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अयोध्या भाजपा की वोटों की भी फसल है

👤 Veer Arjun | Updated on:12 Aug 2020 6:25 AM GMT

अयोध्या भाजपा की वोटों की भी फसल है

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-अनिल नरेन्द्र

अयोध्या सिर्फ आस्था व श्रद्धा का केंद्र नहीं है, बल्कि यह वोटों की फसल के लिए खाद-पानी का काम भी करती है। भाजपा को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाने में अयोध्या के राम मंदिर मुद्दे की अहम भूमिका रही है। मंदिर निर्माण कार्यं का शुभारंभ हो जाने से प्रादेश की सियासत में भाजपा को बढ़त तो मिली है, लेकिन विपक्ष पर हमले की धार अब पहले जैसी पैनी नहीं है। भाजपा के लिए वोटों का ध्रुवीकरण कराने की चुनौती होगी तो विपक्षी दलों के सामने ध्रुवीकरण को रोकने की। राम मंदिर के शिलान्यास पर सपा, बसपा व कांग्रेेस का जैसा रुख रहा है, उससे भाजपा को ज्यादा हमलावर होने का मौका शायद ही मिले। वुछ नेताओं ने श्रीराम मंदिर ट्रस्ट में पिछड़ों, अनुसूचित जाति के लोगों की भागीदारी नहीं होने पर सवाल उठाकर भविष्य में राजनीति की दिशा के संकेत भी दे दिए हैं। विपक्ष को राम मंदिर मुद्दे पर भाजपा की काट के लिए जन सरोकारों से जुड़ना होगा। धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण न हो, इसके लिए रणनीति बनानी होगी। सपा के राष्ट्रीय सचिव व मुख्य प्रावक्ता राजेन्द्र चौधरी कहते हैं कि राम आस्था और श्रद्धा का विषय है।

भाजपा वालों को इन पर राजनीति नहीं करनी चाहिए। प्रादेश में किसान, नौजवान, छात्र, व्यापारी सभी परेशान हैं। कोरोना पर नियंत्रण करने में सरकार नाकाम रही है। अर्थव्यवस्था रसातल में पहुंच गईं है। किसानों की जमीन को पूंजीपतियों को सौंपने की साजिश चल रही है। इन सभी मुद्दों पर भाजपा व उसकी सरकार की घेराबंदी की जाएगी। जिस अयोध्या व राम मंदिर मुद्दे को लेकर भाजपा ने राजनीतिक सीढ़ियां चढ़ीं, उसका संकल्प पूरा होने को है। पांच अगस्त को प्राधानमंत्री ने भूमि पूजन पर मंदिर के कार्यं का शुभारंभ कर दिया है। इसके लिए कोरोना काल के बावजूद भाजपा ने अयोध्या समेत देशभर में उत्सव जैसा माहौल बनाया, उससे भगवा खेमे की इस मुद्दे पर राजनीतिक लाभ की आकांक्षा को समझा जा सकता है। जाहिर है कि डेढ़ साल बाद होने वाले उत्तर प्रादेश विधानसभा के चुनावों में भाजपा राम मंदिर निर्माण का राजनीतिक लाभ लेने में कोईं कसर नहीं छोड़ेगी। उसकी कोशिश चुनाव में सांप्रादायिक आधार पर ध्रुवीकरण कराने की होगी। ऐसे में नजरें विपक्षी दलों की रणनीति पर होगी कि वह भाजपा के मंसूबों की काट कर पाते हैं या नहीं, वोटों का ध्रुवीकरण रोक पाते हैं या नहीं?

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