Home » संपादकीय » किसानों के विधेयक पारित

किसानों के विधेयक पारित

👤 Veer Arjun | Updated on:21 Sep 2020 9:57 AM GMT

किसानों के विधेयक पारित

Share Post

किसानों से संबंधित विधेयक लोकसभा के बाद राज्यसभा से भी पारित हो जाने के बाद अब किसानों की उपज की माव्रेटिंग चेन में जहां सहूलियत हो गईं है वहीं बिचौलियों का डब्बा भी गोल हो गया। साथ ही देश में कांट्रेक्ट खेती के संदर्भ में एक निाित नीति बनेगी।

असल में वृषि जैसे महत्वपूर्ण विषय पर कानून का लचर-पचर होना किसानों के साथ सरकार की बहुत बड़ी लापरवाही मानी जाएगी। वृषि सुधार के लिए सरकार ने जिन तीनों विधेयकों पर काम किया उन्हें दशकों पहले ही पारित किया जाना चाहिए था। किसानों के लिए जो विधेयक आए हैं उनमें पहला है वृषि बाजार के बारे में। इस विधेयक में किसानों को इस बात की छूट दी गईं है कि वे अपनी फसल जहां चाहें बेचें। दूसरा विधेयक है कांट्रेक्ट फार्मिग के बारे में। यह किसानों को छूट देता है कि वे एग्री बिजनेस वंपनियों के साथ कांट्रेक्ट करके अपनी फसल उन्हें बेच सवें। तीसरा विधेयक है आवश्यक वस्तु अधिनियम जिसमें अनाज, दालों, प्याज और आलू जैसी उपज को आवश्यक वस्तु से बाहर रखने का प्रावधान है।

मजे की बात तो यह है कि वुछ विपक्षी पार्टियों ने इस तरह इन विधेयकों का विरोध किया जैसे कि ये किसानों के हितों के प्रातिवूल हों। वास्तविकता तो यह है कि 10 फरवरी 2011 को प्राधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिह ने एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में वृषि उत्पाद खासकर फलों एवं सब्जियों के माव्रेटिंग चेन को सुदृढ़ करने के लिए वृषि मंत्रालय और योजना आयोग से अनुरोध किया था। यही नहीं कांग्रोस ने अपने 11 मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में 27 दिसम्बर 2013 को पैसला किया था कि एपीएमसी एक्ट की वजह से किसानों को बिचौलियों की वजह से नुकसान होता है। इसलिए माव्रेटिंग चेन में बदलाव की जरूरत है। यही नहीं 2019 के आम चुनाव के लिए जारी अपने घोषणा पत्र में भी कांग्रोस ने वह सब वुछ वादा किया जो विधेयकों के माध्यम से सरकार ने पुराने कानून में बदलाव किया। हैरानी की बात तो यह है कि सरकार ने वृषि विधेयक एपीएमसी एक्ट को खत्म नहीं किया है किन्तु कांग्रोस किसानों को भड़काने के लिए कह रही है कि इस नए विधेयक से एपीएमसी एक्ट खत्म हो जाएगा।

जहां तक विरोध की बात है तो इसका सीधा हिसाब हो गया है कि सरकार के हर काम का विरोध करने वालों के निशाने पर किसानों से संबंधित ये विधेयक भी रहे। यह सरकार का दायित्व है कि वह किसानों को समझाए कि इन विधेयकों से उनका फायदा है और पहले जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) सरकार घोषित करती थी वह सिलसिला चलता रहेगा।

विपक्ष ने एमएसपी खत्म करने की अफवाह उड़ाईं तो सरकार के छह मंत्रियों ने प्रोस कांप्रोंस करके स्पष्ट किया कि एमएसपी की व्यवस्था कभी खत्म नहीं की जाएगी। असल में विपक्ष उन्हीं विषयों पर भ्रम पैला रहा है जिनका उल्लेख विधेयकों में नहीं है। इस विषय में सरकार के मंत्रियों का कहना है कि एमएसपी का किसी विधेयक में उल्लेख था ही नहीं।

