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जाना प्रणब दा का

👤 Veer Arjun | Updated on:3 Sep 2020 4:55 AM GMT

जाना प्रणब दा का

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-अनिल नरेन्द्र

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के निधन के साथ ही भारतीय राजनीति के एक युग का अंत हो गया। प्रणब मुखर्जी का निधन पुरानी पीढ़ी के एक ऐसे कद्दावर राजनेता का अवसान है जिसके राजनीतिक योगदान को आसानी से भुलाया नहीं जा सकता। अध्ययनशीलता, शालीनता, उदृामशीलता और लोकतांत्रिक व्यवहार की दृष्टि से वह जो शून्य छोड़ गए हैं, उसकी भरपाईं करनी नामुकिन है। 6 दशक से ज्यादा के वैरियर में प्रणब मुखर्जी ने इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह सरकार (राजीव गांधी को छोड़कर) तक में काम किया। इन सभी प्रधानमंत्रियों के दौर में वह अहम भूमिका में रहे। बेहतरीन राजनीतिक समझ, संविधान पर पकड़ और मुश्किल हालात से निपटने में निपुणता के चलते वह समय-समय पर संकटमोचक साबित हुए। प्रणब मुखर्जी (84 साल) का निधन सैन्य अस्पताल में हुआ। वह कोरोना से पीिड़त थे और 10 अगस्त को अस्पताल में भर्ती हुए थे। ब्रेन सर्जरी के बाद से वह वैंटिलेटर सपोर्ट पर थे। बाद में पेफड़ों के संव्रमण की वजह से उन्हें सेपटिक शॉक लगा। इसमें ब्लड प्रेशर काम करना बंद कर देता है और आक्सीजन मिलनी बंद हो जाती है। विगत वुछ दिनों से वह बीमारियों से जिस जीवट के साथ लड़ते रहे, वह उनके व्यक्तित्व का ही हिस्सा था। 1968-69 के दौरान कांग्रेस की राजनीति से जुड़ने वाले प्रणब दा ने सार्वजनिक जीवन में न केवल लंबा सफर तय किया, बल्कि 2012 में राष्ट्रपति बनने से पहले तक वह केन्द्रीय गृह मंत्रालय को छोड़कर रक्षा, वित्त, विदेश जैसे तमाम अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारियां संभाल चुके थे।

यह कहने से गुरेज नहीं किया जा सकता कि वह बेहतर प्रधानमंत्री भी साबित होते, अगर वुछ नियति और वुछ सियासत का खेल ही ऐसा था कि 1984 में पहली बार इंदिरा गांधी की हत्या और उनके बाद 2004 में यूपीए के सत्ता में आने पर, वह दो बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। अपने लंबे राजनीतिक योगदान में उन्होंने केन्द्रीय मंत्री और विपक्षी नेता के साथ-साथ राष्ट्रपति के रूप में जिस लगन और निष्ठा से कार्यं किया कि वह नईं पीढ़ी के नेताओं के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है। यह उनके राजनीतिक अनुभव और कौशल का ही परिणाम था। उन्हें एक से अधिक बार प्रधानमंत्री पद के लिए उपयुक्त माना गया। वह राजनीतिक मूल्यांे-मान्यताओं के हिसाब से काम करने वाले राजनेताओं के साथ एक ऐसी शख्सियत के तौर पर भी जाने जाते थे जो संसदीय ज्ञान से पूर्ण थे। वह पैसले लेने के लिए भी जाने जाते थे और विषम से विषम परिस्थितियों का साहस के साथ सामना करने के लिए भी। बेशक प्रणब दा कोईं जनाधार वाले नेता भले नहीं थे, लेकिन उनमें संविधानिक परंपराओं और संसदीय राजनीति की गहरी समझ थी। वास्तव में इतिहास उनका मूल्यांकन हमेशा एक ऐसे राजनीतिज्ञ के रूप में करेगा, जिनका जीवन पूरी तरह से समरसता और भारतीयता से ओतप्रोत था, उनके इन्हीं मूल्यों को संचित रखना ही उन्‍हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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