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टिड्डियों का आतंक, काबू पाना जरूरी है

👤 Veer Arjun | Updated on:30 May 2020 6:03 AM GMT

टिड्डियों का आतंक, काबू पाना जरूरी है

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-अनिल नरेन्द्र

राजधानी में इन आतंकी टिड्डियों का खतरा फिलहाल टल गया है। टिड्डी चेतावनी दल के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. केएल गुर्जर ने बताया कि हवाओं का रुख बदल गया है। उसके साथ ही टिड्डियों का रुख राजस्थान के दौसा, करौली होते हुए धौलपुर की तरफ हो गया है। अब इनकी दिल्ली पहुंचने की संभावना नहीं है।

सोशल मीडिया में ऐसी अफवाहें थीं कि बुधवार शाम चार बजे तक टिड्डियां दिल्ली पहुंच सकती हैं। हवा की दिशा में उड़ने वाला टिड्डी दल रात को हमला करता है। एक बार खाने के बाद जब सौ किलोमीटर उड़ता है और फिर भूख लगते ही वहां के क्षेत्र में पड़ने वाली फसल को चट कर जाता है। टिड्डी दल रात में ही पेड़ और फसलों पर बैठता है और फिर सूरज निकलने के बाद फिर उड़ान भरता है। एक औसत टिड्डी का आकार दो से ढाईं इंच का होता है। डेढ़ लाख टिड्डियों का वजन लगभग एक टन हो सकता है। यह सुबह सात बजे से लेकर शाम छह-सात बजे तक उड़ती है। इसके बाद सो जाती है। इसी समय इन्हें मारा जा सकता है। एक बड़ा टिड्डा झुंड प्राति वर्ग किलोमीटर 15 करोड़ तक हो सकता है।

टिड्डियों के एक झुंड में 80 लाख तक टिड्डियां हो सकती हैं। 15 किलोमीटर प्राति घंटे की रफ्तार से एक दिन में 150 किलोमीटर तक उड़ने की क्षमता रखती है। एक वर्ग किलोमीटर का झुंड एक दिन में 7,50,000 लोगों या 3000 हाथियों का खाना चट करने में सक्षम है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन टिड्डियों का हमला कितना नुकसानदेह होता है। कोविड-19 का मुकाबला करने के बीच फसलों पर टिड्डी दलों का हमला देश के कईं राज्यों के लिए नईं चुनौती के रूप में सामने आईं है। टिड्डियों का आगमन अमूमन नवम्बर में होता है, पर इस बार वे भीषण गमा में आईं है। आमतौर पर टिड्डियां फसलों को ही नुकसान पहुंचाती हैं और इस बार भी कपास, सब्जी और चारे की फसल उसके निशाने पर है। राजस्थान के जयपुर, मध्य प्रादेश के ग्वालियर, मुरैना तथा महाराष्ट्र के नागपुर, वर्धा और अमरावती शहरों में भी इनकी मौजूदगी इस बार पाईं गईं है।

संयुक्त राष्ट्र के खादृा और वृषि संगठन (एफपीओ) ने हालांकि मध्य अप्रौल में ही इसकी चेतावनी दे दी थी। ईंरान से निकले और पाकिस्तान होकर आए टिड्डी दल, हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि पिछले साल भारत आईं टिड्डियां रेगिस्तान की सदा में जिदा रहीं और गमा पड़ते ही पैलने लगी। राजस्थान के अनेक जिलों में फसल बर्बाद कर चुकने के बाद उत्तर प्रादेश और मध्य प्रादेश में सव््िराय है। वृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक गमा में ही इन पर काबू न पाया गया तो बारिश होते ही इनकी तादाद बढ़ेगी। वेंद्र सरकार द्वारा इससे प्राभावित होने वाले देशों की बैठक बुलाने के अलावा मदद का वादा किया गया है। राज्य और जिला स्तर पर इससे निपटने की व्यापक तैयारी भी की गईं है। ऐसे समय जब करोड़ों लोगों को अनाज मुहैया करवाने की मजबूरी है, तब टिड्डी दलों को फसल बर्बाद करने कतईं नहीं दिया जा सकता।

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