाना.. महीनाभर रोजा रखकर सालभर बुरे कामों से बचने का संकल्प लिया जाता है। इस्लाम के नाम पर जेहाद छेड़े हुए सीमा पार के आतंकी गुटों के लिए रमजान कोईं मायने नहीं रखता। इसीलिए रमजान के पवित्र महीने में भी यह अपना खूनखराबा जारी रखते हैं। जम्मू-कश्मीर में बीएसएफ कांस्टेबल जिया-उल-हक और राणा मंडल ने भी बुधवार को रोजा रखा था। दोनों श्रीनगर के बाहरी इलाके में इफ्तार के लिए ब्रेड लाने गए थे। इस दौरान बाजार में बेकरी के नजदीक से गुजर रहे मोटरसाइकिल सवार आतंकियों ने ताबड़तोड़ फायरिग कर दी। इसमें दोनों जवान मौके पर ही शहीद हो गए। बीएसएफ ने कहा कि वह रोजे की हालत में ही दुनिया से रुखसत हो गए।
जवानों ने अपने साथियों की मौत पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि वह बहुत जल्दी हमेशा के लिए अलविदा कह गए। हमला बुधवार की शाम श्रीनगर के बाहरी इलाके सूरा में हुआ। पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े द रेजिस्टेंस प्रांट (टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है। अधिकारियों का कहना है कि आतंकियों ने बेहद नजदीक से जवानों को गोलियां मारीं और भीड़भाड़ वाले इलाके की गलियों से निकलते हुए भाग गए। उन्होंने कहा कि हक और मंडल पािम बंगाल के मुर्शिदाबाद के निवासी थे, लेकिन अम्फान चव््रावात के चलते राज्य में हवाईं अड्डे बंद होने की वजह से उनके पार्थिव शरीर उनके घर नहीं भेजे जा सके।
हक (34) और मंडल (29) दोनों के सिर में गंभीर चोटें आईं थीं। दोनों दोस्त सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की 37वीं बटालियन से थे और पड़ांक वैंप में तैनात थे। उनका काम नजदीकी गंदेरबल जिले से श्रीनगर के बीच आवाजाही पर नजर रखना था। उन्होंने बताया कि मौत से वुछ ही मिनट पहले वह रोजा खोलने (इफ्तार) के लिए रोटी लेने गए थे। लेकिन वह इफ्तार नहीं कर सके और रोजे की हालत में ही शहीद हो गए। बीएसएफ की 37वीं बटालियन के जवानों ने कहा कि वह रोजा होने की वजह से पूरे दिन पानी की एक बूंद पिए बिना ही इस दुनिया से रुखसत हो गए।
जवानों ने अपने साथियों की मौत पर शोक व्यक्त करते हुए कहा कि वह बहुत जल्दी हमेशा के लिए अलविदा कह गए। हम इनको अपनी श्रद्धांजलि पेश करते हैं और देश इनकी शहादत को सलाम करता है। जय हिन्द।