जान हथेली पर रखकर बचाया मासूम को
-अनिल नरेन्द्र
कश्मीर के सोपोर में बुधवार सुबह मस्जिद में छिपकर बैठे आतंकियों ने सीआरपीएफ के दस्ते पर हमला बोल दिया। आतंकवादियों की गोलीबारी के बीच पंसा तीन साल का मासूम। चन्द सेवेंड पहले उसके नाना आतंकियों की गोलियों का शिकार हो गए। निशाने पर थी सेना, वेंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और जम्मू-कश्मीर पुलिस की एक संयुक्त टीम। जवाबी कार्रवाईं के दौरान तीन साल के बच्चे को बचाने की चुनौती थी। लेकिन सेना के जवानों ने जान हथेली पर रखकर मासूम को बचा लिया। जम्मू-कश्मीर के सोपोर में बुधवार हुईं इस मुठभेड़ के दौरान खींची गईं उस बच्चे की कईं तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाईं रहीं। दिल दहला देने वाली तस्वीरें। सुरक्षा कर्मियों की गश्ती टीम पर हमला करने पहुंचे आतंकवादियों ने सामने पड़े नातीनाना पर गोलियां बरसाईं। उस व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गईं। उनके साथ मौजूद तीन साल का बच्चा अपने नाना के शव के पास बैठा रोता रहा।
अबोध बच्चे को शायद यह नहीं पता था कि उनके नाना की जान चली गईं है। मासूम बच्चा शव पर बैठे अपने नाना के उठने का इंतजार कर रहा था। लेकिन उसे कहां पता था कि उसके नाना की तो मौत हो चुकी है। इसी दौरान उसने एक जवान को देखा। उसकी मासूमियत से ऐसा प्रातीत हो रहा था कि वह कहना चाह रहा है कि मेरे नाना को उठा दो। आनन-फानन में उस जवान और उसके साथियों ने बच्चे को बचाने के लिए मोर्चा संभाला।
कईं बार जवान के इशारे किए जाने पर बच्चा धीरे-धीरे जवान की ओर बढ़ा। जवान ने उसे गोद में उठा लिया। मुठभेड़ में शामिल सोपोर से पुलिस अधिकारी अजीम खान के मुताबिक मुठभेड़ स्थल पर मस्जिद की ऊपरी मंजिल से गोलीबारी हो रही थी। बच्चे को बचाने के लिए हम लोगों ने सबसे पहले आतंकियों और बच्चे के बीच बख्तरबंद (आम्र्ड कार) लगा दीं ताकि गोलीबारी की जद में बच्चे को आने से बचाया जा सके। इसके बाद हम बच्चे को वहां से निकाल लाए। बच्चा अपने नाना के साथ दूध खरीदने निकला था। बच्चे को उसके घर पहुंचा दिया गया। जम्मूकश्मीर में सेना को बदनाम करने वालों के लिए यह भी एक उदाहरण है।