सच तो यह है कि सबसे ज्यादा चर्चित विषय है भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी अकाली दल द्वारा इस विधेयक का विरोध। इसका सीधा कारण है पंजाब के वे 60 हजार आढ़तिए जो राज्य की राजनीति में अत्यंत प्राभावशाली हैं के हितों पर वुठाराघात। ये आढ़तिए अकाली दल के समर्थक हैं और इनके हितों की अनदेखी करना 2022 के विधानसभा चुनाव में अकालियों के लिए आत्मघाती साबित होता।

सच तो यह है कि खेत से किसान की उपज को मंडी तक जो आढ़तिए ले जाते हैं वही बिचौलिए की भूमिका निभाते हैं, यही कारण है कि पािमी उत्तर प्रादेश के किसानों से जो आलू आढ़तिए 2 रुपए किलोग्राम खरीदते हैं वही उपभोक्ता के किचन में आते-आते 20-25 रुपए किलोग्राम तक पहुंच जाते हैं। किसान कभीकभी आढ़तियों की वजह से अपने उत्पाद सड़कों पर पेंक देते हैं। अब किसान स्वतंत्र हैं कि वे अपना उत्पाद जिस किसी मंडी में चाहें बेचें। कांट्रेक्ट वृषि के बारे में भी भ्रम पैलाया जा रहा है। 1989 से पंजाब में विभिन्न वंपनियों ने कांट्रेक्ट वृषि करना शुरू किया है लेकिन एक भी उदाहरण ऐसा नहीं है कि किसी किसान का खेत किसी वंपनी ने ले लिया हो। पंजाब के किसानों से मशहूर एग्राो वंपनी पेप्सी कोला खेत लेकर कांट्रेक्ट खेती करती है। कभी-कभी किसानों को भुगतान करने में वंपनियां हीला-हवाला जरूर करती थीं किन्तु अब जो कानून आ रहा है इसके मुताबिक तो फसल लेते वक्त तीन-चौथाईं भुगतान अनिवार्यं है जबकि तीन दिन के अंदर शेष एक-तिहाईं राशि का भुगतान आवश्यक है। इस तरह किसानों को संरक्षण मिलने से अब कांट्रेक्ट वृषि को बढ़ावा मिलेगा।

कांग्रोस का कांट्रेक्ट वृषि को लेकर विशेष विरोध इस बात के लिए है कि इससे किसान अपने खेत में ही मजदूर हो जाएंगे। उनका यह विरोध निराधार है किन्तु इतना जरूर है कि इस विधेयक के पारित हो जाने से जम्मू-कश्मीर में अब तक जो लोग अपने खेतों को जो जोतेगा जमीन उसी की (लैंड टू किलर्स) के तहत जमीन गंवा कर मजदूर हो जाते थे, अब अपना खेत गंवाने से जरूर बच जाएंगे। अब कांट्रेक्ट वृषि प्रावधान के बाद खेत के मालिकों को सुरक्षा की गारंटी भी मिल जाएगी। साथ ही एग्राो वंपनियों के लिए भी एक प्रावधान जो कांट्रेक्ट फार्मिग करना चाहती हों।

सरकार के हर काम पर संदेह करना विपक्ष का कर्तव्य और अधिकार दोनों हैं। किन्तु विपक्ष जब तथ्यों को जानते हुए भी विरोध करता है तो उसकी नीयत पर सवाल उठना स्वाभाविक है। ऐसा हमेशा होता रहा है कि जो पाटा सत्ता में होती है और जब कोईं विधेयक पारित करना चाहती है तो उस वक्त का विपक्ष जो कभी सरकार में होते हुए उस प्रावधान का समर्थक रहता है, विरोध करता है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों की अपनी मजबूरियां होती हैं। इसलिए यदि विपक्ष वृषि संबंधी विधेयकों का विरोध करता है तो ऐसा करना उसकी मजबूरी हो सकती है किन्तु किसानों के हितों में पारित इन विधेयकों के बारे में अब अफवाह पैलाना उचित नहीं है।

Share it
Top